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पहली चीज कि अगर आप इस उपन्यास को पढ़ते हुए एक छोटी डायरी में नए शब्द नोट करते जाएँ, तो लगभग तीन सौ शब्द जमा हो जाएँगे। हर तरह के रत्नों, युद्ध-शैलियों, गुप्तचरी, रति-क्रिया, भवनों की संरचना से जुड़े शब्द उनकी व्याख्या सहित हैं। शराब के पेग से लेकर अंतर्देशीय वीसा-पासपोर्ट तक के लिए शब्द वर्णित हैं!

वैश्विक मंच पर तिरुक्कुरल को कई देशों ने न सिर्फ अपनाया है बल्कि भारतीय धरोहर होने के कारण यह  भारतीय वैचारिक दर्शन का प्रसार भी कर रहा है।

12 मार्च को गोपालगंज के करवतही बाजार में हुए सदानीरा महोत्सव में इस बार साहित्य के क्षेत्र में तीन सम्मानों की घोषणा हुई।

इन 27 पात्रों में से कई नाम ऐसे हैं जिन्हें मैं पहली बार पढ़ रहा था, ये वो गुमनाम शख्स है जिन्हें इतिहास की पुस्तकों में पर्याप्त स्थान नहीं मिला है। लेखक ने ऐसे ही गुमनाम नामों से परिचित करवाया है ‘क्रांतिदूत’ में।

किताब की शुरूआत विवादास्पद बयान से शुरू होती है, “चीन तो छोड़िए, भारत तो पाकिस्तान से भी युद्ध नहीं जीत सकता।”

कई किताबों में एक आम राजनीतिज्ञ की तरह आप उनकी जीवनी पढ़ सकते हैं। लेकिन ये किताब ‘फ्रॉम द थर्ड वर्ल्ड टू द फर्स्ट’ (From Third World to First) व्यक्ति पर नहीं, एक देश पर आधारित है।

पंडित लीलाधर चौबे की ज़बान में जादू था। इसी वाक्य से प्रेमचंद की मंत्र नाम की कहानी शुरू होती है। हमने बरसों पहले कभी जब मानसरोवर का पाँचवा भाग पढ़ा भी था, तो इस कहानी पर बिलकुल भी ध्यान नहीं गया था। अब यह कहानी जब कुछ दिन पहले सोशल मीडिया से जुड़े मित्रों ने याद दिलाई तो हमने इसे दोबारा पढ़ डाला।

बैंक ऑफ क्रेडिट एंड कॉमर्स इंटरनेशनल 1972 में बनाया गया था और इसके अध्यक्ष एक पाकिस्तानी, आगा हसन अबेदी थे।

ये दोनों लोग वाम की ओर वाले नेता थे तो उपन्यास भी उधर ही झुका हुआ है। इन हड़तालों से मुंबई की टेक्सटाइल इंडस्ट्री ख़त्म हो गई, या कहिए कि उठकर कहीं और चली गई।