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हर वर्ष 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के तौर पर मनायी जाती है। वे ईसाई मिशनरियों की धर्मांतरण की साजिशों से लड़े। अंग्रेजों से लोहा लिया। इस्लामी आक्रांताओं को धूल चटायी।

अमृतकाल में जब देश अपने आदर्शों को नए सिरे से खोजने और परिभाषित करने में लगा है, वीर राम सिंह पठनिया एक ऐसे युवा आदर्श के रूप में हमारे सामने आते हैं, जो योद्धा, रणनीतिकार, संगठक के साथ कलाप्रेमी भी हैं।

अरब देशों में साल 1970 के 16 सितंबर से 27 सितंबर तक एक युद्ध चला था जिसे इतिहास में ‘ब्लैक सितंबर’ (Black September)  के नाम से याद किया जाता है।

‘इंदिरा के आपातकाल’ के समय भी तत्कालीन सरकार ने उत्पल दत्त के लिखे तीन नाटकों – बैरिकेड, सिटी ऑफ़ नाइटमेयर्स एवं ‘एंटर द किंग’ को प्रतिबंधित कर दिया गया था।

सुखदेव से मुँह से व्याख्या सुनकर भाई बल्लू सिंह जी के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। उन्होंने सुखदेव के सिर पर हाथ फेरा और आगे बोले,

मोरबी, मच्छु और मोदी। ये तीनों नाम एक ही पंक्ति में आयें तो कोई हैरानी वाली बात नही होगी। दरअसल मोरबी ही उन जगहों में से एक है जहां से नरेंद्र मोदी ने अपने सार्वजनिक जीवन में एक नया बदलाव देखा। उन दिनों मोदी आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक थे । जिस समय ओवेरफ़्लो के कारण ये बांध तबाह हो गया था, मोदी वरिष्ठ नेता नानाजी देशमुख के साथ चेन्नई प्रांत में शाखा में थे। जैसे ही उन्हे स्थानीय संघ कार्यकर्ताओं से इस दुखद खबर का पता चला, वे  तुरंत गुजरात लौटे और राहत बचाव कार्य में बड़े साहस से हिस्सा लेने लगे ।

पिछले दस महीने से वो बनारस में था जहाँ वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में काम कर रहा था। हम सब की मदद करने के लिए वो विदेश जाने की योजना पर काम कर रहा था। कुछ दिन पहले की खबर के अनुसार अशफ़ाक दिल्ली पहुँच गया था।

देश की राजधानी दिल्ली में दंगों का एक इतिहास रहा है। वर्ष 1984 और वर्ष 2020 के दंगे सभी को याद हैं लेकिन कुछ दंगे ऐसे भी हैं जो समय के गर्त में चले गए और उन दंगों के दौरान निरीह हिन्दुओं पर हुए अत्याचार लोगों को सुनने को नहीं मिले।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस बात पर जागरूकता फैलाते रहे कि एकीकृत बंगाल का विचार आकर्षक नहीं बल्कि एक आभासी पाकिस्तान है।