ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के निधन के बाद कैरिबियाई राष्ट्र एंटीगुआ एंड बारबुडा ने ब्रिटिश राजशाही के अंदर रहने के बजाय गणतंत्र में बदलने के प्रश्न को लेकर अपने यहाँ जनमत संग्रह कराने की बात कही है।
ब्रिटिश अखबार दी गार्जियन की एक खबर के अनुसार एंटीगुआ के प्रधानमंत्री गेस्टन ब्राउन ने ब्रिटेन के नए राजा चार्ल्स तृतीय के मान्यता देने के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के कुछ देर के भीतर यह बात कही।
उन्होंने कहा कि एंटीगुआ ब्रिटिश राष्ट्राध्यक्ष को अपना प्रमुख मानने के फैसले पर 3 वर्ष के भीतर एक जनमत संग्रह करेगा। हालांकि, एंटीगुआ के प्रधानमंत्री ने कॉमनवेल्थ में बने रहने की बात कही है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, ऐसे राष्ट्रों को कॉमनवेल्थ रियाल्म कहा जाता है, ये सदस्य कॉमनवेल्थ का हिस्सा होने के साथ-साथ ही ब्रिटेन के राजा अथवा रानी को अपना प्रमुख मानते हैं। यह राष्ट्र होते तो स्वतंत्र हैं, पर गणतंत्र नहीं होते यानी इनका राष्ट्राध्यक्ष अपने देश का कोई व्यक्ति नहीं होता।
वर्तमान में इनकी संख्या 14 है। इनमें से अधिकतर देश कैरिबियाई हैं। इसके अतिरिक्त कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी इसी व्यवस्था को मानते हैं।
इस व्यवस्था में ब्रिटेन के राजशाही के प्रमुख द्वारा नियुक्त किया गया एक गवर्नर जनरल इन देशों में रानी के सारे कार्य संपादित करता है।
हाल ही में हुई ब्रिटेन की महारानी की मृत्यु के बाद अब उनके पुत्र चार्ल्स को नया राजा घोषित किया गया है। चार्ल्स को इन सब देशों में उनके प्रमुख के तौर पर स्वीकार करने के लिए उन देश की सरकारों के द्वारा कागजी कार्यवाही पूरी की जा रही है।
इसी मौके पर एंटीगुआ के प्रधानमंत्री गेस्टन ब्राउन ने कहा कि वह तीन साल के भीतर देश को गणतंत्र में बदलने के लिए जनमत संग्रह कराएंगे। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि यह कदम एंटीगुआ और बारबुडा की स्वतंत्रता को पूरी तरीके से लागू करने का है। यह एक गणतंत्र बनने की दिशा में उठाया गया कदम होगा न कि राजशाही और एंटीगुआ के बीच कोई मतभेद का कारण।
एंटीगुआ और बारबुडा उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के बीच बसे कुछ द्वीप समूहों वाला एक राष्ट्र है, इसकी कुल जनसंख्या आज के समय में करीब 1 लाख है। पूर्व में यह एक ब्रिटिश उपनिवेश हुआ करता था पर इसे 1 नवम्बर 1981 को इसे आजादी मिल गई थी।
इसके बाद से यह राजतांत्रिक लोकतंत्र वाली व्यवस्था का अनुसरण करता है जहाँ देश को तो लोकतंत्र से चलाया जाता है पर उसका प्रमुख कोई राजपरिवार का सदस्य होता है।
यह वही एंटीगुआ है जहाँ पर विभिन्न बैंको से धोखाधड़ी करने वाला घोटालेबाज मेहुल चोकसी रह रहा है, उसने यहाँ पैसे के बल पर नागरिकता भी अर्जित कर ली है।
क्यों उठ रही मांग?
दरअसल काफी लम्बे समय से इन कैरिबियाई देशों जिनमें एंटीगुआ एंड बारबुडा, जमैका, बहामास, ग्रेनेडा तथा बेलजी एवं सेंट किट्स एंड नेविस में यह मांग चल रही है कि इन देशों में राजशाही को अपना प्रमुख मानने के बजाय गणतंत्र घोषित किया जाए तथा इसी राष्ट्र का कोई व्यक्ति उनका राष्ट्रप्रमुख बने।
इन देशों को ब्रिटिश राजशाही ने वर्षों तक गुलाम बना के रखा तथा इन देशों के लोगों पर बहुत से अत्याचार किए, इसके अलावा इन देशों का यह भी कहना है कि ब्रिटेन ने अपने शासनकाल के दौरान इन छोटे-छोटे गरीब राष्ट्रों को बहुत बुरी तरीके से लूटा तथा अपनी झोली भरता रहा।
इन देशों में हुए कई प्रदर्शनों में यह मांग उठ चुकी है कि इन देशों के लोगों के साथ पूर्व में किए अत्याचार पर ब्रिटेन के राजपरिवार द्वारा सार्वजनिक रूप से माफी मांगी जानी चाहिए और साथ ही हर्जाना दिया जाना चाहिए।
कई राष्ट्र बदल चुके हैं यह स्थिति
इससे पूर्व में भी कई राष्ट्र ब्रिटिश राजशाही को अपना प्रमुख मानने के फैसले को पलट चुके हैं तथा स्वयं को गणतंत्र घोषित कर चुके हैं। इसका सबसे ताजा उदहारण बारबाडोस है, जिसने नवम्बर 2021 में स्वयं को एक गणतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया था तथा रानी एलिजाबेथ को अपने राष्ट्रप्रमुख के पद से हटा दिया था।
इससे पहले 1992 में मॉरिशस ने भी यह कदम उठाया था, इसके अलावा फिजी ने 1987, घाना ने 1960, गुयाना ने 1970, त्रिनिदाद एंड टोबैगो ने 1976 में ब्रिटिश राजशाही को छोड़ते हुए खुद को गणतंत्र घोषित कर दिया था।
भारत भी अपने स्वतंत्रता के बाद के तीन वर्षों तक एक रिअल्म या डोमिनियन के रूप में रहा था जब तक कि इसका संविधान लिखा जा रहा था। इसके बाद 26 जनवरी 1950 से भारत का संविधान लागू होने के साथ यह स्थिति समाप्त हो गई। भारत का राष्ट्रप्रमुख, भारत का राष्ट्रपति होता है। वहीं पाकिस्तान 1956 तक ब्रिटिश राजशाही को ढोता रहा।