वर्षों से भारत और चीन के कूटनीतिक रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव रहे हैं और दोनों देश परस्पर मित्रवत संबंध स्थापित नहीं कर पाए। इसका मुख्य कारण दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को माना जा सकता है (या हम तीनों देशों के बीच का विवाद मान सकते हैं अगर हम तिब्बत को एक स्वतंत्र देश मानें तो)।
हमेशा से विभाजन के पक्षधर रहे अंग्रेजों द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार भारत और चीन एक दूसरे के साथ 3,488 किमी लंबी सीमा साझा करते हैं। वर्ष 1913 में हुए त्रिपक्षीय सम्मेलन में भारत, तिब्बत और चीन की सीमाओं का परिसीमन किया गया था। हालाँकि, चीन को कौन आज तक सीमाओं में बाँध पाया है?
वर्ष 1957 में चीन द्वारा अक्साई चिन कब्जाने के बाद भारत-चीन युद्ध (1962) में एक नए सैन्य सीमाकंन का जन्म हुआ जो कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के नाम से जाना जाता है। इसके बाद से ही दोनों देशों के सैनिकों के बीच छोटी-मोटी झड़प होती रही, जिनमें कुख्यात गलवान वैली का संघर्ष भी शामिल है। इसी झड़प में 20 भारतीय सैनिकों ने भी बलिदान दिया।
वहीं, सोचने वाली बात है कि करीब-करीब शून्य तापमान पर स्थित और न्यूनतम वनस्पति एवं प्राकृतिक संसाधनों के अभाव में भी भूमि का यह हिस्सा इतना मूल्यवान क्यों है? क्यों दोनों देश यहाँ अपने-अपने स्तर पर बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर रहे हैं?
इसका पहला कारण तो हम 21वीं शताब्दी में युद्धों के बदलते कारणों का मान सकते हैं। युद्ध, संघर्ष और मुठभेड़ 1900 दशक के दौर से बहुत बदल चुके हैं। आज के दौर में छिड़ रहे हायब्रिड युद्ध संघर्षों का सबसे पहला शिकार आम नागरिक हैं, जिन्हें युद्ध के चलते आतंकवाद, बीमारी और अकाल जैसे प्रभावों को झेलना पड़ता है। पहले के दौर में योद्धाओं और आम नागरिकों के बीच जो दूरी होती थी उसमें भी अब कमी आ गई है।
रणनीतिक नजरिए से देखें तो नागरिकों और योद्धाओं के बीच बढ़ रहे समावेश को ‘शत्रुता में प्रत्यक्ष भागीदार’ के तौर पर देखा जा सकता है। युद्ध क्षेत्र में अपनी भौतिक उपस्थिति ही नहीं बल्कि यह लोग वर्तमान युद्ध परिस्थितियों में मानवीय हथियार के रूप में काम कर रहे हैं जो किसी राष्ट्र के रणनीतिक हितों को प्राप्त करने के लिए मानवीय भावनाओं और सहानुभूति का मिश्रण विश्व के सामने प्रस्तुत करते हैं और जाहिर है कि विश्व मंच के बुद्धिजीवियों के लिए इससे अच्छा विक्रेता और नहीं हो सकता।
साथ ही, ऐसे संघर्षों में अक्सर नागरिक और लड़ाकों के बीच बने संबंध काफी पेचीदा और शक्ति युक्त होते हैं। क्योंकि, अगर सशस्त्र वर्ग जनसंख्या को अपने हितों के अनुसार मोड़ सकते हैं तो जनसंख्या भी हिंसा के तौर-तरीकों को प्रभावित कर सकती है।
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन (PRC) ने इन्हीं नागरिक-योद्धाओं के संबंधों को बहुत पहले ही भाँप लिया था और इस पर काम भी शुरू कर दिया था। इसका जिक्र ‘चायनीज ड्रीम’ में भी किया गया है। करीब 2500 वर्ष पूर्व इस ‘चीनी स्वप्न’ का जिक्र हुआ था, जिसमें एक शांतिपूर्ण एवं खुशहाल जीवन की कल्पना की गई थी। उस समय ‘शियाओकांग’ शब्द चलन में आया था जिसका अर्थ था एक ‘मध्यम समृद्ध समाज’। इसका सर्वप्रथम उल्लेख प्राचीन चीनी क्लासिक शिजिंग- ‘द बुक ऑफ पोएट्री’ में देखने को मिला था।
एक कम्युनिस्ट देश, माओवादी आदर्शों के अनुसार अपनी शक्तियां जनता से प्राप्त करता है। चीनी नागरिकों के बेहतरी के लिए काम करना देश की रणनीति के हमेशा केंद्र में रहा है। हालाँकि, अब सत्ता पर केंद्र का बिंदू घूम रहा है, जिसमें मजबूत सैन्य सुरक्षा एवं चीनी हितों की रक्षा पंक्ति में सबसे आगे आ गए हैं।
यह और दिलचस्प तब हो जाता है जब आप देखें कि कैसे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) इन दो अलग लक्ष्यों का मिश्रण करके अपने एक लक्ष्य को साधती है। साथ ही, 18 वर्षों से लगातार ग्रामीण मामले चीन के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं और इनका जिक्र ‘नंबर-1 केंद्रीय दस्तावेज 2021’ में भी देखने को मिला है। इस दस्तावेज में ग्रामीण जीवन को आगे बढ़ाने, कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास और आधुनिकता की और बढ़ाने के प्रयासों पर बल दिया गया है।
देखा जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों को आधुनिकता से जोड़ने के बहाने रणनीतिक सैन्य क्षेत्रों का निर्माण करने से बेहतर और हो भी क्या सकता है। इसी दस्तावेज में वर्ष 2050 तक के लक्ष्य तय किए गए हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत कृषि, सुंदर परिदृश्य और समृद्ध किसान शामिल हैं (अब इसे और स्पष्ट करना जरूरी तो नहीं कि इससे सैन्य वाहनों की पहुँच के लिए सड़के एवं रसद सामग्री के लिए सुचारु व्यवस्था की स्थापना तो हो ही जाएगी)।
इसके दूसरे पहलू पर विचार करें तो हेलीपैड और हवाई सैन्य विमानों के लिए हवाई अड्डों के निर्माण स्थल के आस-पास आबादी स्थापित करना भी युद्ध के दौरान वैश्विक सहानुभूति प्राप्त करने का एक तरीका है।
अगर आप इस दस्तावेज (नंबर-1 केंद्रीय दस्तावेज 2021) को पढ़ेंगे तो मुख्यतः 4 बिंदुओं पर आपकी नजर जरूर जाएगी:
1: बीज उद्योग और कृषि योग्य भूमि को केंद्र में रखकर देश अनाज और महत्वपूर्ण कृषि उत्पादों के लिए सुधार करेगा
2: ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए कृषि उत्पाद प्रंसस्करण उद्योगों को बढ़ावा देना
3: जल आपूर्ति, पावर ग्रिड, बुनियादी परिवहन का विकास, ग्रामीण सार्वजनिक शिक्षा, अस्पतालों और सांस्कृतिक सेवाओं को बढ़ावा दिया जाएगा
4: ग्रामीण सरकारों का विकास
अपने इस ‘विलक्षण’ ग्रामीण चीन का परीक्षण करने के लिए सीसीपी के प्रचार विंग ने सिचुआन प्रांत के मियांयांग को अपनी पायलट परियोजना के रूप में चुना। इसके लिए चीन में प्रसिद्ध व्लॉगर, ली ज़िकी, ‘ग्रामीण पुनरोद्धार’ की नीति की ओर एक सरकारी बदलाव के साथ, ग्रामीण उद्यमशीलता का विकास का प्रचार करने के लिए वर्ष 2017 के बाद से राजनीतिक पोस्टर गर्ल के रूप में प्रसिद्ध हो गई।
अपने राष्ट्रीय स्वप्न को पूरा करने के लिए, पिछले कुछ वर्षों में चीन ने एलएएसी के पास कई नए गाँवों की स्थापना की है, विशेष तौर पर अरुणाचल प्रदेश के पास। चीनी राष्ट्रीय राजमार्ग G219, ल्हासा-न्यिंगची रेलवे, मेडोग ज़यू सड़क और हवाई क्षेत्रों और हवाई अड्डे उन बड़े विकास कार्यों में शामिल हैं, जो बीते वर्षों में चीन की ओर से किए गए हैं।
IMINT विशेषज्ञों की मानें तो बॉर्डर के पास चीन द्वारा करवाया जा रहा निर्माण कार्य दिन दोगुनी और रात चौगुनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। अपनी तरफ के मैदानी इलाकों के साथ चीन पाखंड के जरिए भारतीय सीमा के पास के गाँवों में बुनियादी ढाँचे, नेटवर्क, निगरानी संरचानों के विकास का बहाना बनाकर आगे बढ़ता जाता है। सीमावर्ती क्षेत्रों में 5G तकनीक को स्थापित करके चीन भारत की सीमा संबंधित चिंताओं में एक के बाद एक अध्याय ही जोड़ रहा है।
भले ही, भारत ने इस पहलू पर काम करने और समझने में समय लगाया लेकिन, अब सत्ताधारी सरकार सीमा क्षेत्र को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इसी वर्ष की शुरूआत में उत्तरी सीमावर्ती गाँवों के विकास के लिए सरकार ने केंद्रीय बजट 2022-23 में ‘वाईब्रेंट विलेज’ कार्यक्रम की शुरूआत की थी।
यह कार्यक्रम चीन बॉर्डर रोड प्रोजेक्ट (ICBRs) के अतिरिक्त है। एलएएसी पर कार्यरत योजनाओं में 73 रणनीतिक सड़कें, 125 पुल, 9 रणनीतिक रेल लाइनें हैं। साथ ही, 25 हवाई क्षेत्र और लैंडिंग ग्राउंड का विकास भी किया गया है।
आधिकारिक प्रेस रिलीज के अनुसार ‘वाईब्रेंट विलेज’ कार्यक्रम 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के 117 सीमावर्ती जिलों में लागू किया जाएगा। इनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं। इसका उद्देश्य बुनियादी ढ़ाँचे, आवास, पर्यटन केंद्रों , सड़क संपर्क और उनकी आजीविका सृजन की ओर काम करना है।
22 नवंबर, 2022 को अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा कि पश्चिम से पूर्व की ओर पाइपलाइन का निर्माण कार्य किया जाना है। सड़क परियोजनाओं के लिए राज्य को 44,000 करोड़ रुपए मिल चुके हैं। वाईब्रेंट विलेज योजना का उद्देश्य एनसीसी के तहत स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित करना भी है। पीलीभीत (उत्तराखंड) में स्थित रामनगर, जम्मू कश्मीर में स्थित गुरेज ऐसे गाँवों में शामिल हैं जिनका इस कार्यक्रम के तहत विकास किया गया है।
इनके अलावा, पहाड़ी क्षेत्रों में 3डी प्रिंटर सहित आवास और भंडार गृहों का निर्माण ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ भारत की सीमा तैयारियों में भी योगदान दे रहा है।
बहरहाल, इस बदलते समय में देश को अपने नागरिकों, अपने समकक्षों और सबसे महत्वपूर्ण, अपने आलोचकों को संभालने के लिए नई रणनीतियों की आवश्यकता है। अपनी विस्तारवादी नीति और नवीन आर्थिक पहलों के लिए चीन दुनिया के केंद्र में रहता है।
वैश्विक राजनीति के केंद्र में रहने के लिए चीन अपनी ताकत और दिमाग से नित-नई पद्धतियों का निर्माण कर रहा है। हालाँकि, हमें या उसे इस बात को याद रखना चाहिए कि जब कोई व्यक्ति बिना शोर मचाए, अंधेरे में भी काम करता है तब भी उसके पड़ोसी को तो भनक लग ही जाती है।
इस लेख को आप हमारी वेबसाइट पर अंग्रेज़ी में भी पढ़ सकते हैं