शिवाजी महाराज अपनी वीरता और रणनीति के साथ अपनी तीक्ष्ण कूटनीति से भी विरोधियों को हतप्रभ कर देते थे। अफजल खान का वध जहां उनकी रणनीतिक चातुर्य का प्रतीक बनकर इतिहास में स्थापित हो गया। वहीं उनकी कूटनीति के भी ऐसे अनेकों उदाहरण हैं, जिनसे तत्कालीन भारतीय राजनीतिक और सांस्कृतिक समझ की बेहतरीन समझ और विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकलने के उनकी क्षमता का पता चलता है। ऐसा ही एक उदाहरण वह पत्र है, जिसमें शिवाजी महाराज ने औरंगजेब की ‘जजिया कर’ का विरोध करते हुए लिखा था और यह चुनौती दी कि यदि उनमें हिम्मत है तो महाराणा राजसिंह और उनकी प्रजा से ‘जजिया कर’ लेकर दिखाएं।
शिवाजी महाराज इस पत्र में औरंगजेब को जजिया का विरोध करते हुए लिखते हैं कि “यदि आप लोगों को पीड़ित करने और हिंदुओं को आतंकित करने को धार्मिकता समझते हैं तो सबसे पहले महाराणा राजसिंह, जो कि हिंदुओं का नेतृत्व कर रहे हैं, के ऊपर जजिया कर लगाकर दिखाइए।”
अब प्रश्न यह उठता है कि औरंगजेब से हर मोर्चे पर लगातार लड़ रहे छत्रपति शिवाजी महाराज ने महाराणा राजसिंह का नाम लेकर औरंगजेब को क्यों उकसा रहे थे और इसके जरिए वह औरंगजेब तक क्या संदेश पहुंचाना चाह रहे थे।
असल में महाराणा राजसिंह ने अपने जीवन में कई बार औरंगजेब को खुली चुनौती दी। औरंगजेब ने उन पर विजय प्राप्त करने के लिए कई अभियान चलाए, लेकिन वह किसी भी अभियान में पूरी तरह सफल नहीं हुआ। अपने सीमित संसाधनों लेकिन अपरिमित साहस के कारण वह औरंगजेब के विरोध और धर्मरक्षा के प्रतीक बन गए थे। अपने पत्र में शिवाजी महाराज ने कूटनीतिक ढंग से यह संदेश देने की कोशिश की थी कि भले ही दिल्ली की गद्दी पर कोई सुल्तान बैठा हो लेकिन हिन्दू उसे अपना शासक नहीं मानते।
कौन थे महाराणा राजसिंह
महाराणा राजसिंह भारतीय इतिहास के बहुत निर्णायक मोड़ पर मेवाड़ के शासक बने थे। उन्होंने 10 अक्टूबर, 1652 से लेकर 22 अक्टूबर, 1680 तक मेवाड़ पर शासन किया। यह वही समय था जब औरंगजेब अपनी शक्ति के शिखर पर था और अपनी कट्टरपंथी नीतियों को भारत पर थोपने की कोशिश कर रहा था। उन्होंने कई अवसरों पर औरंगजेब को चुनौती दी और धर्मप्रियता और साहस को लेकर इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी। औरंगजेब महाराणा राजसिंह से कुछ व्यक्तिगत कारणों से भी चिढ़ता था, उनमें से एक कारण किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमती से विवाह भी था। चारूमति औरंगजेब से विवाह नहीं करना चाहती थी, इसलिए उसके आग्रह पर औरंगजेब की उपेक्षा करते हुए महाराणा राजसिंह से उनसे शादी कर ली थी।
जून 1659 में गद्दी पर बैठने के बाद भारत में इस्लामी शासन की स्थापना के लिए अनेक शासकीय आदेश जारी किए। इसी क्रम में 9 अप्रैल, 1969 को उन्होंने हिन्दू मंदिरों और विद्यालयों को तोड़ने के लिए एक आदेश जारी किया। उसके बाद सम्पूर्ण भारत में महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों पर स्थित मंदिरों को तोड़ने का एक अभियान चला। इसी क्रम में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली, मथुरा में बने भव्य केशव राय मंदिर को रमज़ान के महीने में 1080 हिजरी (13 जनवरी-11 फरवरी 1670) में फिर से ध्वस्त कर दिया गया था।
इसी क्रम में जब गोवर्धन स्थित श्रीनाथ जी के विग्रह को वहां से बचाकर अन्य कहीं स्थापित करने के प्रयास वहां के पुराहितों ने प्रारम्भ किए तो औरंगजेब के भय से अन्य कोई शासक विग्रह को अपने राज्य में स्थापित करने के लिए तैयार नहीं हुआ। जब पुरोहितों ने मेवाड़ के शासक महाराणा राजसिंह से श्रीनाथ के मंदिर के लिए जगह देने का आग्रह किया तो वह सहर्ष तैयार हो गए और पुरोहितों को आश्वस्त किया कि श्रीनाथजी मंदिर तक पहुंचने के लिए औरंगजेब को 1 लाख राजपूतों के शवों से होकर गुजरना पड़ेगा। श्रीनाथजी का मंदिर अब जहां पर स्थित है, उसे श्रीनाथद्वारा के नाम से जाना जाता है।
श्रीनाथद्वारा की स्थापना
जून 1659 में गद्दी पर बैठने के बाद भारत में इस्लामी शासन की स्थापना के लिए अनेक शासकीय आदेश जारी किए। इसी क्रम में 9 अप्रैल, 1969 को उन्होंने हिन्दू मंदिरों और विद्यालयों को तोड़ने के लिए एक आदेश जारी किया। उसके बाद सम्पूर्ण भारत में महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों पर स्थित मंदिरों को तोड़ने का एक अभियान चला। इसी क्रम में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली, मथुरा में बने भव्य केशव राय मंदिर को रमज़ान के महीने में 1080 हिजरी (13 जनवरी-11 फरवरी 1670) में फिर से ध्वस्त कर दिया गया था।
इसी क्रम में जब गोवर्धन स्थित श्रीनाथ जी के विग्रह को वहां से बचाकर अन्य कहीं स्थापित करने के प्रयास वहां के पुराहितों ने प्रारम्भ किए तो औरंगजेब के भय से अन्य कोई शासक विग्रह को अपने राज्य में स्थापित करने के लिए तैयार नहीं हुआ। जब पुरोहितों ने मेवाड़ के शासक महाराणा राजसिंह से श्रीनाथ के मंदिर के लिए जगह देने का आग्रह किया तो वह सहर्ष तैयार हो गए और पुरोहितों को आश्वस्त किया कि श्रीनाथजी मंदिर तक पहुंचने के लिए औरंगजेब को 1 लाख राजपूतों को शवों से होकर गुजरना पड़ेगा। श्रीनाथजी का मंदिर अब जहां पर स्थित है, उसे श्रीनाथद्वारा के नाम से जाना जाता है।
जजिया का विरोध
औरंगजेब ने 2 अप्रैल, 1679 को हिंदुओं पर जजिया कर लगाने का शासकीय आदेश निकाला। महाराणा राजसिंह पहले शासक थे जिन्होंने औरंगजेब की जजिया नीति का विरोध किया। उन्होंने इसके विरुद्ध औरंगजेब को एक तीखा पत्र लिखा और जोधपुर के राठौरों के साथ मिलकर इसका विरोध किया।
संभवतः इसी कारण वह जजिया कर के विरोध का राष्ट्रीय स्वर बन गए। औरंगजेब के मेवाड़ और जोधपुर में जजिया कर थोपने के प्रयास बुरी तरह विफल रहे। सम्भवत: इसी कारण छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को चिढ़ाने और सीमाओं की याद दिलाने के लिए महाराणा राजसिंह का नाम लिया था। संभवत: इसी कारण से चिढ़कर औरंगजेब ने 1680 पर आक्रमण किया, लेकिन वह मेवाड़ के खिलाफ बढ़त नहीं हासिल कर सका।
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यह लेख डॉ जयप्रकाश सिंह ने लिखा है। डॉ सिंह हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कश्मीर अध्ययन केंद्र में सहायक आचार्य और हायब्रिड वारफेयर के विशेषज्ञ हैं।