वर्ष 2020-21 भारत समेत पूरे विश्व के लिए चुनौतीपूर्ण रहा। कोरोना महामारी के कारण जहाँ एक ओर सरकार की कमाई पर ब्रेक लग गया, वहीं दूसरी ओर देश की एक बड़ी आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की प्रक्रिया में राशन पर सरकार की सब्सिडी में 400% से भी अधिक की बढ़ोतरी देखी गई।
केंद्र सरकार ने इस दौरान भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने और किसानों को सस्ती दर पर खाद उपलब्ध कराने में अभूतपूर्व खर्च का वहन किया। देश में सरकारी खर्चों का ऑडिट करने वाली संस्था लेखा एवं लेखाकार महापरीक्षक (CAG) ने वर्ष 2020-21 के बजट और खर्च के आँकड़े जारी किए हैं जो दर्शाते हैं कि कोरोना के कारण सरकार को राशन पर अपना खर्च 5 गुना बढ़ाना पड़ा।
सरकार के कई विभागों ने इस दौरान आवंटित धनराशि में बचत भी की, CAG की रिपोर्ट ने बताया कि कुल 11 लाख करोड़ से भी अधिक धनराशि बचाने में सफलता मिली, इसमें बड़े पैमाने पर रेलवे, किसान सम्मान निधि और अन्य कल्याणकारी योजनाएं थी।
सरकार ने इस दौरान योजनाओं को आधार से लिंक करके सरकारी व्यय गलत हाथों में पहुंचने से भी बचत की और परिणामस्वरूप योजनाओं का लाभ सही लाभार्थियों तक पहुंचने में मदद मिली।
पांच लाख करोड़ पार हुई खाद्य सब्सिडी
CAG की रिपोर्ट बताती है कि सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान खाद्य सब्सिडी पर ₹5,41,330 करोड़ खर्च किए जबकि इससे पहले वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान यह खर्च ₹1,08,688 करोड़ था।
कोरोना के दौरान सरकार ने देश के एक बड़े तबके को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना चालू की थी जिसके लिए सरकार को अपनी खाद्य सब्सिडी में बड़ा खर्चा करना पड़ा है।
तथ्यों और आंकड़ों की कमी से भारी तौर पर कुपोषित ‘अनग्लोबल हंगर इंडेक्स’
सरकार ने खाद्यान्न उपलब्ध कराने के साथ-साथ अन्न का अधिक उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी को भी वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 63% बढ़ाया। वहीं इस दौरान सरकार ने पेट्रोलियम सब्सिडी पर 36,000 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि खर्च की।
कोरोना महामारी के दौरान इस तरह से दी जानी वाली मदद को जरूरी तबके तक सीधे पहुँचाने को देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ‘टार्गेटेड अप्रोच’ बताया है।
सरकार ने बचाए 11 लाख करोड़ रूपए
वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान, सरकार ने ₹11,51,845 करोड़ रुपए बचाए। जिसमें रेलवे ने ₹1 लाख करोड़ से भी अधिक की बचत की। इसके अतिरिक्त कृषि एवं पशुपालन विभाग, आर्थिक मामलों का विभाग, दूरसंचार विभाग जैसे विभागों ने 25 हजार करोड़ से भी अधिक की बचत की।
रिपोर्ट के अनुसार, लगभग ₹1.35 लाख करोड़ की बचत सरकारी पैसे के खर्च को नियमित करने की वजह से हुई। वहीं कोरोना के कारण लॉकडाउन होने से लगभग ₹89,000 करोड़ खर्च नहीं किए जा सके।
भारत के सहायता मॉडल ने रोकी महंगाई
कोरोना महामारी के दौरान सरकार ने लोगों को सहायता उपलब्ध कराने के लिए सेक्टर के अनुसार आवंटन किए। केंद्र सरकार ने लोगों को खाद्य सामग्री, गैस सिलेंडर एवं अन्य आवश्यक सामग्री का वितरण किया जबकि अन्य पश्चिमी देशों में इसके विपरीत बड़े पैमाने पर धनराशि लोगों के खतों में डाली।
भारत में सीधा सामग्री देकर मदद करने के कारण बाजार में मुद्रा की मात्रा नियन्त्रण में रही जिसके कारण महंगाई को नियंत्रित करने में सहायता मिली। वहीं, अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों में लोगों को बड़ी धनराशि सीधे खाते में उपलब्ध कराई गई, इसके कारण बाजार में मुद्रा की अधिकता हुई और वस्तुओं के दाम बढ़े और महंगाई का स्तर 10% को भी पार कर गया।
महँगाई की मार और मंदी से अमेरिकी गाँव हो रहे खाली
इसके पश्चात कोरोना से उभर रही अर्थव्यवस्थाओं में महँगाई का बड़ा झटका इसी साल फरवरी माह में चालू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध ने दिया जिसके कारण ऊर्जा की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गईं और आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतों में अभूतपूर्व उछाल देखा गया। परिणामस्वरूप अधिकतर विकसित देशों में महँगाई की दर पिछले कई दशकों में सबसे ऊपर पहुँच गई।
इसके उलट भारत में महंगाई की दर केवल कुछ समय ही 8% का स्तर छू पाई है। हाल ही में नवम्बर माह के आँकड़े बताते हैं कि इस दौरान महंगाई वापस 5.85% पर आ गई। यह सीमा रिजर्व बैंक के द्वारा निर्धारित 4% (+/- 2%) की सीमा में है।
यह भी पढ़ें: मंदी से जूझ रहा है विश्व, भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत: RBI ने दी सावधान रहने की सलाह