पिछले ढाई दशकों में चीन ने ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग में लगभग एकाधिकार स्थापित कर लिया था और आज भी वह दुनिया का कारखाना ही है। हालाँकि, हाल के वर्षों में, ख़ासकर कोरोना महामारी के बाद, इस गतिशीलता में बदलाव देखा गया है और मैन्युफैक्चरिंग धीरे-धीरे चीन से बाहर फिलीपींस, वियतनाम, बांग्लादेश और विशेष रूप से भारत सहित अन्य देशों में स्थानांतरित हो रही है।
नब्बे के दशक के दूसरे भाग से शुरू हुई चीन की इस यात्रा ने बाद में उसे दुनिया की मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस के रूप में स्थापित कर दिया। 2008-09 में अमेरिका में आए सबप्राइम संकट और उसके बाद बदली वैश्विक अर्थव्यवस्था ने अंतरराष्ट्रीय कारपोरेशन को जिस सस्ते इंफ्रास्ट्रक्चर और सस्ते लेबर से परिचित करवाया, उसके कारण चीन ने ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग में अपने लिए बहुत बड़ा हिस्सा ले लिया और परिणामस्वरूप आज वैश्विक उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इस प्रभुत्व को चीन की विशाल श्रम शक्ति, सरकारी नीतियों, बुनियादी ढांचे और तकनीकी प्रगति द्वारा सुगम बनाया गया था। हालाँकि, हाल के वर्षों में इस प्रवृत्ति में काफी बदलाव देखा गया है, और मैन्युफैक्चरिंग के कार्य अब चीन से बाहर अन्य देशों में भी शिफ्ट हो रहे हैं।
चीन के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में आए बदलाव के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें बढ़ती श्रम लागत, व्यापार तनाव और कंपनियों द्वारा अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए रणनीतिक कदम उठाना शामिल हैं। अब हाल के वर्षों में फिलीपींस, वियतनाम, बांग्लादेश और विशेष रूप से भारत जैसे देश ऑल्टरनेटिव मैन्युफैक्चरिंग केंद्र के रूप में उभरे हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ग्लोबल सप्लाई चेन में यह बदलाव एक देश के पतन और दूसरे के उत्थान के बारे में नहीं है। इसके बजाय, यह वैश्विक विनिर्माण के विकास और विविधीकरण के बारे में है। जैसे-जैसे दुनिया अधिक परस्पर जुड़ी और जटिल होती जा रही है, अधिक मजबूत, लचीली और विविध आपूर्ति श्रृंखलाओं की आवश्यकता महत्वपूर्ण हो जाती है। इस संदर्भ में, चीन के मैन्युफैक्चरिंग विकल्प के रूप में भारत का उदय इस बदलती वैश्विक गतिशीलता का प्रतिबिंब और प्रतिक्रिया दोनों है।
भारत विभिन्न पहलों और सुधारों के माध्यम से ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग में बदलाव को आत्मसात करने की तैयारी कर रहा है। 2014 में शुरू की गई ‘मेक इन इंडिया’ पहल का उद्देश्य विदेशी निवेश और नवाचार को बढ़ावा देना, कौशल विकास को बढ़ाना और सर्वोत्तम श्रेणी के बेसिक मैन्युफैक्चरिंग ढाँचे का निर्माण करके भारत को एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब में बदलना है।
भारत के मामले में इसका सबसे अच्छा उदाहरण इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में देखा गया। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अनुसार, पिछले आठ वर्षों में भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। देश में इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन 2014-15 में 1,90,366 करोड़ रुपये से बढ़कर 2019-20 में 5,33,550 करोड़ रुपये हो गया है, जो लगभग 23% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) दर्शाता है।
दूसरी ओर चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण उसकी मैन्युफैक्चरिंग पर गहरा असर पड़ा है। चीन का क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई), जो एक तरह से मैन्युफैक्चरिंग की स्थिति, या कहें तो उसके हेल्थ का माप है, दिसंबर 2022 में गिरकर 47.0% पर आ गया, जो चीन की मैन्युफैक्चरिंग में संकुचन का संकेत देता है। यह न केवल चीन की वर्तमान अर्थव्यवस्था बल्कि थोड़ा बहुत ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग का चीन के बाहर जाने का भी संकेत देता है।
कोविड-19 महामारी के कारण चीन से लोगों का स्थानांतरण तेज हो गया है, जिसने विनिर्माण के लिए एक ही देश पर अत्यधिक निर्भरता के जोखिमों को उजागर कर दिया है। कंपनियां अब इन जोखिमों को कम करने के लिए अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने पर विचार कर रही हैं, जिससे भारत सहित अन्य देशों में मैन्युफैक्चरिंग में बदलाव हो रहा है।
यह बदलाव इन देशों के लिए चुनौतियाँ और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है। हालांकि उन्हें बढ़े हुए निवेश और रोजगार सृजन से लाभ होगा, लेकिन उन्हें मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में इस बदलाव को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास, कौशल वृद्धि और नियामक सुधारों जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
भारत में एक युवा और बढ़ती आबादी है, जो मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए संभावित श्रमिकों का एक बड़ा पूल प्रदान करती है। देश के पास कई ताकतें हैं जो इसे आने वाले वर्षों में एक संभावित विनिर्माण केंद्र बनाती हैं। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत को अभी भी कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे बुनियादी ढांचे की बाधाएं और स्किल्ड लेबर। यदि भारत इन चुनौतियों से निपट सकता है, तो आने वाले वर्षों में यह एक प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग पॉवरहाउस बनने के लिए अच्छी स्थिति में है।
देखा जाए तो भारत पिछले कई वर्षों से चीन से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश आकर्षित करने में सफल रहा है। ताइवान की एक प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता फॉक्सकॉन ने स्मार्टफोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए एक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट स्थापित करने के लिए भारत में 82 हजार करोड़ रुपए का निवेश करने की योजना की घोषणा की। इसके साथ ही दक्षिण कोरियाई इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता सैमसंग ने स्मार्टफोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए 41 हजार करोड़ रुपए का निवेश करने की योजना की घोषणा की।
व्हीकल मैन्युफैक्चरिंग में जर्मन ऑटोमोबाइल निर्माता वोक्सवैगन ने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए एक मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए भारत में लगभग 8 हजार करोड़ रुपए का निवेश करने की योजना की घोषणा की।
ये निवेश स्पष्ट संकेत हैं कि चीन के मैन्युफैक्चरिंग में मोनोपॉली को भारत और अन्य देशों से चुनौती दी जा रही है। लगभग 1,000 विदेशी कंपनियाँ वर्तमान में भारतीय अधिकारियों के साथ बातचीत में लगी हुई हैं और कम से कम 300 सक्रिय रूप से भारत में स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, चिकित्सा उपकरण, कपड़ा और सिंथेटिक कपड़े जैसे क्षेत्रों में उत्पादन योजनाओं को आगे बढ़ा रही हैं।
भारत में चीन से मैन्युफैक्चरिंग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा एब्जॉर्ब करने की क्षमता है। हालाँकि, कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिनका भारत को अपनी क्षमता का पूरी तरह से एहसास करने के लिए समाधान करने की आवश्यकता है। सही नीतियों के साथ, भारत आने वाले वर्षों में एक प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बन सकता है।