“गुलामी का प्रतीक किंग्सवे, आज से इतिहास हो गया है, हमेशा के लिए मिट गया है।” बीते गुरुवार यानी 8 सितम्बर 2022 को कर्त्तव्य पथ का उद्घाटन और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह बात कही।
इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा इस बात की ओर संकेत कर रही है कि हमने दासता के एक और चिह्न को मिटा दिया है।

आइए, आपको सुनाएं एक कहानी
बचपन में आप सभी ने एक कहानी पढ़ी होगी। कहानी का शीर्षक था, ‘जॉर्ज पंचम की नाक’। इस कहानी में औपनिवेशीकरण के अंधे प्रभावों और नुकसानों को कमलेश्वर ने बड़े अंदाज से बताया है। वैसे, एक वाक्य में कहें तो आजादी के बाद किस तरह भूरे अंग्रेजों ने जॉर्ज पंचम की नाक को ही अपनी नाक बना लिया, यह उस कहानी का सार था।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने कल अपने उद्बोधन में यही बात कही है। “अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष बाबू की राह पर चला होता तो आज देश कितनी ऊंचाइयों पर होता। दुर्भाग्य से, आजादी के बाद हमारे इस महानायक को भुला दिया गया। उनके विचारों को, उनसे जुड़े प्रतीकों तक को नजरअंदाज कर दिया गया।”
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को स्वाधीन भारत में पिछली सरकारों ने गुमनाम कर दिया था। आज जहाँ नेताजी की प्रतिमा है, एक समय में वहाँ जार्ज पंचम की मूर्ति हुआ करती थी।
दासता का यह प्रतीक सेन्ट्रल विस्ता पुर्नविकास योजना के तहत मिटा दिया गया है। इसी परियोजना को लेकर रुदाली गैंग अब तक तरह-तरह के षड्यंत्र रचती आई है। आज सारे षड्यंत्र धराशायी हो गए हैं।
सेन्ट्रल विस्टा के खिलाफ षड्यंत्र
सेन्ट्रल विस्टा पुर्नविकास प्रोजेक्ट की घोषणा के साथ ही रुदाली गैंग वाम-लिबरल, पीआईएल लॉबी हाय-तौबा मचाने लगी। वामियों ने कोविड-19 महामारी की आड़ में इसे मुद्दा बनाना शुरु किया।
सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के विरोध में षड्यंत्र से भरे लेख अखबारों और वेबसाइट पर भरे पड़े थे। वामियों ने देश और विदेश से जमकर प्रोपगेंडा चलाया। इस समय कोविड-19 महामारी फैली हुई थी, वरना यही गैंग शाहीनबाग की तर्ज पर, कर्तव्यपथ के आस-पास कहीं धरने पर बैठा होता और आजादी, लोकतंत्र जैसे नारों की दुहाई दे रहा होता।
बहरहाल, ऐसा तो नहीं हुआ। हाँ, कहानियाँ खूब गढ़ी गईं। कहानियाँ कुछ इस प्रकार थी। ‘मेरे पिता और मैं यहाँ आकर शाम को बैठा करते थे। यहीं पर एक ठेला लगाने वाले सज्जन हुआ करते थे। उनके परिवार में वो अकेले कमाने वाले थे। सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के बाद पता नहीं वो कहाँ गायब हो गए, उनके परिवार का क्या हुआ, किसी को कोई खबर नहीं।’ इस तरह की कई मनगढंत कहानियाँ किलोमीटर के हिसाब से वामी लोग अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे थे। भावुकतावश कुछ लोग दु:खी (Sad) वाली इमोजी (Emoji) डालने से अपने आप को रोक नहीं पा रहे थे।
वामियों में किसी को श्रमिकों की चिन्ता थी, किसी को संसाधनों की। सरकार ने अपना पक्ष स्पष्ट रूप से जनता के सामने रखा। अब जॉर्ज पंचम की नाक को बचाने वाले लोग कहाँ किसी की सुनते हैं।
सेन्ट्रल विस्टा और षड्यंत्रकारी मीडिया
द प्रिन्ट, वायर, न्यूजलांड्री, कारवाँ और इनके वैचारिक साथी सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को कोसते थके नहीं। कोसने की यह शुरुआत द प्रिन्ट ने की। द प्रिन्ट में शिवम विज ने 28 सितम्बर, 2019 को लेख लिखा। इसमें दावा किया था कि यह मोदी का एक ‘जुमला’ है। आज जब सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पूरा होने के करीब है, तो विज को अपनी बातें निगल लेनी चाहिए।

सिद्धार्थ वरदराजन के वायर ने तो सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के विरोध में आलेखों की झड़ी लगा दी। वायर ने सेन्ट्रल विस्टा परियोजना को एक विध्वंसक अभियान तक कह दिया। ऐसे कई लेख आज भी वायर की वेबसाइट पर देखे जा सकते हैं।

ब्रिटिश अखबार ‘दी गार्जियन’ में भी लेख लिखा गया। 4 जून, 2021 को अनीश कपूर ने सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के विरोध में एक लेख लिखा। इसमें अनीश ने केंद्र की सत्तारूढ़ एनडीए सरकार को हिन्दू तालिबान कहा और दावा किया कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट भारत को इस्लाम रहित करने का एक प्रोजेक्ट है।

खाड़ी देशों से भी प्रोपगेंडा चलाया गया। हर बार की तरह अलजजीरा ने इस षड्यंत्र की कमान संभाली। 17 मई, 2021 को अलजजीरा में सुचित्रा ने लेख लिखा, जिसका सार यह था कि पीएम मोदी, कोविड-19 महामारी के दौरान विस्टा परियोजना ला रहे हैं, यह सरासर संवेदनहीनता है।

पीआईएल लॉबी-
सेन्ट्रल विस्टा परियोजना को रोकने के लिए हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पीआईएल लगाई गई। अन्या मल्होत्रा और सोहेल हाशमी पर तो दिल्ली हाईकोर्ट ने जुर्माना तक लगा दिया।

अन्या और सोहेल ने दिल्ली हाईकोर्ट में कोरोना को मद्देनजर रखते हुए सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रोकने के लिए याचिका दायर की थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस याचिका को किसी अन्य मकसद से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया था और 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगा दिया। हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए यह गिरोह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया लेकिन वहाँ से भी इन्हें लताड़ ही खाने को मिली।
वाम प्रपंच-
सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रोकने के लिए वामियों का गिरोह अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग हथकंडे अपना रहा था। इसी कड़ी में 12 मई, 2021 को वाम-लिबरल गैंग के एक दल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम एक खुला पत्र लिखा। इस पत्र में कोविड-19 महामारी के बीच श्रमिकों से काम करवाने और संसाधनों को महामारी से निपटने की बजाय सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में लगाने पर आलोचना की।
वैसे तो इस पत्र में कई बड़े वामियों के नाम हैं। इनमें कुछ भारतीय हैं तो कुछ विदेशी। इन नामों में अनीश कपूर का नाम भी शामिल है, जिनका जिक्र पहले भी इस लेख में आया है, जो इस प्रोजेक्ट को हिन्दू तालिबानी मानसिकता बताते हैं।
क्या है सेन्ट्रल विस्टा?
इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक के रास्ते को सेन्ट्रल विस्टा के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र में राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, नार्थ-साउथ ब्लॉक, नेशनल आर्काइव ऑफ इंडिया और अन्य कई ऑफिस और मंत्रालय शामिल हैं। तकरीबन 3.2 किलोमीटर के दायरे में फैले इस क्षेत्र को सामूहिक रूप से सेन्ट्रल विस्टा कहते हैं।

सेन्ट्रल विस्ता परियोजना को वर्ष 2026 तक पूरा किया जाएगा। सेन्ट्रल विस्टा परियोजना के अन्तर्गत प्रधानमंत्री कार्यालय, केन्द्रीय सचिवालय, संसद समेत केन्द्र सरकार के सभी मंत्रालय एक ही परिसर से संचालित होंगे।
आगे की राह-
सेन्ट्रल विस्टा परियोजना के अन्तर्गत दासता का एक बड़ा अंश मिट गया है। हालाँकि, दासता की बहुतेरी निशानियाँ अब भी हैं, जो हमारी आजाद आत्मा पर भाले की फाँस बनी हैं। यह नए भारत की शुरुआत है। अमृतकाल भारत की नीति-रीति बदलने का स्वर्णिम अवसर है।