दीपावली के तुरंत बाद आने वाला छठ पर्व बिहार की अंतरात्मा में तरंगें उठाता हुआ अब पूरे देश में अपने रंग बिखेर रहा है। बिहार के लोग देश में जहाँ-जहाँ पहुँचे, वहाँ-वहाँ छठ भी पहुँच गया, विदेश भी इससे अछूता नहीं है। चार दिवसीय यह पर्व पाँच दिवसीय दीपावली पर्व के भाईदूज के साथ समाप्त होते ही अगले दिन नहाय खाय से शुरू हो जाता है।
नहाय खाय और खरना
नहाय खाय जैसे नाम से ही स्पष्ट है, नहा धोकर छठ मैया के स्वागत के लिए घर में एक विशेष स्थान अलग करके वहाँ सारी पूजा सामग्री इकट्ठी की जाती है, छठ पूजा का आटा भी अलग से पिसवाया जाता है। पवित्रता के कठोर नियम लागू हो जाते हैं।
अगले दिन खरना होता है, व्रत करने वाले व्रती के सभी लोग पैर छूने आते हैं और प्रसाद पाते हैं, क्योंकि छठ व्रत आसान नहीं है, उसके लिए चाहिए समर्पण और भक्ति।
छठ का दिन – डूबते सूरज को भी नमन
तीसरे और सबसे महत्वपूर्ण दिन, जब छठ की शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और व्रती अपने सूरुज देव को तरह तरह से मनाएँगी। सुबह से ही ठेकुआ का प्रसाद बन रहा है, जिसमें सभी लोग जुटे हैं।
शाम के समय सूरज को अर्घ्य देते समय चढ़ाने के लिए डाला (टोकरा) अभी से सजा लिया जाएगा। एक-एक चीज फल, हल्दी, ईख, नारियल, नीम्बू, तिल, जौ आदि तरह-तरह की प्रकृति प्रदत्त चीजों का निरीक्षण किया जा रहा है कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया। घर का एक पुरुष सदस्य दउरा (टोकरे) को अपने सिर पर रखकर नंगे पैर घाट तक पहुँचेगा।
इस बीच बड़े सुंदर घाट पहले से ही सज रहे हैं। घाटों जलाशयों की सफाई की जा चुकी है, रंग रोगन, केले के पौधों से साज सजावट। व्रतियों के सूप भी अपनी अपनी जगहों पर सज गए हैं। जल में खड़ा होकर और सूप को आगे कर सूर्य देव से माँगा जाएगा, घर की सुख समृद्धि आरोग्यता का वरदान। इस बीच छठ गीतों में व्रती सुरुज देव से अपनी शिकायत भी करती रहेंगी और मन की बात भी करती रहेंगी।
छठ घाट पर रंग नाक तक सिन्दूर लगाए स्त्रियाँ और उनकी सारी सुख सुविधा का ध्यान रखते घर के बच्चे। घाट पर सभी तरह का भेदभाव मिट गया है, सभी जातियों, सभी वर्गों, अमीर-गरीब, एक भाव से भक्त बनकर सूर्य देव के अस्ताचलगामी होने की राह देख रहे हैं। इसके बाद डाला में सब रखकर घर आ जाते हैं।
उगते सूरज को अर्घ्य से पर्व की पूर्णाहुति
चौथे दिन भोर में सूरज उगने से पहले ही सब घाट पहुँच जाते हैं, व्रती फिर से डाला पकड़कर पानी में खड़े होकर सूरज देव के उदित होकर उन्हें अर्घ्य देने का इंतजार करती हैं। अर्घ्य देने के बाद घर के सदस्य डाला सिर पर रखकर नंगे पैर घर आते हैं और व्रती अपना व्रत पूर्ण करते हैं। इसके बाद प्रसाद वितरित किया जाता है।
छठ के जीवन्त गीत सुनके हर किसी को हो जाता है छठ से लगाव
छठ के कुछ खास गीत छठ के साथ अभिन्न रूप से जुड़ गए हैं। शारदा सिन्हा की मधुर आवाज में गाए गए ये गीत अपने आप में पूरा लोक समेटे हुए हैं। कोई छठ से अनजान व्यक्ति भी इन्हें सुनता है तो उसे लगता है वह छठ मना रहा है। जो प्रवासी छठ पर घर नहीं जा पाते, वह भी इन गीतों को सुनकर अपने जेहन में छठ मना लेते हैं।
आइए देखें ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध छठ गीत:
पहिले पहिल हम कईनी
पहली पहली बार छठ का व्रत करने वाली व्रती छठी मैया से परिवार की खुशहाली समृद्धि मांगती है, पर पहली पहली बार व्रत करने में कोई भूलचूक भी हो सकती है, इसलिए क्षमा भी मांगती हुई कहती है,
पहिले पहिल हम कईनी, छठी मईया व्रत तोहार।
करिहा क्षमा छठी मईया, भूल-चूक गलती हमार।
सब के बलकवा के दिहा, छठी मईया ममता-दुलार।
पिया के सनईहा बनईहा, मईया दिहा सुख-सार।
नारियल-केरवा घोउदवा, साजल नदिया किनार।
सुनिहा अरज छठी मईया, बढ़े कुल-परिवार।
घाट सजेवली मनोहर, मईया तोरा भगती अपार।
लिहिएं अरग हे मईया, दिहीं आशीष हजार।
पहिले पहिल हम कईनी, छठी मईया व्रत तोहार।
करिहा क्षमा छठी मईया, भूल-चूक गलती हमार।
केलवा के पात पर
छठ का व्रत व्रती अपने पूरे परिवार के लिए करती है, इस गीत में व्रती कहती है कि, वह यह व्रत अपने बेटा, बेटी और पति के लिए करती है, और सूरज देव से कहती है केले, अमरुद और नारियल के पत्तों के पीछे से आप उगिए, काहे छिप रहे हैं…
केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके झूँके
केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके झूँके
हे करेलु छठ बरतिया से झांके झूँके
हे करेलु छठ बरतिया से झांके झूँके
हम तोसे पूछी बरतिया ऐ बरितया से केकरा लागी
हम तोसे पूछी बरतिया ऐ बरितया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हमरो जे बेटवा पवन ऐसन बेटवा से उनके लागी
हमरो जे बेटवा पवन ऐसन बेटवा से उनके लागी
हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी
हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी
अमरुदिया के पात पर उगेलन सुरूज मल झांके झुके
अमरुदिया के पात पर उगेलन सुरूज मल झांके झुके
हे करेलु छठ बरतिया से झांके झुके
हे करेलु छठ बरतिया से झांके झुके
हम तोसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी
हम तोसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हमरो जे स्वामी पवन एसन स्वामी से उनके लागी
हमरो जे स्वामी पवन एसन स्वामी से उनके लागी
हे करेली छठ बरतिया से उनके लागी
हे करेली छठ बरतिया से उनके लागी
नारियर के पात पर उगेलन सुरूजमल झांके झूके
नारियर के पात पर उगेलन सुरूजमल झांके झूके
हे करेलू छठ बरतिया से झांके झूके
हे करेलू छठ बरतिया से झांके झूके
हम तोसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी
हम तोसे पूछी बरतिया ए बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हमरो जे बेटी पवन ऐसन बेटिया से उनके लागी
हमरो जे बेटी पवन ऐसन बेटिया से उनके लागी
हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी
हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी
हो दीनानाथ
इसमें उदयगामी सूर्यदेव को अर्घ्य देने की प्रतीक्षा कर रही व्रती सूरज से शिकायत करती है कि, आज उगने में इतना देर काहे कर रहे हैं, आप रास्ते में कोई अँधा मिले तो उसे आँख दे देते हैं, कोई बाँझ मिले तो पुत्र दे देते हैं, फिर हम अर्घ्य देने को खड़े हैं तो उगने में विलम्ब काहे कर रहे हैं…
सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ
हे घूमइछा संसार, हे घूमइछा संसार
आन दिन उगइ छा हो दीनानाथ
आहे भोर भिनसार, आहे भोर भिनसार
आजू के दिनवा हो दीनानाथ
हे लागल एती बेर, हे लागल एती बेर
बाट में भेटिए गेल गे अबला
एकटा अन्हरा पुरुष, एकटा अन्हरा पुरुष
अंखिया दियेते गे अबला
हे लागल एती बेर, हे लागल एती बेर
बाट में भेटिए गेल गे अबला
एकटा बाझिनिया, एकटा बाझिनिया
बालक दियेते गे अबला
हे लागल एती बेर, हे लागल एती बेर
सोना सट कुनिया, हो दीनानाथ
हे घूमइछा संसार, हे घूमइछा संसार
उठऊ सुरूज भइले बिहान
सुबह सुबह गंगा में हाथ जोड़कर छठी माई को अर्घ्य देने के लिए बेचैन व्रती सूरज देव को उलाहना देती है कि किसके कोख से जन्म लिए हो जो बिहान माने सुबह हो गई पर उठबे नहीं कर रहे हो…
कोने खेत जनमल धान सुधान हो, कोने खेत डटहर फान
ए माई, कोने कोखि लिहले जनम रे सुरुज देव, उठ सुरुज भईले बिहान
उर खेत जनमल धान सुधान, बड़ैया खेत डटहर आन
ए माई, अम्मा कोखि लिहले जनम रे सुरुज देव, उठ सुरुज भईले बिहान
अम्मा जे जाहि जगावे सुरुज तोरा, दिह सुरुज दरसन अपन
ए माइ, खष्टि अरघि लेले ठाढ-बार गंगिया में जोड़ि हाथ कईले धयान
कोने खेत जनमल धान सुधान हो, कोने खेत डटहर आन
ए माई, कोने कोखि लिहले जनम रे सुरुज देव, उठ सुरुज भईले बिहान