चीन और जर्मनी, दोनों भारी उद्योगों वाले देश भयंकर सूखे का सामना कर रहे हैं। चीन की जीवनरेखा कही जाने वाली और एशिया की सबसे बड़ी नदी यांग्त्सी के कई हिस्से सूख चुके हैं, वहीं जर्मनी में सूखे की वजह से किसानों की फसलें तबाह होने की कगार पर हैं।
ब्रिटिश समाचार वेबसाइट दी गार्जियन के अनुसार, चीन के सिन्चुआन प्रांत में बिजली की उपलब्धता में भयंकर कमी आई है, क्योंकि यह प्रांत अपनी उपभोग होने वाली 80 % बिजली पनबिजली यानी नदी के ऊपर बाँध बनाकर उत्पादित की जाने वाली बिजली से पाता है।
भयंकर लू और गर्मी का सामना कर रहे चीन के लिए यांग्त्सी नदी का सूखना और बिजली उत्पादन में कमी आना दोहरी मार के जैसा हो गया है, शिन्चुआन में भयंकर गर्मी की वजह से बिजली की मांग में भी 25% तक का उछाल आया है।
जर्मनी में सूखे का सबसे बुरा असर किसानों पर पड़ा है, जमीन के सूखने और पानी ना बरसने के कारण खेती की जमीन काफी हद तक सूख चुकी है, जिससे प्रति हेक्टेयर फसलों के उत्पादन में कमी आ रही है। यूक्रेन और रूस के बीच छिड़े युद्ध के कारण पहले से ही विश्व भर में खाद्य संकट सामने आ चुका है, इस सूखे ने इससे सम्बन्धित चिंताओं को और बढ़ा दिया है।
चीन में कामकाज ठप
चीन में यांग्त्सी नदी के सूखने से बिजली उत्पादन में आई कमी के कारण कई कारखानों को बंद करना पड़ा है। चीन की स्थानीय न्यूज वेबसाइट साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार, चीन के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में अवस्थित शिन्चुआन प्रांत पनबिजली का सबसे बड़ा उत्पादक है। यह प्रांत इस समय भयंकर सूखे और लू की चपेट में हैं, विश्व की तीसरी सबसे बड़ी और चीन की जीवनदायिनी नदी यांग्त्सी में पानी की मात्रा में भारी कमी आई है और इसके बांधो में पानी सहेजने के लिए बने जलाशयों में पानी की मात्रा में 50% तक की कमी आई है।
पानी की मात्रा में आई इस कमी के कारण बिजली का उत्पादन काफी ज्यादा प्रभावित हुआ है, इसके कारण प्रशासन को बिजली की गंभीर कमी के संकट की घोषणा करनी पड़ी है। इससे काफी कारखानों में कामकाज प्रभावित हुआ है। प्रभावित होने वाली कम्पनियों में टोयोटा, एप्पल के फोन बनाने वाली कम्पनी फोक्सकॉन और अमेरिकी इलेक्ट्रिक कार र्निर्माता टेस्ला जैसे बड़े नाम शामिल हैं।
कारखानों के अलावा खेती पर भी काफी प्रभाव पड़ा है, दी गार्जियन के अनुसार कम से कम 24 लाख व्यक्तियों और 22 लाख हेक्टेयर खेती योग्य भूमि पर इस सूखे की मार पड़ी है, इस सूखे की वजह से करीब 8 लाख लोगों को सरकारी सहायता लेनी पड़ी है।
जर्मनी में किसानों पर सबसे ज्यादा मार
जर्मनी में सबसे बड़ी चिंता फसलों को लेकर है। जर्मनी की सरकारी मीडिया एजेंसी डीडब्ल्यू से बात करते हुए एक स्थानीय किसान ने बताया कि जमीन सूखकर पत्थर जैसी कड़ी हो चुकी है, इससे प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता पर गहरा असर पड़ेगा, हमें कोई भी फसल उगाने के लिए अब ज्यादा पानी का उपयोग करना पड़ेगा।
पिछले साल भी जर्मनी में कम बारिश होने के कारण जमीनों को भरपूर पानी की उपलब्धता नहीं हो पाई थी, इस साल भी अगर माहौल ऐसा ही रहता है तो जमीनें पूरी तरह से सूख जायेगी और उनकी उर्वरा शक्ति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
जहाँ एक ओर भारत के कुछ हिस्से बाढ़ का सामना कर रहे हैं, पाकिस्तान का आधा हिस्सा डूबा हुआ है, अत्यधिक गर्मी के कारण जंगलों में आग लग रही है, वहीं जर्मनी और चीन में इस प्रकार के भयंकर सूखे से पता चल रहा है कि ग्लोबल वार्मिंग अब आगे के समय की बात नहीं बल्कि हमारा वर्तमान है जिससे गंभीरता से निपटने की आवश्यकता है।