बीते बुधवार यानी 1 फ़रवरी, 2023 को केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में वित्त वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया। इस बार बजट में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को लगभग 3097 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।
इसमें एक महत्वपूर्ण बात मदरसों के बजट में कटौती से जुड़ी हुई है। दरअसल, मोदी सरकार ने इस बार के बजट में मदरसों के बजट पर कैंची चला दी है, जिसके बाद 160 करोड़ रुपए की जगह अब मदरसों को सिर्फ 10 करोड़ रुपए ही दिए गए हैं। यानी सीधे-सीधे 93 प्रतिशत की कटौती।
वित्त वर्ष 2022-2023 में ‘मदरसों और अल्पसंख्यकों की शिक्षा योजना’ के लिए 60 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे जबकि इससे पहले वित्त वर्ष 2021-22 में 161.53 करोड़ रुपए आवंटित किए गए।
केंद्रीय बजट 2023-24 में अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के लिए व्यावसायिक और तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए छात्रवृत्ति में 87% की कटौती की गई है। इसे अब केवल 44 करोड़ रुपए कर दिया गया है, पिछले बजट में छात्रवृत्ति योजना के लिए 365 करोड़ रुपए रखे गए थे।
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इस मामले पर कथित एनजीओ हक सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स ने प्रश्नचिन्ह लगाते हुए सवाल किया है कि “क्या हम वास्तव में समावेशी शिक्षा के बारे में बात कर रहे हैं, जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बताया गया है?”
वहीं, बाल अधिकार नाम के एक एनजीओ ने भी आरोप लगाया कि अल्पसंख्यकों की प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति में 69.61% की भारी कमी अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित बच्चों की शिक्षा सम्बन्धी चिंताओं को बढ़ाती है।
मौलाना आजाद फेलोशिप पर लगा ताला
इसी तरह दिसम्बर, 2022 में, केंद्र सरकार ने मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप योजना को बंद करने और पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के कक्षा 9-10 के छात्रों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना को सीमित करने की घोषणा की है।
बता दें कि यह फेलोशिप साल 2009 में UPA 2 के दौरान शुरू की गई। इसमें 6 अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय, जिनमें बौद्ध, ईसाई, जैन, मुस्लिम, पारसी और सिख छात्रों को एमफिल और पीएचडी करने के लिए पांच साल की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती रही है।
केंद्रीय बजट 2023-24 में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के तहत अल्पसंख्यकों की प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए 992 करोड़ रुपए की कटौती भी की गई है, जबकि 2022-23 में इसके लिए 1,425 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे।
इसी के साथ मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप कार्यक्रम पर भी पूर्ण विराम लग गया है।
मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप कार्यक्रम अब जारी नहीं रहेगा। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की वेबसाइट पर इसकी पुष्टि भी की गई है।
इसके अलावा, वंचित और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति कार्यक्रम केवल कक्षा 9 और 10 के छात्रों के लिए उपलब्ध होगा।
इससे पहले साल 2018 में भी केन्द्र सरकार हज सब्सिडी के लिए करोड़ो रुपए बाँटने वाली योजना पर ताला लगा दिया था।
यहाँ एक और बात जो महत्वपूर्ण है वो यह कि केंद्र ने पिछले साल अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए 5,000 करोड़ रुपए आवंटित किए थे, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा तकरीबन 2,300 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं किए गए।
इसी तरह यह भी देखा जाता है कि मदरसों को मिलने वाला फंड या तो पूरी तरह खर्च नहीं किया जाता है या फिर उसमें बड़े पैमाने पर अनियमितता देखने को मिलती है।
इस तरह के कदम के पीछे संभवत: केन्द्र सरकार का प्रयास है कि पिछले 7 दशक में कथित अल्पसंख्यकों के नाम पर फंड की जो बन्दरबांट मात्र एक समुदाय की तुष्टिकरण के लिए की गई, अब उसमें सुधार करके वनवासी समुदायों जैसे असली लाभार्थियों तक सरकारी स्कीमों का अधिकाधिक फायदा पहुँचाना हो सकता है।
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