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नारदीय संचार नीति पुस्तक, ‘शील ही संदेश है’, विषय पर जोर देती है। अधिकांश सभ्यताओं में ‘सत्य’ और ‘शक्ति’ की अवधारणाओं के बीच अस्पष्टता है।

संस्कृत विद्वान और तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख जगद्गुरु रामभद्राचार्य और उर्दू कवि गुलज़ार को साहित्य के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जाएगा।

पिछले कुछ वर्षो में देशज मुसलमानों में अपनी पहचान को लेकर आकर्षण न केवल बढ़ा है। यह हवा पिछले कुछ सालों से ही बह निकली है।

प्रो. कुसुमलता केडिया द्वारा लिखी पुस्तक ‘कम्युनिस्ट चीन, अवैध अस्तित्व’ चीन की राजनीति को इतिहास की दृष्टि से समझने का प्रयास करती है।

पहली चीज कि अगर आप इस उपन्यास को पढ़ते हुए एक छोटी डायरी में नए शब्द नोट करते जाएँ, तो लगभग तीन सौ शब्द जमा हो जाएँगे। हर तरह के रत्नों, युद्ध-शैलियों, गुप्तचरी, रति-क्रिया, भवनों की संरचना से जुड़े शब्द उनकी व्याख्या सहित हैं। शराब के पेग से लेकर अंतर्देशीय वीसा-पासपोर्ट तक के लिए शब्द वर्णित हैं!

वैश्विक मंच पर तिरुक्कुरल को कई देशों ने न सिर्फ अपनाया है बल्कि भारतीय धरोहर होने के कारण यह  भारतीय वैचारिक दर्शन का प्रसार भी कर रहा है।

12 मार्च को गोपालगंज के करवतही बाजार में हुए सदानीरा महोत्सव में इस बार साहित्य के क्षेत्र में तीन सम्मानों की घोषणा हुई।

इन 27 पात्रों में से कई नाम ऐसे हैं जिन्हें मैं पहली बार पढ़ रहा था, ये वो गुमनाम शख्स है जिन्हें इतिहास की पुस्तकों में पर्याप्त स्थान नहीं मिला है। लेखक ने ऐसे ही गुमनाम नामों से परिचित करवाया है ‘क्रांतिदूत’ में।

किताब की शुरूआत विवादास्पद बयान से शुरू होती है, “चीन तो छोड़िए, भारत तो पाकिस्तान से भी युद्ध नहीं जीत सकता।”

कई किताबों में एक आम राजनीतिज्ञ की तरह आप उनकी जीवनी पढ़ सकते हैं। लेकिन ये किताब ‘फ्रॉम द थर्ड वर्ल्ड टू द फर्स्ट’ (From Third World to First) व्यक्ति पर नहीं, एक देश पर आधारित है।