समीर वानखेड़े पर CBI ने आर्यन खान ड्रग मामले में उनके पिता शाहरूख खान से 25 करोड़ रुपए की वसूली की कोशिश के आरोप के आधार पर केस दर्ज किया है।
सवाल वानखेड़े पर उठ रहे हैं और उठने भी चाहिए क्योंकि वे NCB की साख को ताक पर रख रहे थे। एजेन्सियां जांच कर रही हैं और सच सामने आएगा ही लेकिन जो मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग, राजनेता या एक्टिविस्ट तब वानखेड़े की भूमिका पर सवाल करते हुए केंद्र सरकार पर भी आरोप लगा रहे थे, वे आज चुप हैं।
सवाल यह है कि वे आज पीछे झांककर यह क्यों नहीं देखते कि उन्होंने कैसे अपने-अपने स्तर पर और अपने सामर्थ्य के अनुसार ट्रायल चलाया था? यह बताने के लिए कि समीर वानखेड़े हिन्दुत्व का चेहरा हैं, संघी हैं और कभी भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं।
तत्कालीन महाअघाड़ी सरकार के मंत्री और शरद पवार के खास नवाब मलिक तो आपको याद ही होंगे जिन्होंने ठाना हुआ था कि ड्रग मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर वे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवा कर ही मानेंगे।
नवाब मलिक के लिए पर्सनल मामला भी था क्योंकि उनके दामाद समीर खान भी ड्रग मामले में गिरफ्तार हुए थे। नवाब मलिक ने उस समय आरोप लगाया था कि भाजपा वानखेड़े के लिए दिल्ली में लॉबिंग कर रही है। नवाब मलिक उस समय समीर को पोपट तो भाजपा को जिन्न बता रहे थे। हाल यह हो चला था कि मलिक ने वानखेड़े को मुसलमान साबित करने की तमाम कोशिशें की। परेशान होकर वानखेड़े के परिवार को इस पर सफाई तक देनी पड़ी थी।
नवाब मलिक भले ही ट्रायल करने में सबसे आगे थे लेकिन वे अकेले नहीं थे। शिवसेना के संजय राउत ने तो मनी लान्ड्रिंग के आरोपी नवाब मलिक की गिरफ्तारी पर यहां तक कह दिया था कि वे वानखेड़े और भाजपा को बेनकाब करने की सजा पा रहे हैं।
महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने भी केन्द्रीय जांच एजेन्सियों की निष्ठा पर सवाल उठाते हुए भविष्यवाणी कर दी थी कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का लगातार गलत तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है और समीर वानखेड़े पर कोई कार्रवाई नहीं होगी।
मीडिया टीआरपी और क्लिक्स के लिए उस समय समीर वानखेड़े की RSS मुख्यालय पर उपस्थिति की भी तस्वीर दिखा रहा था और बार-बार यह कह रहा था कि बस अब से कुछ ही समय में वे भाजपा ज्वाइन कर लेंगे।
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इस तरह की तमाम गैर-जिम्मेदाराना बातें कही गई। खास तौर पर तब जब एजेन्सियां गम्भीर आरोपों की जांच कर रही थी। यह सब बिना यह सोचे किया जा रहा था कि ऐसी गैर जिम्मेदाराना हरकतें और बयान आम नागरिकों को तो भ्रमित करते ही हैं, उसके साथ जांच को भी प्रभावित करते हैं।
राजनीति से इतर वानखेडे पर लगे तमाम आरोपों की जांच एजेंसियां अपने स्तर पर कर ही रही थी। प्रश्न यह है कि आज जब वानखेड़े पर FIR दर्ज हो गई है तो क्या वे तमाम नेता और मीडिया अपने बयान और अपनी रिपोर्टिंग पर माफीनामा जारी करेंगे?
यह हम सब के लिए सोचने की बात है कि यदि सीबीआई पर केंद्र सरकार का राजनीतिक प्रभाव रहता तो ऐसी कार्रवाई संभव नहीं होती। कारण यह है कि जाँच एजेंसी की कार्रवाई तब हुई है जब वानखेड़े और उन पर लगे आरोप और उनकी जाँच की बात को लोग लगभग भूल चुके थे।
फिर अचानक वानखेड़े चर्चा में कैसे आ गए? चर्चा में इसलिए आ गए क्योंकि देश में ऐसी सरकार है जो जांच एजेंसियां को स्वतंत्र रूप से काम करने देने की हिम्मत रखती है और जांच एजेंसियां अपना काम करती रहती हैं।
आज लगभग ढाई वर्षों की जाँच के बाद जब समीर वानखेड़े के ऊपर प्रशासनिक कार्रवाई हो रही है तो मामले का घटनाक्रम हमें क्या संदेश देता है?
दरअसल सबसे बड़ा संदेश यह है कि शासन और प्रशासन में भ्रष्टाचार का कोई त्वरित समाधान नहीं है। जो बात आवश्यक है वो यह है कि सरकारी एजेंसियों को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखनी है तो किसी भी केस की जाँच और उससे संबंधित प्रशासनिक कार्रवाई लाइमलाइट में रहे बिना करना ज़रूरी है।
एक सीख हमारे राजनेताओं के लिए भी है, खासतौर कांग्रेस पार्टी और उनके साथी दलों के लिए जो अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकने के लिए न केवल जांच एजेन्सियों पर बेबुनियाद आरोप लगाते रहते हैं बल्कि हर जाँच को राजनीति से जोड़कर देशवासियों के मन में भ्रम पैदा करने का काम बिना किसी झिझक के करते हैं।
ऐसे नेताओं को यह समझने की आवश्यकता है कि भारत, शासन और प्रशासन की दृष्टि से उन दिनों से बहुत आगे आ चुका है जब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के बारे में उसके निदेशक के सामने कहा था कि; सीबीआई पिंजरे में बंद तोता है।
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