केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित 5 विधेयक मानसून सत्र में लोकसभा के पटल पर रखे हैं। जम्मू-कश्मीर में पिछड़े और दलितों को आरक्षण का लाभ दिलाने, जम्मू-कश्मीर से विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों, सिखों और मुस्लिमों समेत पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर से विस्थापित हुए लोगों का जम्मू-कश्मीर विधानसभा में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए चार विधेयक पेश किए गए हैं।
इसके अतिरिक्त, एक अन्य विधेयक राज्य में जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र के डिजिटल तरीके से जारी किए जाने को लेकर लाया है। वर्तमान में केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की विधानसभा कार्य नहीं कर रही है इसलिए इसके विधायी कार्य संसद के जिम्मे हैं। इसीलिए यह चारों महत्वपूर्ण विधेयक सरकार मानसून सत्र में संसद में लेकर आई है। जम्मू-कश्मीर से जुड़े तीन विधेयक केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा पेश किए गए जबकि एक विधेयक केन्द्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने किया।
कश्मीरी पंडितों और विस्थापितों को उनका अधिकार दिलाएगा यह विधेयक
केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए विधेयक जम्मू-कश्मीर के परिप्रेक्ष्य में बहुत महत्वपूर्ण हैं। चारों विधेयक में से ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) अधिनियम 2023’ सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके अंतर्गत सरकार जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में तीन सदस्य नामित करने का प्रावधान ला रही है।
इन तीन सदस्यों में दो सदस्य जम्मू-कश्मीर से 1980 और 1990 के दशक में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के कारण विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों, सिखों और मुस्लिमों में से जम्मू-कश्मीर विधानसभा में उपराज्यपाल द्वारा नामित किए जाएंगे। इन दो में से एक सदस्य महिला होगी।
विधेयक में दी गई जानकारी के अनुसार, 46,517 परिवार ऐसे हैं जो आतंकी गतिविधियों में बढ़त के चलते कश्मीर से बाहर विस्थापित हुए थे। इनमें से बहुत से परिवार देश के दूसरे हिस्सों यथा- दिल्ली, बेंगलुरु और पुणे जैसे स्थानों पर चले गए हैं।
अब इनको घाटी में वापस लाने और उनमें विश्वास जगाने तथा प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए सरकार इनको जम्मू-कश्मीर विधानसभा में यह बदलाव कर रही है। वहीं, कश्मीर से विस्थापित हुए व्यक्तियों के अतिरिक्त केंद्र सरकार यह भी चाहती है कि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर से जम्मू-कश्मीर आए लोगों को भी उनका प्रतिनिधित्व दिलाया जाए।
इसके लिए सरकार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 1 सदस्य उप राज्यपाल इस समुदाय से भी नामित करेंगे। विधेयक में बताया गया है कि वर्ष 1947 में पाकिस्तानी आक्रमण के समय पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर से 31,779 परिवार जम्मू-कश्मीर आए। इसमें से 26,319 परिवार जम्मू-कश्मीर में ही बसे हैं जबकि बाक़ी देश के अन्य हिस्सों में चले गए हैं।
वर्ष 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भी पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर से 10,065 परिवार आए थे। जम्मू-कश्मीर विधानसभा के नए परिसीमन के पश्चात सीटों की संख्या 114 हो गई है। वर्ष 2019 में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाए जाने के बाद बताया गया था कि अब राज्य की विधानसभा में सीटों की संख्या 107 होगी। 2019 से पहले राज्य में 111 सीटें थी, इसमें से 24 सीटें खाली थी क्योंकि यह पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर के सदस्यों के लिए थी।
हालाँकि, इन सीटों को विधायी कार्यवाही में शामिल नहीं किया जाता था। ऐसे में 87 सीटों से ही सारे काम निष्पादित होते थे। अब इनकी संख्या 114 होगी। जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग ने 9 सीटें जनजातियों के लिए भी आरक्षित करने का सुझाव दिया था। यह आशा जताई जा रही है कि जम्मू-कश्मीर में बीते दिनों सुधरी सुरक्षा व्यवस्था और शान्ति बहाली के माहौल के बाद अब सरकार जल्द ही चुनाव भी कराएगी।
जम्मू कश्मीर के वंचित वर्गों के लिए भी सरकार के विधेयक महत्वपूर्ण
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में तीन सदस्य नामित करने के अतिरिक्त, केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर की कुछ जनजातियों को भी अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को लेकर विधेयक पेश किया है। संसद में जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा पेश किए गए ‘जम्मू-कश्मीर जनजाति विधेयक 2023’ के अंतर्गत गद्दा/गड्डा ब्राह्मण, कोली, पद्दारी जनजाति और पहाड़ी जनजाति समूह को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने का निर्णय लिया गया है।
इस विधेयक के दोनों सदन से पारित होने और राष्ट्रपति द्वारा इस पर हस्ताक्षर होने के पश्चात यह जनजातियाँ भी संविधान के तहत जनजातियों को मिलने वाले लाभ ले पाएंगी। इस निर्णय के पश्चात जम्मू-कश्मीर में जनजातियों की संख्या 16 हो जाएगी। जनजातियों की संख्या बढ़ाने के अतिरिक्त, केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर के वाल्मीकि समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण विधेयक लाई है।
लोकसभा में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा पेश किए गए ‘जम्मू-कश्मीर अनुसूचित जाति (संशोधन) विधेयक 2023’ के अंतर्गत वाल्मीकि शब्द को ‘मेहतर, चूड़ा, भंगी और बाल्मीकि’ शब्द के पर्यायवाची के तौर पर उपयोग किए जाने को लेकर निर्णय लिया गया है। इन सभी में किसी भी उपनाम का उपयोग करने वाले आरक्षण का लाभ उठा सकेंगे।
गौरतलब है कि वर्ष 2019 में धारा 370 के प्रावधानों के हटने और 35A के निष्क्रिय होने से पहले जम्मू-कश्मीर के भीतर वाल्मीकि समाज को कोई भी आरक्षण के अधिकार नहीं प्राप्त थे। उनको शिक्ष्ण संस्थाओं में भी जाने में समस्या होती थी। जम्मू-कश्मीर का संविधान इन्हें किसी भी तरह के लाभ नहीं देता था।
केंद्र सरकार द्वारा यह महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में पेश कर दिए गए हैं और इन पर अब चर्चा होगी, लोकसभा से पारित किए जाने के पश्चात इन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। हालाँकि, विपक्ष के लगातार संसद की कार्यवाही में अड़ंगा डालने के कारण विधेयकों के भविष्य पर अभी संशय है। यदि विपक्ष भी समाज के इन लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार का सहयोग करेगा तो जल्दी ही इन्हें लाभ मिल जाएगा।
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