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इस बार प्रतियोगी परीक्षाओं में एक नया अजूबा हुआ। उस साल संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों की परीक्षा में कोई प्रतियोगी सम्मलित नहीं हुआ। सब जी-जान से पटवारी परीक्षा की तैयारी में लग गये।

बहन कामरेड बहुत चिंतित थीं। लंबे समय से देश में ‘फाशीवाद’ का माहौल चल रिया था। एक मिनट! मैं ‘स’ को ‘श’ नहीं बोलता। अन्यथा न लें! दरअसल, बहन कामरेड अंग्रेजी में फाशिज्म बोलने की आदी हैं।

रैंकने वाले शेर ने बताया, “दिल्ली चला गया साला, अपनी कुल्हड़-सकोरे की फैक्ट्री बंद कर गया। हम सब ने कहा- मालिक हमारे परिवारों का क्या होगा? तो साला अपनी गलतियों की बजाय, तालाबंदी के लिये हम मजदूरों को ज़िम्मेदार ठहराने लगा कि तुम लोगों के कारण यह हुआ है।”

बात सन दो हज़ार पचास की है। ये वो समय था जब युवा विभिन्न वीडियो साइट्स पर डालने के लिये अपने वीडियो बनाते रहते थे ,और फुर्सत मिलते ही फुलकी/पानीपूरी, मोमोज़ का ठेला लगा लेते थे।

हे ‘सेक्युलर’ साथियों, उठो, जागो और देखो सेकुलरिज्म अपनी अन्तिम यात्रा पर निकल रहा है। ओ कॉमरेड़ चश्मा उतार, और आंखें खोल के देख ‘सेक्युलरिज्म’ द्रौपदी मुर्मु जी के कन्धों पर राजघाट की ओर बढ़ रहा है।