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Home » श्वेत पन्ने से कम्युनिस्ट शासन का विरोध: इस अनोखे अन्दाज के साथ सड़क पर उतरे चीन के नागरिक
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श्वेत पन्ने से कम्युनिस्ट शासन का विरोध: इस अनोखे अन्दाज के साथ सड़क पर उतरे चीन के नागरिक

अर्पित त्रिपाठीBy अर्पित त्रिपाठीNovember 29, 2022No Comments9 Mins Read
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China is seeing massive outrage over covid policies
चीन में भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
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क्या चीन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ जनता अब आर-पार की लड़ाई के मूड में है? कम्यूनिस्ट चीन के सत्ता केंद्र बीजिंग और आर्थिक राजधानी शंघाई सहित चीन के कई छोटे-बड़े शहरों के लोगों की सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर कर विरोध करने की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।

चीन की सरकार के लिए चिंता का विषय यह है कि चीन में हो रहे विरोध प्रदर्शनों का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है।

दमनचक्र चलाते चीनी सुरक्षाबल | चित्र साभार: जेनिफर वेंग

इससे पहले, पिछले सप्ताह ही चीन में स्थित आईफोन बनाने वाली कम्पनी फोक्सकॉन की फ़ैक्टरी में कर्मचारियों द्वारा सरकार की ‘ज़ीरो COVID पॉलिसी’ के विरोध में प्रदर्शन की तस्वीरें आई थीं। इसके पश्चात सुरक्षा बलों द्वारा इन विरोध को रोकने की तस्वीरें और वीडियो भी सार्वजनिक हो गए।

ताजा विरोध प्रदर्शनों का कारण चीन के शिनजियांग प्रांत में शहर उरुमकी में स्थित एक इमारत में आग लगना है जिसमें कम से कम बारह लोगों की मृत्यु हो गई।

उरुमकी शहर की इमारत जिसमें आग लगी

जिस इलाके में आग लगी, वहाँ कोरोना से लड़ने की सरकार की ‘ज़ीरो COVID पॉलिसी’ के कारण समय पर आग बुझाने के लिए समुचित सहायता नहीं पहुँचाई जा सकी। चीन में पहले से ही कोरोना की बंदिशों के कारण घरों में महीनों से घुट रहे लोगों का गुस्सा इस घटना के बाद ऐसा फूटा कि जनता सड़कों पर उतर आई।

अब ये विरोध प्रदर्शन चीन के कई शहरों में फ़ैल गए हैं और शिक्षण संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में इनका प्रभाव देखा जा रहा है। प्रदर्शनकारियों ने कम्युनिस्ट सरकार के विरोध का नायाब तरीका अपनाया है।

प्रदर्शन करने वाले छात्रों समेत अन्य प्रदर्शनकारियों ने हाथों में सफ़ेद कागज़ लेकर प्रदर्शन करना चालू कर दिया है। इसे ‘व्हाइट पेपर रिवोल्यूशन’ यानी, ‘श्वेत पत्र क्रांति’ का नाम दिया गया है।

क्या है ‘व्हाइट पेपर रिवोल्यूशन’?

चीन में कड़े कोरोना लॉकडाउन और सरकार के तानाशाही रवैए के खिलाफ हो रहे इन प्रदर्शनों में प्रदर्शनकारी हाथों में सफ़ेद कागज लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। इसे सत्ता के विरुद्ध एक शांत हथियार के तौर पर देखा जा रहा है। इन कागजों पर कुछ भी नहीं लिखा हुआ है।

इन कागजों को चीनी सेंसरशिप और लिखने बोलने की आजादी के छीने जाने के विरोध में बताया जा रहा है। चीन के अंदर लिखने बोलने को लेकर कड़ी बंदिशें हैं।

This is why this nationwide protests in #CCPChina are called #WhitePaperRevolution . It started with people (mostly young women) holding a piece of white paper, and then more people joining in.
This brave young lady is a student at #Tsinghua University in #Beijing. pic.twitter.com/CQglo3KtcJ

— Inconvenient Truths by Jennifer Zeng 曾錚真言 (@jenniferzeng97) November 28, 2022
शिंगहुआ विश्वविद्यालय में सफ़ेद कागज के साथ प्रदर्शन करती छात्रा

इससे पहले राजधानी बीजिंग में वर्ष 1989 में तियानमेन चौक पर हुए ऐतिहासिक प्रदर्शनों को चीनी सेना ने बड़ी बेरहमी के साथ कुचल दिया था।

यही कारण है कि इन दिनों हो रहे प्रदर्शनों में विरोधियों ने सफ़ेद कागजों को हथियार बनाया है। इससे पहले वर्ष 2020 में चीन के दमन के खिलाफ हांगकांग में हो रहे प्रदर्शनों में भी प्रदर्शनकारियों ने सफ़ेद कागजों से अपना विरोध जाहिर किया था। इसके अतिरिक्त रूस में हुए कुछ प्रदर्शनों में भी प्रदर्शनकारियों ने सफ़ेद कागजो के साथ प्रदर्शन किया था।

समाचार एजेंसी रायटर्स से बात करते हुए एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “इन सफ़ेद कागजों के जरिए हम वह सब कहने का प्रयास कर रहे हैं जो हमें कहने की इजाजत नहीं है।”

कुछ कागजों पर फ्रीडमैन प्रमेय भी लिखी हुई है। इसका कई दार्शनिक अलग तरीके से व्याख्या कर रहे हैं। अभी यह बताया जा रहा है कि फ्रीडमैन का अर्थ ‘फ्री द मैन’ है जिसका अर्थ होता है ‘इंसान को आजाद करो’।

#Creative way of protest of students in #Tsinghua University. Who can work out what they want to say? pic.twitter.com/2tzK54f6eg

— Inconvenient Truths by Jennifer Zeng 曾錚真言 (@jenniferzeng97) November 27, 2022
फ्रीडमैन प्रमेय लिखे कागजों के साथ प्रदर्शन करते छात्र छात्राएं

चीन से मिल रही खबरों के अनुसार शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी शहर में आग से लोगों की जान जाने से भड़के इन प्रदर्शनों में बीजिंग के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय शिंगहुआ विश्वविद्यालय सहित शंघाई के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के छात्र छात्राएं और आम जनता शामिल है। बीजिंग की महत्वपूर्ण रिंग रोड और नदी के किनारे पर पर बड़ी संख्या में प्रदर्शन हो रहे हैं।

इससे पहले भी चीन समेत अन्य देशों में इस तरह के अनूठे विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं। लोगों ने हांगकांग में हाथों में छातों के साथ लोकतंत्र के समर्थन में प्रदर्शन और थाइलैंड में रबड़ की बतखों के साथ प्रदर्शन किया था। ऐसा ही एक वाकया फ्रांस में हुआ था जहाँ पर प्रदर्शनकारियों ने हरी जर्सियाँ पहन कर अपना विरोध जताया था।

पार्टी और शी जिनपिंग के खिलाफ लग रहे नारे

प्रदर्शनों में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीन में तानाशाही सत्ता चलाने वाली कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ नारे लग रहे हैं। प्रदर्शनकारी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सत्ता छोड़ने के नारे लगा रहे हैं। साथ ही वह कम्युनिस्ट पार्टी की तानशाही के खिलाफ भी नारेबाजी कर रहे हैं।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल में ही संपन्न हुई कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में अपनी पकड़ सरकार और पार्टी पर और मजबूत कर ली थी। खबरों के अनुसार विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों ने शिनजियांग प्रांत को मुक्त करने के नारे तक लगाए हैं।

“Release them! Release them!” Public surrounding the #Shanghai police department and demanding the #CCP to release the people who were arrested during the protest at #Urumqi Road last night. #CHINAPROTESTS #WHITEPAPERREVOLUTION pic.twitter.com/tTM80F90Pm

— Inconvenient Truths by Jennifer Zeng 曾錚真言 (@jenniferzeng97) November 28, 2022

इस नारेबाजी के बीच सुरक्षाबल लगातार दमन की नीति अपनाए हुए हैं। कई ऐसे वीडियो सामने आए है जिनमें सुरक्षा बल प्रदर्शनकारियों पर भारी बल का प्रयोग कर रहे हैं। इस पूरी घटना पर रिपोर्ट करने वाले कई पत्रकारों को भी सुरक्षाबलों ने निशाना बनाया है, उनके साथ अभद्रता और मारपीट के साथ साथ उन्हें हिरासत में लिया गया।

उरुमकी अग्निकांड: जहाँ से शुरू हुए विरोध प्रदर्शन

हालिया प्रदर्शनों की मूल वजह चीन के शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी (Urumqi) की एक बहुमंजिला इमारत में हुआ अग्निकांड है।

चीन के सोशल मीडिया पर नजर रखने वाली एक वेबसाईट के अनुसार, 24 नवंबर को शाम के लगभग 8 बजे इस इमारत की 15वीं मंजिल स्थित एक अपार्टमेन्ट के एक कमरे में शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लगी, जो देखते ही देखते 17वीं मंजिल तक फ़ैल गई।

इलाके में अगस्त माह से ही कोरोना की रोकथाम के लिए ‘जीरो कोविड पॉलिसी’ के तहत लोगों की आवाजाही और अन्य गतिविधियों पर रोक लगी हुई है।

ऐसे में जब अग्निशमन दस्ता इस आग को बुझाने पहुँचा तो उसे घटनास्थल पर पहुँचने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आग बुझाने में कम से कम 4 घंटे का समय लगा।

रास्ते में खड़ी कारों, बैरियर और अन्य रोकथाम के उपकरणों की वजह से समय से यह अग्निशमन दस्ता घटनास्थल तक समय से नहीं पहुँच सका। इसी कारण से आग बुझाने में देरी हुई और इसी कारण 12 लोगों की मृत्यु हो गई।

जीरो कोविड पॉलिसी

जहाँ एक ओर पूरी दुनिया ने कोरोना की साथ जीना सीख लिया है और सरकारें बचाव के साथ ही आम जनजीवन को प्रभावित किए बिना कोरोना को रोकने के प्रयास कर रही हैं, वहीं चीन ने कोरोना के ऊपर सख्त नीति अपनाई हुई है, जिसके कारण लोगों की आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान होने की खबरें लगातार आ रही हैं। वहीं, चीन का सरकारी तंत्र लोगों की आवाज दबा रहा है।

क्या हुआ अब तक प्रदर्शनों में?

उरुमकी की घटना की वजह से लोग सड़कों पर आ गए और चीनी सरकार की अतिवादी नीति के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे। उरुमकी में बड़े स्तर पर प्रदर्शनों के बाद, पूरे चीन के प्रमुख शहरों में प्रदर्शनों का सिलसिला चालू हो गया।

राजधानी बीजिंग की सड़कों, आर्थिक राजधानी शंघाई के शिक्षण संस्थानों और सार्वजनिक जगहों अन्य प्रमुख शहरों जैसे कि वुजहेन में भी यह विरोध प्रदर्शन फ़ैल गया है। भारी सुरक्षा इंतजाम के बावजूद भी प्रदर्शनकारी हटने का नाम नहीं ले रहे हैं।

“Freedom! We want freedom!” People gather in under #SitongBridge in #Beijing where lone hero #PengLifa or #PengZaizhou protested and got arrested only over a month ago. See my show on that protest: https://t.co/i5FujLhX2f#ChinaProtests #WhitePaperRevolution pic.twitter.com/rW2HpVTWnn

— Inconvenient Truths by Jennifer Zeng 曾錚真言 (@jenniferzeng97) November 28, 2022

रायटर्स से बात करते हुए शंघाई के एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “चीनी शासन द्वारा कोरोना रोकने के नाम पर लगाई गई यह बंदिशें असल में लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता पर लगाईं गई हैं।”

वहीं, दूसरी तरफ इन प्रदर्शनों को कवर करने वाले बीबीसी और रायटर्स के पत्रकारों पर भी सुरक्षाबलों ने हमला किया और उनके साथ बदसलूकी की। दोनों पत्रकारों को कुछ घंटों तक हिरासत में भी रखा गया। चीन में सरकार ने बढ़ते विरोध प्रदर्शन के चलते सुरक्षा इंतजाम और कड़े कर दिए हैं।

#Shanghai police blatantly beat up ⁦⁦@BBCNews⁩ reporter Edward Lawrence. pic.twitter.com/Ihqa4Y5JiG

— Inconvenient Truths by Jennifer Zeng 曾錚真言 (@jenniferzeng97) November 27, 2022

इससे पहले अक्टूबर माह में चीन की राजधानी बीजिंग में सिटोंग ब्रिज पर एक व्यक्ति ने चुनावों की मांग और सरकार की कोरोना नियंत्रण नीति के खिलाफ बैनर लहराए थे।

बैनर पर लिखा हुआ था “हमें भोजन चाहिए, कोरोना टेस्ट नहीं, हमें आजादी चाहिए, लॉकडाउन नहीं, हमें बदलाव चाहिए, सांस्कृतिक क्रान्ति नहीं। हमें वोट चाहिए, नेता नहीं, हम नागरिक बन कर रहना चाहते हैं न कि दास।”

इस बैनर को बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया पर देखा गया था, बाद में चीनी प्रशासन ने इस को दबा दिया। वहीं पिछले ही सप्ताह में बड़े पैमाने पर आईफोन के कारखाने में कामगारों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया था और प्रशासन से भिड़ गए थे।

क्या जिनपिंग की सत्ता जाने वाली है?

साल दर साल अपनी ताकत को असीमित करते जाने वाले चीनी तानाशाह राष्ट्रपति शी जिनपिंग हाल ही में संपन्न हुई कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं बैठक में तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति चुने गए शी जिनपिंग अब हांगकांग सहित अपने देश के अंदर से भी प्रदर्शन को झेल रहे हैं।

शी, चीन के पहले राष्ट्रपति और सुप्रीम लीडर माओ ज़ेडांग के बाद अब तक सबसे ताकतवर नेता हैं।

हाल ही में हुई कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में चीन के पूर्व राष्ट्रपति हु जिंताओं को भी जबरदस्ती बाहर निकलवा दिया गया था।

Hu Jintao removed from the closing ceremony of 20th Cong of CPP in full glare of TV cameras. pic.twitter.com/eYMTqQA2D8

— Alok Bhatt (@alok_bhatt) October 22, 2022

इसे जिनपिंग की सत्ता पर पकड़ और मजबूत करने के साथ-साथ किसी और नेता को अपनी बराबरी का कद न देने की नीति के तौर पर देख रहे हैं। चीन में हो रहे इन प्रदर्शनों और इस पूरे घटनाक्रम को सोवियत यूनियन में बदलाव से जोड़कर देखा जा रहा है।

सोवियत यूनियन में वर्ष 1956 में हुई 20वीं कम्युनिस्ट पार्टी कॉन्ग्रेस में नए प्रमुख निकिता ख्रुश्चेव ने सोवियत के तानाशाह और अत्याचारी प्रमुख स्टालिन की असलियत सबके सामने लाई थी।

20वीं पार्टी कॉन्ग्रेस को संबोधित करते निकिता ख्रुश्चेव

दरअसल, उस समय तक स्टालिन की मृत्यु के बाद भी उसे सोवियत यूनियन में महान बताया जाता रहा था पर नए नेता ख्रुश्चेव ने उसके द्वारा किए गए अत्याचारों और जनता के खिलाफ किए गए कार्यों को पार्टी एक कार्यकर्ताओं के सामने रख कर उसकी तत्कालीन सोवियत यूनियन में स्टालिन के महत्व को कम करने का काम किया था और सफल भी रहे थे।

अब चीन में हो रहे प्रदर्शन आगे किस तरफ जाते हैं यह देखने वाली बात होगी। लगातार बंदिशों और अपने अधिकारों के छीने जाने से नाराज लोग अब सत्ता के खिलाफ खुले विद्रोह पर उतर आए हैं पर तानाशाही शासन विरोध को दबाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है।

इस खबर को अंग्रेजी में पढने के लिए यहाँ क्लिक करें।

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