दिल्ली में बसें तो कम हो ही रहीं थी लेकिन अब साथ में बस ड्राइवर और कंडक्टर भी कम हो रहें हैं। सत्ता में आने के बाद से ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी रोजगार सृजन का दावा करते रहे हैं,लेकिन हाल ही में एक आरटीआई द्वारा मिली जानकारी इस दावे को सिरे से नकार रही है।
ड्राइवर और कंडक्टरों का छिना रोजगार
आरटीआई द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली में स्थायी बस ड्राइवर और कंडक्टरों की संख्या में गिरावट आई है।
आँकड़ों के हिसाब से 2015 में दिल्ली में 8441 स्थायी बस ड्राइवर थे तो जो 2022 में घटकर अब 5344 हो गए हैं।
बस कंडक्टरों की बात करें तो 2015 में उनकी संख्या 5745 थी जो 2022 में केवल 185 रह गई है।
आरटीआई द्वारा प्राप्त यह आँकड़े दिल्ली के परिवहन विभाग की एक डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं।
सोशल मीडिया में अशोक कुमार पांडे द्वारा यह आरटीआई साझा की गई। ट्विटर पर आरटीआई पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा, “साफ़ है, नई भर्तियाँ नहीं की गईं। लोगों से रोज़गार का एक और माध्यम छीन लिया गया।पैसा कहाँ गया? विज्ञापन में?”
डीटीसी बसों की संख्या घटी
दिल्ली सरकार के राज में बस ड्राइवर और कंडक्टर तो कम होंगे ही क्योंकि बसों की संख्या बहुत कम है।
2021 में दायर एक आरटीआई से जानकारी प्राप्त हुई थी कि साल 2015 के बाद से 2020 तक डीटीसी बसों की संख्या लगातार घटी है।
2015 में डीटीसी के पास 4461 बसें थी जो 2016 में घटकर 4121 हो गईं। अगले साल 2017 में इनकी संख्या और कम होते हुए 3944 हो गई, 2018 में 3882 तो वहीं 2019 और 2020 में क्रमश 3762 और 3760 बसें ही रह गईं।
इलेक्ट्रिक बसों पर असत्य
बीते अगस्त, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक कार्यक्रम में 97 इलेक्ट्रिक बसों को हरी झंडी दिखाती हुए डीटीसी के बेड़े में शामिल किया था।
आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इसका पूरा श्रेय अपनी सरकार को दिया लेकिन जल्द ही उनके असत्य से पर्दा उठ गया जब पता चला की यह बसें तो केंद्रीय सरकार की फेम योजना के अंतर्गत दिल्ली सरकार को मिली थी।
दिल्ली सरकार के राज में बस ड्राइवर और कंडक्टरों का रोजगार छिना है और तथ्य इसकी पुष्टि कर रहें हैं। जब दिल्ली में रोजगार कम हो रहा तो आप सरकार द्वारा विज्ञापन पर करोड़ों खर्च करना क्या नैतिक रूप से गलत प्रतीत नहीं होता?