Browsing: समसामयिकी: त्वरित टिप्पणी

इसे धार्मिक समझने वाले निज से प्रश्न अवश्य करें कि धर्म गुरुओं या धार्मिक संस्थाओं की जिम्मेदारी का वहन एक प्रधानमंत्री को क्यों करना पड़ रहा है?

परंपरा के अनुसार सांप्रदायिक या राजनीतिक हिंसा को होने देने से लेकर उसे बढ़ावा देने तक के प्रश्न पर अंतिम निर्णय सत्तासीन दल और उसकी सरकार करती है। ‘सेक्युलर’ राजनीति की रक्षा के नाम पर किसी और को इस विषय पर निर्णय सुनाने का अधिकार नहीं दिया गया है।

मणिशंकर हों या जयराम, सिब्बल हों या पित्रोदा- इन सभी की एक बीमारी है। सभी भारत की जड़ों से कटे, औपनिवेशिक सोच से ग्रस्त हैं। 

सनातनियों का हरेक पर्व-त्योहार निशाने पर है। कभी होली में पानी, कभी वीर्य के गुब्बारों, कभी जलीकट्टू, कभी शबरीमाला, कभी शनि-शिंगणापुर, तो कभी हांडी की ऊंचाई को लेकर!