बीसवीं सदी की शुरुआत से ही चीन अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीति के तहत दूसरे देशों पर भूगोलीय, वित्तीय और सामरिक बढ़त बनाने में लगा है। दूसरे देशों और वहां की जनता पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए वामपंथी चीनी सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए बेहिसाब खर्च किया है।
चीन का मीडिया प्रोपेगैंडा
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में चीन ने वैश्विक समाचार में प्रचार पर $7.25 बिलियन खर्च किए और 2015 तक विदेशी प्रोपेगैंडा पर वामपंथी सरकार $7 से $8 बिलियन खर्च कर रही थी।
प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए राज्य समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने पिछले कई सालों में अपने ब्यूरो का विस्तार लगभग दोगुना किया है। कई अन्य चीनी मीडिया संस्थानों ने विदेशी भाषा के संस्करण लांच किए या फिर दूसरे देशों के मीडिया चैनलों से साझेदारी स्थापित की।
इसका सबसे बड़ा उद्धारण अफ्रीका है, जहां की मीडिया पर चीन ने अथाह निवेश किया। अपने राज्य प्रसारक शिन्हुआ के बाद, CGTN ने 2012 में अपना अफ्रीकी ब्यूरो खोला, अन्य चीनी मीडिया संगठन जैसे चाइना रेडियो इंटरनेशनल और चाइना डेली ने भी अफ्रीका में कदम रखा। इसका यह परिणाम हुआ कि चीनी मीडिया के लिए काम कर रहे लोकल पत्रकार चीन-विरुद्ध सामग्री को नजरअंदाज कर देते हैं।
2013 में शी जिनपिंग के पदभार संभालने के बाद चीनी प्रोपेगैंडा का प्रचार-प्रसार को और बल मिला है। नए राष्ट्रपति ने ऑनलाइन मीडिया पर प्रचार बढ़ाने पर जोर दिया।
हाल ही में चीन की सबसे बड़ी और प्रभावशाली राज्य समाचार एजेंसी शिन्हुआ के प्रधान संपादक फू हुआ ने दावा किया था कि सोशल मीडिया में भी अब चीनी प्रचार मात्रा बढ़ाने के प्रयास जारी है। इस योजना के तहत उनका इरादा फेसबुक, ट्विटर और टिकटोक पर चीनी प्रभाव बढ़ाने एक उपाय किए जाएंगे।
इस साल एक रिसर्च रिपोर्ट से यह तथ्य मालूम हुआ था कि कई देश के नागरिक चीन के प्रति ज्यादा अच्छे विचार नहीं रखते। यह विडंबना ही है कि प्रचार-प्रसार पर अरबों खर्च करने के बाद भी चीन को अधिक लाभ नहीं पहुंचा है।