क्या आप जानते हैं कि चीन में एक ऐसा भी समय था जब सरकार ने यह आदेश दे रखा था कि लोग जहाँ भी गौरैया देखें, उसे मारने दौड़ पड़ें! चीन में एक ऐसा भी समय था जब खेतों में, मैदानों में, घरों के आंगनों को अपनी कर्णप्रिय चहचहाहट से गुलजार रखने वाला यह छोटा सा जीव साम्यवाद के नशे में झूमती भीड़ का शिकार बन रहा था।
आज हम आपको बताने वाले हैं चीन के ऐसे तानाशाह के बारे में जिसने छोटी सी गौरिया को अपने देश में खाद्यान्न संकट का जिम्मेदार मानते हुए उन्हें मारने के आदेश निकाल दिए थे। यह अमानवीय आदेश दिया था साम्यवादी चीन के पहले तानाशाह माओत्से तुंग ने।
माओत्से तुंग की मृत्यु आज ही के दिन यानी 09 सितम्बर 1976 को हुई थी। माओ चीन का पहला कम्युनिस्ट तानाशाह था, उसने 1949 से 1959 तक चीन की सत्ता चलाई और 1976 तक चीनी साम्यवादी पार्टी का प्रमुख बनकर पूरी चीनी सरकार को नियंत्रित करता रहा।
कैसे माओ ने पाई सत्ता
माओत्से तुंग का जन्म दिसम्बर 1893 में चीन के हुनान प्रांत में हुआ था, वह आगे चलकर चीन में जमींदारों के खिलाफ चल रहे अभियान में साम्यवादियों का नेता बन गया।
इस अभियान में राष्ट्रवादी कुओमिन्तांग और चीनी साम्यवादी पार्टी साथ-साथ थीं, लेकिन माओ की पार्टी ने राष्ट्रवादियों पर साम्यवादियों के खिलाफ नरसंहार का आरोप लगाकर लड़ाई अपने हाथों में ले ली और आखिरकार 1949 में चीन की सत्ता पर काबिज हो गया।
माओ के सिरफिरे आदेश
साम्यवादियों ने सत्ता तो किसी तरह पा ली, पर चीन की बड़ी जनसंख्या और भारी गरीबी के कारण लोगों में फिर से आक्रोश फैलने लगा, अन्न की उपलब्धता ना होना इसमें सबसे बड़ा कारण थी, हमेशा क्रान्ति की बात करने वाले साम्यवादियों की साम्यवादी सरकार के दिमाग में एक क्रांतिकारी उपाय आया।
उन्होंने सोचा कि गौरैया एक ऐसा पक्षी है जो चीन में बहुत बड़ी मात्रा में है और इतनी बड़ी संख्या में होने के कारण काफी बड़ी मात्रा में फसलों को यह खा जाती हैं, जिससे बड़ी आबादी खाने से महरूम रह जाती है।
इसके लिए उन्होंने पूरे देश में सरकारी आदेश दिया कि जहाँ भी गौरैया दिखे, उसके पीछे पिल पड़ो, ढोल नगाड़े बजाओ और जब वे चित होकर गिर पड़ें तो उनकी हत्या कर दो।
चीन के लोगों ने यह आदेश मानते हुए गौरैया के घोंसले तोड़ने, गौरैया के अंडे नष्ट करने और जहाँ भी उड़ती या बैठी गौरैया मिल जाए उसके पीछे ड्रम बजा कर उसे उड़ाने जैसे काम करने लगे। यह गौरैया जब उड़ते-उड़ते थक कर गिर जातीं तो इन्हें मार दिया जाता।
ऐसा करते हुए चीन में गौरैया लगभग विलुप्त हो गई, लेकिन इससे लोगों की भुखमरी में कोई कमी आने के बजाय चीन भयंकर अकाल की चपेट में आ गया।
दरअसल, गौरैया को चीन में अभियान चलाकर मारा जाना ही इस भुखमरी का कारण था। जिस तरह से खाद्य श्रंखला में हर बड़ा जीव अपने से छोटे जीव को खाता है उसी तरह से यह गौरैया खेतों में छोटे-छोटे कीड़ों-मकोड़ों का सफाया करती थीं, जिससे फसल में रोग नहीं लगते थे तथा कीड़ों के खाने से भी फसल बची रहती थी।
लेकिन गौरैया तथा अन्य पक्षियों का बड़े संख्या पर मारा जाना इस खाद्य श्रंखला को प्रभावित कर गया और खेतों में बड़ी संख्या में रोग लगना चालू हो गया, जिससे सारी फसलें बर्बाद होने लगीं और विश्व का सबसे बड़ा अकाल पड़ गया। एक वेबसाइट के अनुसार इस अकाल में 5 करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए।
माओ की मृत्यु
माओ की मृत्यु सितम्बर 9, 1976 को बीजिंग में हुई, माओ की मृत्यु का कारण स्पष्ट कारण तो चीन की सरकार ने नहीं बताया, लेकिन बड़े तौर माना जाता है कि उसकी मौत पार्किसन्स की बीमारी के कारण हुई, इस बीमारी में आदमी तंत्रिका तंत्र प्रभावित होने के कारण चीजें भूलने लगता है और उसकी मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं।
कोई भी वैश्विक नेता को उसकी शोक सभा में नहीं पहुंचा और 8 दिन तक चीन के सेंट्रल हॉल में उसका पार्थिव शव रखा गया, और बहुत से चीनी लोगों ने उसके अंतिम दर्शन किये, सितम्बर 18,2022 को उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।