8 जनवरी, 2023 को लैटिन अमेरिका के देश ब्राजील से हिंसा के जो वीडियो सामने आए, उन वीडियो से विश्व के नेताओं को परेशान कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके कहा कि लोकतांत्रिक परंपराओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
इसी तरह के ट्वीट हमें बाकी वैश्विक नेताओं से भी देखने को मिल रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन हों या कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टुड्रो या फिर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, सभी ने ब्राजील में हुई हिंसा पर चिंता जताते हुए लोकतंत्र के मर्यादाओं की रक्षा की बात की है।
बहरहाल लोकतंत्र की रक्षा और ब्राजील में हो रही हिंसा ने विश्व को क्यों चिंता में डाला है, इसे समझने से पूर्व ब्राजील की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति समझना जरूरी है। ब्राजील का भौगोलिक क्षेत्र भारत से भी बड़ा है और यहाँ की आबादी करीब 22 करोड़ है। ये देश सुदृढ़ अर्थव्यवस्था होने के साथ ही जी-20 का हिस्सा तो है ही, साथ ही ये BRICS में भी शामिल है। यानि की ब्राजील विश्व में बहुपक्षीय संबंध बनाकर रहता है जिसमें इसके संबंध एशिया में चीन से भी हैं तो अमेरिका और रूस से भी कूटनीतिक संबंध हैं।
वहीं, ब्राजील लोकतांत्रिक संघीय गणराज्य है जिसमें राष्ट्रपति राज्य और संघ का प्रमुख होता है। राष्ट्रपति के पद को लेकर ही ब्राजिलिया में हिंसा सामने आ रही है। वर्तमान निर्वाचित और पदस्थ राष्ट्रपति लुइज इंसियो लूला दा सिल्वा के खिलाफ पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो के समर्थक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और देश में हिंसा फैला रहे हैं। यहाँ तक की चुनाव परिणामों को मानने से भी इंकार कर रहे हैं जो कि अपने आप में लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
ब्राजील में अक्टूबर, 2022 में चुनाव हुए जिसमें लुला को करीब 50.90 फीसदी तो बोलसोनारो को 49.10 फीसदी वोट हासिल हुए। पहले भी दो बार राष्ट्रपति रह चुके लुला दा सिल्वा ने बहुत ही कम अंतर से बोलसोनारो को हरा दिया। जनता द्वारा हुए सत्ता परिवर्तन को नकारते हुए बोल्सनारो ने कहा कि वे ये परिणाम स्वीकार नहीं करेंगे। यहीं पर लोकतंत्र की हार हो जाती है। लोकतंत्र की सुदृढ़ता ही सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के मूल में है। लोकतंत्र का तो अर्थ ही ये है कि जनता के फैसले के अनुसार सत्ता परिवर्तन होगा और प्रत्येक सरकार का मुखिया अपने अग्रणी को स्वीकार करेगा। फिलहाल ब्राजील में इसका उलट ही देखने को मिल रहा है।
बोलसोनारो के समर्थक जिस प्रकार का विरोध प्रदर्शन आज कर रहे हैं, उन्हें ये समझने की आवश्यकता है कि 2011 में सत्ता परिवर्तन के लिए लुला दा सिल्वा ने मना कर दिया होता तो ब्राजील में न तो आज लोकतंत्र होता ना ही बोलसोनारो को कभी मौका मिलता कि वे देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हो सके।
लुला दा सिल्वा, वर्ष 2003 से 2006 और 2007 से 2011 तक राष्ट्रपति पद पर रह चुके हैं और इस दौरान देश ने बड़े स्तर पर व्यापारिक-सामाजिक उन्नति देखी थी। वर्ष 2010 तक अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान लुला की लोकप्रियता बहुत अधिक थी। ब्राजील का कानून उन्हें लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देता इसलिए वो तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ पाए। अगर लुला चुनावी मैदान में होते तो संभावनाएं थी कि परिणाम उनके पक्ष में आते। हालांकि उन्होंने लोकतंत्र का सम्मान किया और ब्राजील में सत्ता परिवर्तन हुआ।
लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने और भंग करने दोनों का बेहतरीन उदाहरण हमें अमेरिकी चुनावों में मिल सकता है जब 2000 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में जॉर्ज डब्ल्यू बुश और अल गोर के बीच चुनाव हुआ था। परिणामों में गोर का वोट प्रतिशत बुश से अधिक था। हालांकि, इलेक्टोरल कॉलेज एवं सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से बुश को विजयी माना गया उस समय गोर ने लोकतंत्र का सम्मान किया और परिणामों को स्वीकार करते हुए जॉर्ज बुश को राष्ट्रपति स्वीकार किया।
कह सकते हैं कि ब्राजील में आज जो स्थिति नजर आ रही है कमोबेश वैसी ही स्थिति अमेरिका की थी जब वर्ष 2020 के राष्ट्रपति चुनाव हार जाने के बाद डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों द्वारा कैपिटल हिल में हिंसा की गई थी और जिसके कारण दुनिया भर में डोनाल्ड ट्रम्प की आलोचना की गई थी। ये आलोचना शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता का हस्तांतरण न होने के कारण की गई थी। जनता के फैसले को अस्वीकार कर निर्वाचित सरकार के खिलाफ हिंसा फैलाना किसी भी देश में स्वीकार्य नहीं हो सकता।
भारत के परिप्रेक्ष्य में भी देखें तो कम से कम अभी तक लोकतंत्र का ऐसा मजाक देश में नहीं बना है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत हर चुनाव में नेताओं ने परिणामों को स्वीकार कर शांतिपूर्ण सत्ता का हस्तांतरण किया है। यही कारण है कि कभी उपनिवेश रहे सभी स्वतंत्र देशों में भारत ही एकमात्र सुसंगठित लोकतांत्रिक देश बना है जिसमें चुनाव के बाद लोकतांत्रिक सत्ता के हस्तांतरण को लेकर कभी कोई समस्या नहीं देखी गई।
सत्ता हस्तांतरण को स्वीकार न करना ही हिंसा के लिए रास्ते खोलता है। यह हम पाकिस्तान में भी देख सकते हैं जहाँ शायद ही कभी अग्रणी सरकार को बिना हिंसा के स्वीकार किया गया हो। यहाँ इस वर्ष भी चुनाव होने हैं और संभावनाएं बहुत अधिक हैं कि फिर से केंद्रीय चर्चा में हिंसा रहेगी। ऐसी ही स्थिति ब्राजील में होना चिंता का विषय है जहाँ प्रशासनिक भवन से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में विरोधियों के द्वारा हिंसा की गई है।
ब्राजील की हिंसा ने जाहिर तौर पर वैश्विक नेताओं को आगामी संभावित स्थितियों के लिए सतर्क कर दिया है। अगर यहाँ लोकतंत्र भंग कर दिया जाता है तो ये लोकतांत्रिक देशों के लिए चिंता का विषय बन जाएगा। ऐसे में वैश्विक नेताओं द्वारा ब्राजील में हो रही हिंसा को लेकर चिंता व्यक्त करना स्वाभाविक जान पड़ता है। यही कारण है कि सारे राष्ट्राध्यक्ष लोकतांत्रिक परंपराओं के सम्मान की बात कर रहे हैं।
लोकतंत्र का आधार यही है कि सत्ता का रास्ता देश के नागरिकों के वोट से होकर निकले। चुनाव परिणाम हमेशा आशा ले अनुरूप आएं, यह जरूरी नहीं है। इसमें किसी एक को सत्ता मिलती है। लोकतंत्र की यही खूबसूरती है कि कुछ समय बाद इसमें फिर बदलाव आता है और अन्य पक्ष को फिर मौका मिलता है अपनी बात कहने का। इसलिए लोकतंत्र की रक्षा करना प्रत्येक हर देश के राजनीतिक दलों का कर्तव्य है।