2023 के बजट सत्र में स्वभाव के अनुसार विपक्षी दलों द्वारा गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार का प्रदर्शन किया गया। प्रधानमंत्री का भाषण हो या संसद में चर्चा का कोई विषय, विपक्ष की ओर से ‘अडानी-मोदी’ की आवाजें आ रही थी। संसद में तस्वीरें लहराई जा रही थी। हालांकि तस्वीर लहराने वाले राहुल गांधी ये भूल गए कि उद्योगपतियों के साथ राजनीतिज्ञों की तस्वीरों का चलन मोदी सरकार से नहीं बल्कि नेहरू युग से जारी है। दार्शनिक राहुल गांधी को यह भी समझना और स्वीकार करना चाहिए कि उद्योग और राजनीति के बीच का संबंध देश के विकास के लिए एक आवश्यकता है। राजनीति और उद्योग एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।
अपने शासनकाल में भ्रष्टाचार के बड़े दंश झेल चुकी कॉन्ग्रेस के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल हो सकता है पर अब भारत की राष्ट्रीय नीतियों में बदलाव हो रहा है। अगर इस बार के बजट पर ही ध्यान दें तो सरकार द्वारा रेवड़ियों को नहीं बल्कि बुनियादी सुविधाओं और कैप-एक्स यानी कैपिटल एक्सपेंडिचर (पूंजीगत व्यय) पर ध्यान दिया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में ‘सप्तऋषि योजना’ के बारे में जानकारी दी है। इसमें सरकार द्वारा 7 मोर्चों पर अधिक ध्यान दिया गया है जिनमें हैं समावेशी विकास, कृषि के लिए डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, इन्फ्रा एवं निवेश, संभावनाओं को उजागर करना, हरित विकास एवं वित्त क्षेत्र का विकास।
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वित्त क्षेत्र में विकास के क्या अर्थ हैं? क्या बुनियादी सुविधाएं बढ़ाने के लिए चलाई जा रही योजनाएं बिना किसी व्यापारिक सहयोग के संभव है? यहाँ पर विपक्षी पार्टियां शायद होमवर्क करना भूल गई हैं। मोदी सरकार द्वारा बजट में धीरे-धीरे विकास कार्यों को बढ़ावा देकर बाजार को बड़ा बनाने की कोशिश की जा रही है। कर संग्रह बढ़ाने की व्यवस्था की जा रही है। भारत को मूलभूत सुविधाएं देने का प्रबंध हो रहा है ताकि आम भारतीय जो करना चाहता है, उसके लिए एक न्यूनतम व्यवस्था उसे तैयार मिले।
सरकार द्वारा दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान दिया जा रहा है। पहला, ऐसा इकोसिस्टम जहां व्यापार करना आसान भी हो और उसके लिए विकास के लिए अधिक अवसर हों। दूसरा, इस विकास का सीधा फायदा आम जन को मिले। इसका बेहतरीन उदाहरण है स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden quadrilateral) जिसका निर्माण 2012 में पूर्ण हुआ था और आज इससे हमारे पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को सबसे अधिक फायदा पहुंचा रहा है। ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा बढ़ने से चारों शहरों में उद्योग संचालन के लिए लागत में कमी तो आई ही है, साथ ही व्यापार में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
इसी तरह राजमार्गों के निर्माण से सरकार आम जनता और उद्योग, दोनों का विकास करती है। जाहिर है कि उद्योगों को फायदा मिलने पर अंत में फायदा सरकार को ही मिलता है टैक्स के रूप में। वर्तमान में सरकार द्वारा जारी योजनाएं एवं बजट में प्रस्तावित योजनाएं दीर्घकालिक परिणामों को ध्यान में रख कर बनाई गई हैं। यहीं पर बुद्धिजीवी वर्ग को परेशानी सामने आती है जिसको बजट जारी होते ही दूसरे दिन परिणाम चाहिए होते हैं।
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बजट में सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान जो देखने को मिला है वो है कैपिटल एक्सपेंडिचर में लगातार तीसरे वर्ष बढ़ोत्तरी का जिसपर अडानी-मोदी की आवाज के बीच विपक्ष का ध्यान नहीं गया। कैपिटल एक्सपेंडिचर का उद्योगों की उत्पादन क्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। ये इस प्रकार का व्यय है जो लोक कल्याण सुनिश्चित करता है, नौकरियां सृजित करता है, सरकार की आमदनी भी बढ़ाता है और इसमें महत्वपूर्ण सहयोगी बनते हैं देश के उद्योग। अमेरिका के कैप-एक्स पर नजर डालें तो ये उसकी जीडीपी का 21.1 प्रतिशत है तो चीन में ये हीं आंकड़ा 42.84 प्रतिशत का है।
देश ने राजमार्गों एवं सड़क तंत्र के विकास को देखा है। सरकार द्वारा अभी 4 मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक पार्क एवं 100 पीएम गति शक्ति कार्गो टर्मिनल का निर्माण किया जाएगा। ये कौन करेगा? जाहिर है कॉनकॉर, अडानी पोर्ट्स एवं लॉजिस्टिक्स, महिंद्रा लॉजिस्टिक्स, ब्लू डार्ट जैसी कंपनियां आगे आएंगी। वंदे भारत या मेट्रो की घोषणा भी की गई है। इससे स्टील उद्योग का प्रतिनिधित्व होगा और ऐसा ही अन्य क्षेत्रों में लागू होगा तो ये तो तय है कि सरकार की ये लोक कल्याणकारी योजनाएं उद्योग के सहयोग के बिना पूर्ण नहीं होती है और ये सभी सरकारों के लिए लागू होता है। ऐसे में राजनीति एवं उद्योग को अलग करने की मांग बुद्धिजीवी किस आधार पर करते हैं?
सरकार द्वारा प्रस्तावित योजनाओं के सहयोगी कौन होंगे इसकी प्रक्रिया के बारे में जानकारी विपक्षी पार्टियों को तो है पर वे उसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। जाहिर है सरकारी की योजनाओं को आरएसएस एवं अडानी प्रायोजित बताने वाले राहुल गांधी भूल गए हैं कि अडानी-अंबानी ने 2014 के बाद उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में कदम नहीं रखा है। जहाँ विकसित देशों द्वारा स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा दिया जाता है ताकि देश के संसाधनों का फायदा बाहर न जा पाए, वहीं राहुल गांधी भारतीय उद्योगों को हानि पहुंचाना चाहते हैं।
विपक्षी दल और उसके नेता हों या बुद्धिजीवी, उन्हें यह समझने के आवश्यकता है कि आने वाले समय में सरकार की योजनाओं के मद्देनजर राजनीतिक एवं व्यापारिक संबंध और अधिक सामने आने की संभावना है। ऐसे में तस्वीरों को सबूत बनाने के स्थान पर आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित करने से उनको फायदा पहुंच सकता है।