यूपीए सरकार के दौरान योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कॉन्ग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों के पुरानी पेंशन स्कीम को वापस लाने के वादे को “सबसे बड़ी मुफ्त की रेवड़ी” बताया है। एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने यह बात कही।
अहलूवालिया, जो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सबसे करीबी माने जाते हैं। यूपीए सरकार दौरान 10 साल तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे हैं। यूपीए सरकार के दौरान सभी राज्य सरकारों से बातचीत कर, पूरी तरह से पुरानी पेंशन स्कीम को समाप्त किया गया था।
अहलूवालिया एक थिंक टैंक के कार्यक्रम में अर्थशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों के साथ एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में शामिल हो रहे थे। उन्होंने अर्थव्यवस्था के अन्य पहलुओं पर भी बात की। अहलूवालिया ने पुरानी पेंशन स्कीम सहित राजकोषीय घाटे और अर्थव्यवस्था के आकार सहित अन्य कई मुद्दों को उठाया।
उल्लेखनीय है कि इस समय पुरानी पेंशन स्कीम को कॉन्ग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों ने अपना चुनावी हथियार बना लिया है।
आम आदमी पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में पंजाब में पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का वादा किया था। यही फार्मूला अब कॉन्ग्रेस ने गुजरात चुनाव में अपना रही है। इससे पहले हिमाचल चुनावों में कॉन्ग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह वादा किया था। कॉन्ग्रेस ने राजस्थान में भी पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की घोषणा की थी।
हालाँकि, अब तक किसी भी राज्य में पुरानी पेंशन स्कीम को वापस नहीं लाया जा सका है। इसे वापस लाने में कई नीतिगत कठिनाइयाँ सहित आर्थिक समस्याएँ भी हैं।
पंजाब और राजस्थान में इस बात की घोषणा को काफी समय हो चुका है। अभी भी इस मामले में कोई प्रगति नहीं हो पाई है।सबसे पहले पुरानी पेंशन स्कीम की घोषणा करने वाले कॉन्ग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़ में भी इस मामले का कोई हल नहीं निकल पाया है।
दरअसल, नई पेंशन स्कीम के तहत जमा कर्मचारियों की धनराशि को वापस नहीं निकाला जा सका है। यह राशि अभी बाजार में निवेश की हुई है।
ऐसे में लगातार पार्टियों को इस मुद्दे को अपनी ढाल बनाकर चुनाव जीतना अतार्किक लग रहा है।
वहीं चुनाव आयोग ने कुछ समय पहले राजनीतिक दलों को कहा था कि यदि वे इस तरह के वादे अपने घोषणा पत्र में करते हैं तो उन्हें इसका आर्थिक रास्ता भी बताना चाहिए।
अहलूवालिया ने राजकोषीय घाटे के विषय में बोलते हुए कहा कि आज के समय में नई-नई माँगों के साथ तो सभी सामने आ रहे हैं। इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है कि राजकोषीय घाटे को कम कैसे किया जाए एवं खर्चे कम कैसे किए जाएँ?
अहलूवालिया ने अर्थव्यवस्था के विषय में बोलते हुए कहा कि अब सभी राजनीतिक दलों में इस बात पर सहमति बन चुकी है कि हमें अधिक इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि अर्थव्यवस्था के 5 ट्रिलियन तक पहुंचने में पहले कहा गया कि यह 2024 तक संभव हो जाएगा। कोरोना के कारण इस लक्ष्य को 1 या 2 साल आगे बढ़ा दिया गया, यह तर्कपूर्ण बात है और सरकार की इस बात के लिए आलोचना नहीं की जानी चाहिए।
अहलूवालिया ने कहा कि भारत आने वाले 25 वर्षों में 7% से 8% की जीडीपी वृद्धि को बनाए रखेगा। भले ही कभी इसमें कमी आ जाए लेकिन हम वापस ट्रैक पर आ जाएंगे।
उन्होंने भारत के मुक्त व्यापार समझौतों, घटी हुई इम्पोर्ट ड्यूटी और कड़े फैसलों पर भी बात की। उन्होंने बैंकों के निजीकरण, सरकारी बैंकों की आगे की स्थिति और उनमें सरकारी दखल को लेकर भी बात की।
उनके द्वारा पुरानी पेंशन पर दिया गया बयान कॉन्ग्रेस को आने वाले समय में कठघरे में खड़ा करने वाला है। आगे यह प्रश्न उठेगा कि पुरानी पेंशन स्कीम को खत्म करते समय क्या सरकार में शामिल लोगों की राय नहीं ली गई थी।
यदि उनकी राय आज भी नई पेंशन स्कीम के पक्ष में है तो कॉन्ग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल पुरानी पेंशन स्कीम के पक्ष में क्यों खड़े हैं?