लन्दन में हिजाब के खिलाफ विरोध के दौरान महसा अमीनी के समर्थन में विरोध प्रदर्शन कर रहे ईरान के लोगों और पाकिस्तानी शियाओं में आपस में झगड़ा देखने को मिला है। इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने एक कुर्द महिला महसा अमीनी को ईरान की नैतिक पुलिस द्वारा हिजाब ना पहनने के कारण निर्दयता से मार देने के विरोध में लन्दन स्थित ईरानी दूतावास की तरफ मार्च किया और प्रदर्शन किया।
पाकिस्तानी और ईरानी समुदाय के बीच हुए इस झगड़े के दौरान ईरानी प्रदर्शनकारी ‘खुमैनी की मौत’ और ‘इस्लामी रिपब्लिक का अंत’ जैसे नारे लगा रहे थे। वहीं, पाकिस्तानी शिया प्रदर्शनकारी ‘लब्बैक या हुसैन’ और ‘शाह की मौत’ जैसे नारे लगा रहे थे।
इस घटना से ही ईरान में समुदायों के बीच की कड़वाहट सामने आ गई है। यह पूरा झगड़ा एक मुस्लिम जुलूस ‘अराबीन’ के आयोजन के दौरान हुआ।
इस घटना से से इंग्लैण्ड के लेस्टर शहर में मुस्लिमों द्वारा हिन्दू प्रतीकों को नष्ट किए जाने पर बात कर रही मीडिया का पूरा ध्यान इस झगड़े की ओर चला गया।
अराबीन जुलूस
अराबीन जुलूस इस्लाम की 1400 साल पुरानी प्रथा है। शिया समुदाय इसका आयोजन पैगम्बर मुहम्मद के नाती हुसैन के कर्बला की लड़ाई में मारे जाने के शोक में करता है। हुसैन की हत्या इराक में 680 ईस्वी में कर दी गई थी।
कर्बला की इस लड़ाई में हुसैन की यजीद की सेनाओं के विरूद्ध हार से ही आज के शिया-सुन्नी झगड़ों की नींव पड़ी। पूरी दुनिया से शिया हर साल कर्बला के जुलूस में हिस्सा लेते हैं।
ईरान में सम्प्रदायवाद
लन्दन में हाल ही में हुए झगड़े में शिया-सुन्नी लड़ाई देखने को मिलती है। मारी गई महिला महसा अमीनी, जिस कुर्द समुदाय से ताल्लुक रखती थी, वह ज्यादातर सुन्नी है और ईरान की करीब 8.5 करोड़ आबादी का 10% हैं।
कुर्द समुदाय ईरान की पर्शियन परम्पराओं के साथ तालमेल नहीं बैठा पाया है, और 1979 की ईरान की इस्लामी क्रान्ति के बाद इस्लामी सरकार के कड़े कायदे क़ानून कुर्दों को स्वीकार नहीं हुए। ईरान की इस्लामी सरकार कुर्दों पर ईरान के अंदर एक और इजरायल स्थापित करने के आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करती रही है।
ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अल खमैनी ने 1980 में उन कुर्दों के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया था जो अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे, इस दौरान बहुत से कुर्दों को गैर कानूनी ढंग से मौत के घाट उतार दिया गया था।
ईरानी महिला महसा अमीनी की मौत के कारण पूरे विश्व में ईरान की सरकार को उखाड़ फेंकने और ईरान के रेजा पहलवी को वापस लाने की मांग उठ रही है। पहलवी ईरान में इस्लामी क्रान्ति के दौरान राजकुमार थे और उनको ईरान के अगले शासक के तौर पर देखा जा रहा था।
लन्दन में हुए हालिया झगड़ों से ईरान के अंदर विभिन्न समुदायों के बीच के टकराव बाहर खुल कर आ गए हैं। ईरान को पूरी दुनिया के शियाओं का समर्थन हासिल है, इसका उदाहरण पाकिस्तानी शियाओं के नारों ‘शाह की मौत’ हैं।
कुर्दों की पूरी दुनिया में करीब 2.5 से 3 करोड़ के बीच आबादी है, कुर्द ऐसे समुदाय हैं जिनकी इतनी बड़ी जनसंख्या होने के बाद भी अपना कोई देश नहीं है। तुर्की, ईरान, इराक और सीरिया में कुर्द एक बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के तौर पर मौजूद हैं। महसा अमीनी की हत्या ने अन्य अल्पसंख्यकों जैसे कि बलूच और अजहरियों को भी कुर्दों के साथ ला दिया है।
सिर्फ़ हिजाब तक सीमित नहीं रह गया प्रदर्शन
अब प्रदर्शन सिर्फ हिजाब के मुद्दे पर ना सीमित होकर बड़े स्तर पर हो रहा है। ईरान के अंदर “जिन, जियान, आजादी” के नारे लग रहे हैं जिसका मतलब हुआ (महिलाऐं, जीवन और आजादी)। इस नारे को कुर्दिश महिलाओं को सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान लगाते हुए भी देखा गया है।
कुर्दों का दशकों से अपनी जमीन के लिए संघर्ष चला आ रहा है, कुर्दों को लगातार शोषण और अत्याचार का शिकार बनाया गया है। ISIS के उदय के बाद कुर्दों के खिलाफ और भी अत्याचार हुए हैं, जिसके विरोध में कुर्द महिलाओं तक ने हथियार उठा रखे हैं।
कुर्दों और अन्य मुस्लिम समुदायों के बीच की यह लड़ाई अब खुल कर सामने आ गई है। लेकिन विडंबना यह है कि यह इंग्लैण्ड में हुआ है जहाँ पूरे विश्व का मीडिया मुस्लिमों को दंगों का पीड़ित बता रहा था। यह संघर्ष इसलिए भी और ख़ास हो जाता है क्योंकि अपनी मूल सरजमीं से दूर यूरोप की जमीन पर यह झगड़े हो रहे हैं।