भारतवर्ष ने हजारों वर्षों के अपने इतिहास में अनेकों राजा देखे हैं जो शौर्य और शासन की मिसाल बन गए। मुगल आक्रांताओं से पूर्व और मुगल काल के दौरान भारत में मौर्य, विजयनगर, गुप्त, सिसोदिया, कच्छावा और कई शक्तिशाली वंशों का राज रहा। हालाँकि इनमें आज भी एक नाम ऐसा है जो किसी सांस्कृतिक दबाव का साक्षी नहीं बन पाया और जो आज भी भगवान के समान पूजनीय है। जिनकी शिक्षा इतनी शक्तिशाली थी कि उनके स्वर्गवास के पश्चात भी मराठा साम्राज्य कई वर्षों से अधिक समय तक राज करता रहा। हम बात कर रहे हैं मराठा साम्राज्य के वीर छत्रपति शिवाजी महाराज की।
राजे शिवाजी ने मुगलों पर पहली जीत मात्र 16 वर्ष की आयु में प्राप्त कर ली थी। उनकी वीरता और शौर्य के इतर उन्हें आज भी याद किया जाता है तो उनकी रणनीतियों, शिक्षाओं और सबसे महत्वपूर्ण उनकी व्यावसायिक बुद्धिमता के कारण। भारतवर्ष में वीर राजाओं की कमी नहीं रही पर जो स्थान शिवराय को मिला है वो मात्र उनके युद्ध कौशल के कारण नहीं बल्कि उनकी राजनीतिक और सामरिक सूझबूझ, अर्थव्यवस्था और हिंदवी स्वराज के उनके दर्शन के कारण मिला।
स्वराज के लिए शिवाजी ने अपनी पत्नी को कहा था कि स्वराज से मेरा अर्थ है कि मैं वह कर पाऊं जो मैं करना चाहता हूं और जो मैं नहीं करना चाहता उसके लिए स्पष्ट मना कर पाऊं। उनकी नीतियों ने हर वर्ग को स्वराज के लिए युद्ध का हिस्सा बना दिया। वर्ग का जिक्र इसलिए है क्योंकि वर्ण व्यवस्था का रूप जो आज विद्यमान है वो औपनिविशिक काल यानी अंग्रेजों की देन है। मराठा साम्राज्य या किसी हिंदू साम्राज्य में वर्ण व्यवस्था जैसा दुष्प्रचार विद्यमान नहीं था। जनमानस अपने नेता या राजा और माटी के लिए लड़ा करते थे मात्र अपने वर्ण के लिए नहीं।
वर्तमान में जब भारत अपने सांस्कृतिक पुनरुत्थान का साक्षी बन रहा है तो छत्रपति शिवाजी की जयंती पर यह जान लेना आवश्यक है कि औपनिविशिक मूलक हमारी सांस्कृतिक पहचान की नींव नहीं रहे।
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छत्रपति शिवाजी का युद्ध कौशल और गुरिल्ला नीतियाँ प्रभावी तो थी ही पर उनके भयंकर संख्याबल वाले विरोधी उनके दृष्टिकोण की वजह से हार का सामना करते थे। अपनी मां जीजाबाई द्वारा शिक्षित शिवराय ने आर्थिक, सामाजिक मोर्चे पर अभूतभूर्व काम किया। उनके इन्हीं कामों ने युद्ध में मनवांछित परिणाम भी दिलाए। जब स्वराज की दिशा में शिवराय ने कार्य आरंभ किया तो जागीरदारी व्यवस्था को एक समस्या के तौर पर देखा। जाहिर है जागीरदार वर्ग शक्तिशाली था और राजाओं का प्रिय था। शिवराय को भान था कि ऐसा वर्ग हर परिस्थिति में अपने निजी हित के लिए काम करेगा स्वराज के लिए नहीं इसलिए इस व्यवस्था का विध्वंस आवश्यक है। जागीरदार अगर कर संग्रह करेंगे तो न तो राज्य के काम आएगा न ही स्वराज के, इसी विचार के साथ शिवराय ने अपनी सेना का गठन किया और जागीरदार व्यवस्था को समाप्त करने के पश्चात कर संग्रह का कार्य भी अपने लोगों को दिया जिससे राज्य कोष स्थिर रहे।
कर संग्रह और सेना की यह व्यवस्था के लिए कमान शृंखला बनाई गई थी जो सीधा राजे से जुड़ी होती थी। गौर करने वाली बात है कि ऐसी कमान शृंखला को लागू करने वाले शिवराय प्रथम रहे। कमान शृंखला की कसौटी शिवराय ने कौशल को रखी जिससे काबिल व्यक्ति व्यवस्था में शामिल हो। वर्ण और वंशवाद को समाप्त करने की ओर ये उनका पहला कदम था।
कमान शृंखला के साथ ही शिवराय ने सर्वप्रथम जो कार्य किया वो था आत्मनिर्भर बनने का। उन्हे पता था पूर्ण स्वत्रंता के लिए आर्थिक, सामाजिक एवं हर मोर्चे पर आत्मनिर्भरता अपरिहार्य है। आत्मनिर्भरता का यह दर्शन ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में शासन का कितना महत्वपूर्ण अंग है, उसका भान वर्तमान भारत को है।
शिवराय ने दूसरा सबसे बड़ा कदम उठाया वंशवाद पर प्रहार करके। अब ये समझना आवश्यक है कि किसी भी प्रान्त या क्षेत्र की दृढ़ता उसकी आर्थिक संपन्नता पर आधारित है। ऐसे में हर राज्य में वतनदार वर्ग होता था जो कर संग्रह करता था और ये वंशवाद पर आधारित था। शिवराय इस व्यवस्था की कमी से परिचित थे। मराठा साम्राज्य को सुदृढ़ करने के लिए इस वंशवाद को समाप्त करना आर्थिक लाभ को प्रोत्साहित तो करता ही, साथ ही श्रेष्ठता की भावना को भी समाप्त करता। इसलिए उन्होंने वंशवाद ग्रसित वतनदारी वर्ग को समाप्त करके अपने लोगों को नियुक्त किया जो कर का संग्रह राजकीय घराने में करते थे। छत्रपति शिवाजी की ये रणनीतियां ऐसी थी जो कोई और शासक सोच नहीं पाया था। उनके समकालीन औरंगजेब सहित अन्य मुगल शासक वतनदार और जागीरदारों पर निर्भर रहा करते थे।
जाहिर है अपनी आत्मनिर्भर और क्रांतिकारी रणनीतियों के चलते उन्हें स्वयं के प्रजाजनों, विशेषरूप से जागीरदार एवं वतनदार वर्गों से विरोध का सामना करना पड़ा। पर वृहत्तर अच्छाई के लिए काम कर रहे शिवराय ने इसके लिए नीतियों में कोई छूट नहीं दी। उनके निर्णय राजनीतिक लाभ के लिए नहीं स्वराज के लिए थे।
मराठा सेना के शौर्य और अदम्य साहस के पीछे शिवराय की दूरदर्शिता ही रही। सर्वप्रथम शिवराय ने सैन्य कानून बनाए। उल्लेखनीय है कि शिवराय जीजाबाई से महाभारत, रामायण और भारतीय राजाओं की कहानियां सुनते हुए बड़े हुए थे जिनमें युद्ध के नियम स्पष्ट बताए गए हैं। महाभारत के युद्ध से पूर्व भी महानुभावों की सभा में युद्ध के नियम निश्चित किए गए थे, तो सैन्य कानून बनाना भारतीय दृष्टिकोण से तो नया नहीं था। हालांकि, जिस दौर में शिवराय शासन कर रहे थे उस समय मुगल सेनाएं भारतीय युद्ध नीतियों पर काम नहीं करती थी। शिवराय ने इसे ही अपनी ताकत बनाया। उन्होंने सैन्य कानून बनाए जिनके कड़े नियम थे। इनमें महिलाओं की रक्षा, कृषि भूमि की रक्षा, गांव और बस्तियों को युद्ध विभीषिका से बचाना और भी कई नियम शामिल थे। गौर करने वाली बात ये है कि शिवराय ने सैनिकों को निर्देश दिए थे कि युद्ध के समय दोनों पक्षों की महिलाओं की रक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। ऐसा न करने पर कड़े दंड़ के प्रावधान थे और इन्हीं सजाओं के कई उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं।
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शिवराय की मराठा सेना के साथ उनकी नौसेना और समुद्री रणनीतियों ने भी इतिहास में अपनी जगह बनाई है। हालाँकि ये युद्ध के लिए कम और साम्राज्य के आर्थिक सुदृढ़िकरण के लिए अधिक थी। राजे को भान था कि पुर्तगाली संख्याबल में अधिक होने के साथ ही समुद्र में संसाधन संपन्न भी है। उनका दृष्टिकोण यह रहा कि अगर भारतीय भूमि पर व्यापार होना है तो उसका सर्वप्रथम लाभ भारतीयों को मिलना चाहिए। इसी के लिए उन्होंने पुर्तगालियों से भारतीयों की मानव तस्करी रोकने की चेतावनी भी दी और कहा कि मुझे मेरे क्षेत्र में मानव तस्करी के मामले नहीं चाहिए। इसके साथ ही सत्ता स्थापित करने के लिए उन्होंने कई किलों को अपनी अधिकार में लिया।
शिवराय के अधिकार में पश्चिमी और पूर्वी तट आने से दो बड़े फायदे पहुँचे। ये पुर्तगालियों के लिए बड़ा प्रहार तो था ही साथ ही मुगलों को समुद्री व्यापार के लिए मिलने वाले युद्धक घोड़ों पर भी रोक लगाने में कामयाब रहे। हालाँकि सबसे बड़ा फायदा तो नौसेना के रूप में था जिससे शिवराय ने कर संग्रह एवं समुद्री व्यापार में मराठा साम्राज्य की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए किया।
शिवराय के विजन और वर्तमान परिस्थितियों को देखें तो इनसे अधिक कुछ प्रासंगिक नजर नहीं आता है। शिवराय ने अपनी शासन काल में युद्ध, व्यापार, समाज और सुशासन की शिक्षाएं दी। जिस आत्मनिर्भरता, महिला सुरक्षा, सुशासन एवं मेक इन इंडिया, मेक फॉर इंडिया की चर्चा हम कर रहे हैं वो मराठा छत्रपति ने 16/18 वीं के दौरान ही स्थापित कर दी थी। भारत आज विकसित राष्ट्र होने के पथ पर अग्रसर है और इसे सुदृढ़ बनाने के लिए हमें किसी ध्यान-दर्शन की ओर मुड़ने की आवश्यकता नहीं। राजे शिवाजी की रणनीतियों का अध्ययन और न सिर्फ भारतीय इतिहास की प्रासंगिकता को बढ़ा देगा बल्कि मराठा साम्राज्य की तरह भारत को मजबूत स्थिति में ला खड़ा करेगा।