दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने पूर्व कांग्रेसी सांसद विजय जवाहरलाल दर्डा और उनके पुत्र देवेन्द्र दर्डा को 4 वर्ष कैद और 15 लाख रूपए जुर्माने की सजा सुनाई है।
केन्द्र की UPA सरकार के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों के आवंटन में अनियमितता के मामले में JLD यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मनोज कुमार जायसवाल को भी 4 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई है। इसी मामले में अदालत ने पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता, दो वरिष्ठ लोक सेवकों केएस क्रोफा और केसी सामरिया को 3 साल जेल की सजा सुनाई है। जांच एजेंसी ने बताया है कि कोयला घोटाले से जुड़े मामलों में यह 13वीं दोषसिद्धि है।
सजा का मामला क्या है?
कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़े इस मामले में CBI ने अपनी पहली FIR में कहा कि यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड ने 1999-2005 के बीच अपने समूह की कंपनियों को चार कोयला ब्लॉकों के आवंटन को गलत तरीके से छुपाया था।
इस मामले में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई, जिसमें कहा गया कि कोयला मंत्रालय ने कम्पनी को कोई अनुचित लाभ नहीं दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह साबित करने के लिए कुछ भी ठोस सामने नहीं आया है कि कोयला मंत्रालय के अधिकारी और जेएलडी यवतमाल एनर्जी के निदेशक धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश में शामिल थे।
हालाँकि, ट्रायल कोर्ट ने नवम्बर 2014 में क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और CBI को मामले में आगे की जांच करने का निर्देश दिया।
बता दें कि यूपीए सरकार में कोयला ब्लॉक आवंटन सबसे बड़ा घोटाला था जिसने सरकार की नींव हिला दी थी।
क्या था कोल-गेट स्कैम?
कोयला आवंटन घोटाला (Coal Mining Scam) भारत में राजनैतिक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा मामला है। CAG ने तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार पर आरोप लगाया था कि देश के कोयला भण्डार मनमाने तरीके से निजी एवं सरकारी कंपनियों को आवंटित कर दिए गए जिससे साल 2004 से 2009 के बीच सरकारी खजाने को बहुत बड़ी हानि हुई।
संसद में पेश CAG की रिपोर्ट में लगभग 142 कोयला ब्लाक आवंटन से 1.86 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया गया था। रिपोर्ट में बताया गया था कि 2004 से 2009 के बीच कोयला खदानों के ठेके देने में अनियमिताएं बरती गईं। बेहद सस्ती कीमतों पर बगैर नीलामी के खदानों से कोयला निकालने के ठेके निजी एवं सरकारी कंपनियों को दिए गए।
इसका परिणाम यह हुआ कि 2014 के लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा जोरों शोरों से उठाया गया और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
विजय दर्डा का मीडिया में आधिपत्य
विजय दर्डा लोकमत समाचार पत्रों के समूह के अध्यक्ष हैं, जो महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों से लोकमत (मराठी), लोकमत समाचार (हिंदी) और लोकमत टाइम्स (अंग्रेजी) प्रकाशित करते हैं।
विजय दर्डा मीडिया क्षेत्र में अच्छी खासी पैठ रखते हैं। इसी का परिणाम था कि वे साल 2010-11 के लिए ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (ABC) के अध्यक्ष भी रहे।
विजय दर्डा का राजनीतिक सफर
विजय दर्डा के परिवार का राजनीति से पुराना नाता रहा है। इनके पिता जवाहर लाल दर्डा 80 के दशक में तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार के मंत्रिमंडल में उद्योग और ऊर्जा मंत्री थे।
दर्डा पहली बार 1998 में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा पहुंचे थे। उस समय सोनिया गाँधी के चुने हुए कांग्रेसी उम्मीदवार राम प्रधान को हार को सामना करना पड़ा था।
इसके बाद लगातार 2 बार वे राज्यसभा पहुंचे लेकिन स्वतंत्र उम्मीदवार नहीं बल्कि कांग्रेस के टिकट पर। साल 2004 और 2010 में के राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस ने विजय दर्डा को टिकट दिया और उन्होंने जीत भी हासिल की।
विजय दर्डा के भाई राजेन्द्र दर्डा भी महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री रह चुके हैं और देवेन्द्र दर्डा JSS इंफ्रास्ट्रक्चर के साझेदारों में से एक हैं। वही JSS इंफ्रास्ट्रक्चर जिस पर इस कोयला आवंटन मामले में CBI ने FIR दर्ज की है।
कोयला घोटाले पर कांग्रेस का झूठ
कोयला घोटाले को लेकर कांग्रेस समय-समय पर कहती रही है कि यह घोटाला हुआ ही नहीं है। यह घोटाले को नकारने की वही नीति है जिसे पार्टी नेताओं ने 2G में अपनाया था। 2G के मामले में कांग्रेस नेता और वकील कपिल सिब्बल ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जीरो लॉस थ्योरी दी थी।
ठीक इसी तरह से पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कोयला घोटाले को लेकर तर्क दिया था कि जब कोयले का खनन हुआ ही नहीं और जब कोयला धरती में दबा हुआ है तब घाटा कहाँ हुआ? घाटा तभी हो सकता था जब धरती से एक टन कोयला बाहर निकाला जाता और उसे अस्वीकार्य मूल्य पर बेचा जाता।
आज जब पूर्व कांग्रेसी राज्यसभा सांसद विजय दर्डा व अन्य को सजा हुई तो यह उस तंत्र के झूठ को भी नकार देता है कि कोयला घोटाला हुआ ही नहीं था।
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