ब्रिटेन में साल 2002 के बाद से मुस्लिम समुदाय (British Muslim) के लोग दोयम दर्जे के नागरिक बन गए हैं। राष्ट्रीयता और सीमा अधिनियम के संशोधन के बाद यह स्थिति पैदा हुई। ‘इंस्टीट्यूट ऑफ रेस रिलेशन्स’ (Institute of Race Relations (IRR) की सिटीजनशिप: फ्रॉम राइट टू प्रिविलेज नामक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि राष्ट्रीयता और सीमा अधिनियम की शक्तियों के विस्तार के बाद अब ब्रिटेन में बिना किसी सूचना के किसी भी व्यक्ति की नागरिकता रद्द की जा सकती है। अधिनियम में इस संशोधन से पहले तक जिन नागरिकों की नागरिकता रद्द की जाती थी उन्हें बाकायदा लिखित रूप में सूचित किया जाता था।
क्या कहता है यह अधिनियम
ब्रिटेन में बीते साल दिसम्बर माह में इस अधिनियम के भाग 9 के विरोध में प्रदर्शन भी हुए थे। अधिनियम का भाग 9 नागरिकता रद्द करने के लिए दिए जाने वाले नोटिस की अनिवार्यता को खत्म करता है।
भाग 9 के मुताबिक अगर गृहमंत्री के पास किसी नागरिक की नागरिकता रद्द करने सम्बन्धी नोटिस देने के लिए पर्याप्त जानकारी न हो या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक हित टकरा रहे हों, तो नोटिस देना आवश्यक नहीं है। ब्रिटेन सरकार का कहना है कि नागरिकता वापस लेने का कानून दशकों से हैं। इसका इस्तेमाल धोखे से नागरिकता हासिल करने वालों और भयानक अपराधियों के खिलाफ होता आया है।
रिपोर्ट बताती है कि खंड 9 व्यापक स्तर पर जनता के भीतर भय का माहौल पैदा करता है। अश्वेत और मुस्लिम नागरिकों के लिए ब्रिटिश नागरिकता अनिश्चितताओं से भरी है। रिपोर्ट के मुताबिक, नागरिकता वापसी के इस खंड को दक्षिण एशियाई और मध्य पूर्वी हेरिटेज के ब्रिटिश मुसलमानों को लक्षित करने के लिए लाया गया है।
आईआरआर के उपाध्यक्ष और रिपोर्ट के लेखक फ्रांसिस वेबर का कहना है कि “साल 2002 से दक्षिण एशियाई हेरिटेज के ब्रिटिश मुसलमानों के खिलाफ इस कानून द्वारा यह संदेश भेजा रहा है कि ब्रिटिश पासपोर्ट होने के बाद मुसलमान ब्रिटेन के सच्चे नागरिक न थे और न ही कभी होंगे, जैसे मूल निवासी हैं।
यह रिपोर्ट बताती है कि इस अधिनियम के जरिए ब्रिटिश सरकार शमीमा बेगम की तर्ज पर नागरिकता वापस लेने की योजना बनाएगी। शमीमा बेगम ब्रिटिश नागरिक रही हैं।
15 साल की उम्र में शमीमा सीरिया चली गई थी। सीरिया जाने के बाद शमीमा ने एक दहशतगर्द से शादी भी की थी। शमीमा 7 साल सीरिया में रहने के बाद 22 साल की उम्र में ब्रिटेन वापस आना चाहती थी। हालाँकि, ब्रिटेन सरकार ने उनकी नागरिकता रद्द कर दी और वे ब्रिटेन नहीं लौट पाईं।
ग़ौरतलब है कि यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब भारत के विरुद्ध ऐसे नैरेटिव चलाने के प्रयास किए जाते हैं जिनमें भारत की छवि इस्लाम एवं उसके समर्थकों से नफ़रत करने की बताई जाती है। साथ ही, कई ग्लोबल समचार पोर्टल भारत की छवि इस्लामोफ़ॉब राष्ट्र की साबित करने का कोई अवसर नहीं चूकते।