“करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताए?
बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाए।”
कबीर दास जी का ये दोहा आपने स्कूल में अवश्य पढ़ा होगा, लेकिन प्रतीत होता है कि Mohammed Zubair ने इसे ठीक से नहीं पढ़ा। हो सकता है इसलिए न पढ़ा हो क्योंकि कबीर दास जी इस्लामवादियों में बहुत पॉपुलर नहीं थे। या फिर ये भी हो सकता है कि ज़ुबैर पढ़ने में कमज़ोर रहे हों। लिखने में तो वे काफ़ी तेज़ हैं। वैसे यह केवल हमारा अनुमान है।
ख़ैर, हुआ ये है कि स्वयं को फैक्ट चेकर कहने वाले Mohammed Zubair इस बार फँस गए हैं। उन्होंने डासना देवी मंदिर के संत महंत यति नरसिंहानंद गिरी का एक पुराना वीडियो शेयर किया था। वीडियो वगैरह शेयर करने में ज़ुबैर वर्ल्ड चैंपियन हैं।
तो हुआ ऐसा कि उनके वीडियो शेयर करने के बाद डासना में दो समुदायों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी। पूरे मामले को लेकर उनके विरुद्ध गाजियाबाद में विभिन्न धाराओं में FIR दर्ज हो गई। अब पुलिस ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बताया है कि ज़ुबैर के विरुद्ध दर्ज केस में दो और धाराएं जोड़ी गईं हैं।
उनके ऊपर भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को अपराध बनाती है और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 को FIR में जोड़ा गया है।
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वामपंथी इकोसिस्टम को जैसे ही यह बात पता चली कि ये धाराएं जोड़ी गईं हैं तो उनका विलाप शुरू हो गया। रवीश कुमार एंड कंपनी कह रही है कि ये तो संविधान विरोधी है। सवाल ये है कि अगर ये संविधान विरोधी है, कानून विरोधी है तो उस पर अदालतें निर्णय दे देंगी, जो पहले भी हुआ है, इसमें लेफ्ट लॉबी इतना हंगामा क्यों काट रही?
ऐसा तो है नहीं कि पहली बार किसी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के ऊपर केस किया गया हो। कांग्रेस की सरकारों का एक लंबा इतिहास है जब उन्होंने पत्रकारों को, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया। उनके ऊपर केस दर्ज किए।
कर्नाटक और हैदराबाद जहाँ कांग्रेस की सरकार है वहाँ अभी भी कई ऐसे लोगों के ऊपर केस चल रहा है जिन्हें कांग्रेस विरोधी माना जाता है। मजे कि बात ये है कि कई बार ज़ुबैर ने ही पुलिस को टैग करके कई लोगों के विरुद्ध कांग्रेस शासित राज्यों में FIR करवाई है।
2021 में जब महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार थी और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, उस समय सुदर्शन न्यूज़ के संपादक सुरेश चव्हाणके के एक प्रोग्राम को लेकर मोहम्मद ज़ुबैर ने ट्विट किया था। ज़ुबैर के ट्विट के बाद उनके विरुद्ध FIR दर्ज की गई थी। इसी तरह से ज़ुबैर ने पत्रकार अजीत भारती की एक क्लिप काटकर ट्विट किया था। इसके बाद उनके विरुद्ध कर्नाटक में केस दर्ज कराया गया था।
सिर्फ इतना ही नहीं उनके दिए गए सुझाव को कर्नाटक सरकार के मंत्री प्रियांक खड़गे ‘यस चीफ’ कहते हुए स्वीकार करते देखे गए हैं। कह सकते हैं कि जुबैर FIR-FIR का खेल खेल रहे थे, अब जब स्वयं उनके ऊपर FIR हुई है तो उनका समूह विलाप करने लगा। सवाल है कि इसमें रोने की क्या बात है?
कम्युनिस्ट अपूर्वानंद और कथित पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी जैसे इकोसिस्टम के कई सिपाही कह रहे हैं कि ज़ुबैर तो बहुत अच्छा काम कर रहे थे। फैक्ट चेकिंग कर रहे थे। दो समुदायों के बीच की दूरियां मिटा रहे थे। अपूर्वानंद जी पुराने कम्युनिस्ट हैं और माना जाता है कि कम्युनिस्ट कभी भी तथ्यों पर बात नहीं करते, अपूर्वानंद जी इस थ्योरी पर खरे उतरते हैं-
वे जानकर यह भूल जाते हैं कि ये मोहम्मद ज़ुबैर ही हैं जिन्होंने नुपूर शर्मा की वीडियो काट छाँट कर वैश्विक स्तर पर इस्लामिस्ट भीड़ के सामने परोस दिया था जिसके बाद देश भर में हिंसा और हंगामा हुआ।
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उनकी वीडियो के बाद ही नूपुर शर्मा को जान से मारने की, बलात्कार की और उनके परिवार को मारने की धमकियां दी गईं। उनकी वीडियो के बाद ही राजस्थान में कन्हैया लाल टेलर की हत्या की गई।
उनकी वीडियो के बाद महाराष्ट्र से भी ऐसे ही केस आए। उनकी वीडियो के कारण आजतक नुपूर शर्मा पूरी स्वतंत्रता से अपना जीवन नहीं जी पा रहीं। उनके पोस्ट किए गए वीडियो का इस्तेमाल कतर के इस्लामिस्टों ने किया।
ऐसे तमाम मामले हैं जब ज़ुबैर ने किसी बड़ी शख्सियत के पीछे किसी ना किसी तरह से कट्टरपंथी लगाए हो और अब जब उनके विरुद्ध नियम-कानून के तहत कार्रवाई हो रही है तो इकोसिस्टम चाहता है कि उनके लिए नियम-कानून को ताक पर रख दिया जाए क्योंकि वे तो फैक्ट चेकर हैं।
अंत में कबीरदास जी के दोहे के आधार पर एक ही बात कही जा सकती है कि ज़ुबैर ने जब बबूल बोया है तो उन्हें आम कहाँ से मिलेगा?