हाल के विधानसभा चुनाव के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी ने एक नया प्रयोग शुरू किया है। प्रयोग है, प्रदेश में डिप्टी सीएम का पद लाने का।
बीते कल कॉन्ग्रेस हाईकमान ने टीएस सिंह देव को छत्तीसगढ़ का डिप्टी सीएम बनाने की घोषणा की। राज्य के गठन के बाद पहली बार डिप्टी सीएम का पद छत्तीसगढ़ सरकार में लाया गया।
इससे पहले यही प्रयोग साल 2022 में हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के बाद किया गया। अभी कर्नाटक में भी डिप्टी सीएम का पद डीके शिवकुमार की झोली में डाला गया।
इस प्रयोग पर बात हो उससे पहले टीएस सिंह देव और भूपेश बघेल के बीच की कुछ बातें जान लेते हैं। टीएस सिंह सरगुजा राजपरिवार के 118वें राजा हैं और साल 2013 के आँकड़ों के हिसाब से छतीसगढ़ कॉन्ग्रेस पार्टी के सबसे अमीर विधायक हैं। संपत्ति के मामले में सीएम भूपेश बघेल भी इनके बाद ही आते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में ढ़ाई-ढ़ाई साल का सीएम फॉर्मूला लगभग साढ़े चार साल बीतने के बाद भी लागू नहीं हो पाया। बीते कुछ वर्षों में सरकार के भीतर काफी उठापटक देखने को मिली थी। तनातनी इतनी थी कि हाईकमान ने कई बार दोनों नेताओं को दिल्ली तलब किया तो कभी खुद छतीसगढ़ पहुंच गए।
उस समय प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने कहा था कि नेतृत्व नहीं बदलेगा जबकि टीएस सिंह देव का कहना था कि सबका समय आता है। आज उनका समय आया है लेकिन सीएम के रूप में नहीं बल्कि डिप्टी सीएम के रूप में।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि चुनाव से 4 महीने पहले डिप्टी सीएम बनाना पड़ गया। इसे समझने के लिए हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में बनी स्थितियों को समझना पड़ेगा।
एक लम्बे अरसे बाद कॉन्ग्रेस को अगर किसी राज्य में जीत मिली थी तो वह था हिमाचल प्रदेश। यहां कॉन्ग्रेस की परीक्षा भी थी क्योंकि वीरभद्र सिंह की अनुपस्थिति में कॉन्ग्रेस पहली बार यहां चुनाव लड़ रही थी और पार्टी की अन्दरूनी कलह भी चरम पर थी।
यहां चुनाव का सारा जिम्मा प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके विश्वस्त भूपेश बघेल संभाल रहे थे। दिलचस्प बात ये है कि राहुल गांधी को इस चुनाव से दूर ही रखा गया था। तब पहली बार था जब प्रदेश में वीरभद्र सिंह की अनुपस्थिति और पार्टी की अन्दरूनी कलह को शान्त कर राजपरिवार के विश्वस्त मुकेश अग्रिहोत्री को डिप्टी सीएम बनाया गया था।
तब यह माना गया था कि पार्टी की अन्दरूनी कलह को सड़क पर आने से बचाने का काम भूपेश बघेल और प्रियंका गांधी ने किया है और इस जीत से दोनों नेताओं का कद भी पार्टी के भीतर भी बड़ा हो गया था।
हाल के कर्नाटक चुनाव में भूपेश बघेल और प्रियंका गांधी की कोई भूमिका देखने को नहीं मिली। कर्नाटक की जीत से एक ओर राहुल गांधी का कद बढ़ा तो दूसरी ओर अध्यक्ष के नाते मल्लिकार्जुन खड़गे को भी अपनी पीठ थपथपाने का एक मौका मिल गया क्योंकि वह उनका गृहराज्य था।
राहुल गांधी का कद बढ़ने की बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि राहुल गांधी उत्तर भारत से पलायन कर दक्षिण की ओर गए और पार्टी उन्हें इस बात का श्रेय भी दे रही है।
पार्टी के भीतर जो कलह हिमाचल में देखने को मिली थी, लगभग वही कलह कर्नाटक में भी देखने को मिली लेकिन यहां भी मामला शान्त करवाया गया। वहीं, राजस्थान में पार्टी की अन्दरूनी कलह सड़क पर है।
ऐसे में हिमाचल और कर्नाटक से पहले छतीसगढ़ एकमात्र राज्य था, जहां अशांति थी, लेकिन कम थी। तो फिर प्रियंका गांधी गुट के विश्वस्त भूपेश बघेल का कद बढ़ना लाजिमी था।
अभी 4 राज्यों में कॉन्ग्रेस की सरकार है। ऐसे में इसे पार्टी के भीतर भी प्रियंका और भूपेश बघेल का कद सीमित करने के रूप में देखा जा सकता है। साथ ही कर्नाटक में जीत के बाद अब पार्टी के पास संसाधन के लिहाज से भी अधिक विकल्प सामने हैं। ऐसे में पार्टी भूपेश बघेल का कद कम करने का खतरा मोल ले सकती थी और उसने यही किया।
एक दूसरा पहलू यह भी है कि कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में डिप्टी सीएम चुनाव जीतने के बाद घोषित किया गया था, जबकि, छतीसगढ़ में चुनाव होने से पहले। तो क्या पार्टी के भीतर की अन्दरूनी कलह सड़क पर ना आए इसलिए 4 माह पहले ही डिप्टी सीएम मॉडल अपनाया जा रहा है?
वहीं, सवाल यह भी है कि अगर यह पार्टी की अन्दरूनी कलह का मसला नहीं है तो फिर ढ़ाई-ढ़ाई साल वाला फॉर्मूला नजरअंदाज कर क्या अब डिप्टी सीएम 4 माह के भीतर प्रदेश का कायाकल्प कर देंगे?
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