जिस चीनी अर्थव्यवस्था से यह उम्मीद थी कि वह वर्ष 2022-23 में वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में एक तिहाई योगदान देगी वह असामान्य रूप से धीमी हो गई। ऐसा नहीं कि चीन की अर्थव्यव्स्था में यह मंदी अचानक आई। पिछले लगभग दो वित्त वर्ष से अलग-अलग सेक्टर में परेशानियाँ सामने आ रही थीं पर यह भी सच है कि चीन से बहुत कम खबरें छन कर वैश्विक पटल तक पहुँच पाती हैं।
अब यह दिखाई दे रहा है कि यह मंदी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, क्योंकि चीन में विभिन्न वस्तुओं के आयात में भारी गिरावट दर्ज हुई है। इसके परिणामस्वरूप एशिया और अफ्रीका के कई देश प्रभावित हुए है और 2023 के पहले सात महीनों में आयात में कुल 14% की गिरावाट दर्ज दर्ज हुई है। कई कंपनियां तथा देश, जो चीन से होने वाले व्यापार पर बहुत ज्यादा निर्भर रहते है, वे इस मंदी का प्रभाव ज्यादा महसूस करने लगे हैं।
एशिया मंथली की हाल में आई एक रिपोर्ट के अनुसार सेमीकंडक्टर के गिरने का प्रभाव पूरे एशिया में मैन्युफ़ैक्चरिंग और निर्यात में महसूस किया गया है। वर्ष 2022 के बाद से वस्तुओं के निर्यात में गिरावट का रुझान है। खास कर पूर्वी एशिया से निर्यात, ताइवान (कुल निर्यात में सेमीकंडक्टर का हिस्सा: 38.4%) और दक्षिण से निर्यात कोरिया (16.5%), जिसके लिए सेमीकंडक्टर प्रमुख उद्यम है, में काफी गिरावट आई है।
चीन की कमजोर होती अर्थव्यवस्था को देख कर और इसके प्रभावों से चिंतित हो वित्तीय बाजार भी अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। जून तक, अधिकांश संस्थाओं ने चीनी वित्तीय प्रणाली के लिए वार्षिक जीडीपी वृद्धि के पूर्वानुमान को 6 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया था।
गहराते रियल एस्टेट संकट और सख्त कोविड लॉकडाउन की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था वर्ष 2022 की पहली छमाही में दो दशकों में सबसे धीमी गति से आगे बढ़ी। आयात और फैक्ट्री गतिविधियों में भी कमजोर घरेलू मांग की वजह से गिरावट देखने को मिली। चीन की सरकार ने बुनियादी ढांचे पर खर्च और ब्याज दरों में कटौती कर अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया, परंतु वांछित सुधार संभव न हो सका।
वेल्स फ़ार्गो के अर्थशास्त्री चीन की अर्थव्यवस्था की ‘हार्ड लैंडिंग’ की भविष्यवाणी कर चुके हैं।
वैश्विक विकास के मुख्य चालक और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में चीन की बढ़ती चिंताए वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी जोखिम पैदा कर रही है और कई देशों की अर्थव्यवस्था पर अपना प्रभाव डाल रही हैं। चूँकि चीन एक मुख्य व्यापारिक भागीदार वाला देश है, इसके कमजोर घरेलू मांग अन्य देशों से आयात को कम कर रहे है। वित्तीय बाजारों में भी चीनी बॉन्ड और शेयर्स से सुरक्षित ठिकानों की ओर वित्त का आउटफ्लो देखा जा रहा है। एशिया में पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं में चीन से भी कम पर्यटक आ रहे हैं। चीन से बड़ा राजस्व कमाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी प्रभावित हुई हैं।
चीन की इकोनॉमी के साथ क्या समस्याएं है?
दुनिया भर के निवेशकों ने विकास से जुड़ी चिंताओं की वजह से हाल में अरबों डॉलर चीनी शेयर बाजारों से निकाल लिए हैं। मुख्य बैंकों ने भी चीनी इक्विटी के लिए लक्ष्य में कटौती की है। अमेरिका में आयातित चीनी वस्तुओं की कीमतों में हर महीने गिरावट दर्ज की गई है जिसके परिणामस्वरूप मुनाफा घट गया है।
डॉलर के मुकाबले युआन का मूल्यह्रास उच्च सहसंबंध के माध्यम से लैटिन अमेरिका, पूर्वी यूरोप तथा एशियाई देशों की मुद्राओं को भी प्रभावित कर रहा है। कमजोर आय और आवास मंदी ने चीनी ग्राहक खर्च पर अंकुश लगाया है जिसके कारण थाईलैंड जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में पर्यटन प्रभावित हुआ है। मौद्रिक समस्याओं के कारण इस वर्ष डॉलर के मुकाबले युआन में 5% से अधिक की गिरावट आई है। इसी महीने युआन डॉलर के मुक़ाबले 7.3 के करीब पहुंच गया है।
चीन में ब्याज दरों में कटौती ने क्षेत्र में विकल्प चाहने वाले विदेशी खरीदारों के लिए इसके बांड की अपील कम कर दी है। वर्ष 2022 में अधिकतम महीनों के चीन का आयात में भारी गिरावट देखने को मिली जिसके कारण अफ्रीका, एशिया और उत्तरी अमेरिका के निर्यातकों को काफी नुकसान हुआ। अगर मंदी बनी रही तो कमोडिटी शिपमेंट में भी इसी तरह की गिरावट आ सकती है।
इसके साथ रियल एस्टेट क्षेत्र के संकट के कारण घर खरीदना और निर्माण की गतिविधि अपने न्यूनतम स्तर पर है। इससे पहले रियल एस्टेट विकास का एक मुख्य चालक हुआ करता था। साथ ही यह दिखाई दे रहा है कि बढ़ते हुए ऋण संबंधित मुद्दे, विशेष कर स्थानीय सरकारी क्षेत्र में अगर समाधान नहीं हुआ तो व्यापक जोखिम उत्पन्न होने की संभावना है।आधिकारिक तौर पर जनवरी से जुलाई के बीच इस क्षेत्र में निवेश में कुल 8.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
चीन की अर्थव्यवस्था की समस्या यह भी है कि लगातार कोविड का प्रकोप और उसके परिणामस्वरूप लागू हुई लॉकडाउन पॉलिसी ने आपूर्ति श्रृंखलाएं और आंतरिक व्यवसायों को बार बार बाधित कर उन्हें भारी रूप से क्षति पहुँचाया है। इसके साथ ही गिरती जन्म दर और उम्रदराज़ आबादी जैसी जनसांख्यिकीय बाधाओं का अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक खपत पर प्रभाव साफ़ दिखाई देने लगा है।
इतनी बड़ी जनसंख्या पर क्या असर हो सकता है?
वर्तमान में चीन की जनसंख्या 1.4 अरब से अधिक है। इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में ऐसे आए आर्थिक संकट का तात्पर्य है कि ग्राहकों/उपभोक्ताओं के एक विशाल समूह के खर्च करने की शक्ति कम या फीकी पड़ जाती है। इससे अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों पर भारी असर पड़ता है। वर्तमान में चीन का घरेलू कर्ज जीडीपी का 63.5% है, जो जल्द ही 65% हो जाएगा। एक अनुमान के अनुसार चीन का कुल कर्ज उसके जीडीपी का 273% तक हो सकता है। ऐसे में यदि ग्रोथ लगातार काम होने लगे तो रोजगार की समस्या पैदा होना लाज़िमी है, और चीनी अर्थव्यवस्था में यह दिखाई देने लगा है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इसके कारण राजनीतिक तथा सामाजिक तनाव भी बढ़ सकता है।
पिछले कुछ वर्षों में स्थानीय सरकार का बजट असाधारण रूप से भूमि की बिक्री और विकास पर निर्भर करता रहा है। तथा चीन की सरकार अपने राजस्व का लगभग 30% भूमि के बिक्री होने से कमाती है, जो अब धीरे धीरे गिरते जा रहा है। लंबे समय तक संपत्ति में गिरावट से राजकोषीय स्थिरता को खतरा है। दीर्घकालिक ठहराव के कारण पूंजी का पलायन भी हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि निवेशकों का चीनी अर्थव्यवस्था के विकास की बातों और वादों पर से भरोसा उठता जा रहा है। इससे वित्तीय बाज़ार और अधिक असंतुलित हो जाते हैं।
चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट से वैश्विक अर्थव्यवस्था को क्या नुकसान है?
चीन में गिरती मांग वैश्विक व्यापार के प्रवाह को बड़े पैमाने पर कमजोर कर देगी। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन कई देशों के लिए एक मुख्य व्यापारिक भागीदार है। ऐसे में उपजी इस स्थिति से निर्यात पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं पर भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा। वैश्विक स्तर पर विनिर्माण उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाएं चीनी मांग पर बहुत अधिक निर्भर रही हैं। मंदी की वजह से कटौती का दबाव बन सकता है।
पिछले कुछ समय से कमोडिटी निर्यातकों के राजस्व में भारी गिरावट देखी जा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन की गैसोलीन/ईंधन, भोजन, अन्य कच्चे माल और धातु की जरूरतें कम हो रही हैं। वित्तीय बाज़ारों का आईपीओ, निवेश आदि के माध्यम से चीन पर प्रभाव है इसलिए लंबे समय तक मंदी होने के कारण वैश्विक पूंजी बाज़ारों में असंतुलन और अस्थिरता बढ़ा सकती है।
निवेश, आयात और उपभोग के मुख्य इंजन के रूप में चीन के बिना विश्व का आर्थिक विकास काफी कमजोर होगा। खर्च का बोझ एक तरह से जोखिम पैदा करता है। कुल मिलाकर हम यह समझ सकते हैं कि मुख्य क्षेत्रों में आंतरिक समस्याओं ने चीन के आर्थिक विकास मॉडल को बहुत कमजोर कर दिया है। लगातार ठहराव से विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण असर देखने को मिल सकता है। साथ ही चीन को घरेलू स्तर पर काफी राजनीतिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है।
आईएमएफ के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (अप्रैल 2023) के रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में चीन का सरकारी ऋण जीडीपी का 77% था, जिससे यह 188 देशों में 57वें स्थान पर था। चीन का सरकारी ऋण 74% अंक बढ़ जाएगा, जो जापान की 81% के बाद दूसरे स्थान पर होगा। वर्ष 2027 तक चीन का सरकारी ऋण जीडीपी का 101% तक पहुंच जाने का आकलन है, जिससे यह जी-20 देशों में छठे स्थान पर पहुंच जाएगा।
चीन की विशाल अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक गिरावट का रुख विनिर्माण, वस्तुओं, निवेश, वैश्विक मांग और व्यापार की समस्त ताकत के लिए एक पर्याप्त जोखिम पैदा करता है। अधिकांश देश कम से कम कुछ असर महसूस करेंगे, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए चीन के बढ़ते महत्व को प्रदर्शित करेगा। ऐसे में उन खतरों पर कड़ी निगरानी की आवश्यकता है जो विश्वव्यापी प्रभाव के साथ चीन में कठिन आर्थिक स्थिति पैदा कर सकते हैं।