योगेन्द्र यादव को तो हम सभी वर्षों से जानते थे पर अब पहचानते भी हैं। कभी पत्रकार, कभी राजनेता, कभी अर्थशास्त्री कभी वैज्ञानिक तो कभी समाजशास्त्री होने का दावा करने वाले योगेन्द्र यादव कुछ ही दिन पहले एक न्यूज़ चैनल पर उनकी एंकर की एक बात से नाराज़ हो गये थे। योगेन्द्र यादव ये बात सुनकर बहुत परेशान हो गये थे कि एक समय इस देश में १३ मुख्यमंत्री ब्राह्मण थे। ऐसे एक नहीं बल्कि कई क़िस्से हैं जब ब्राह्मणों को बाहरी बता दिया जाता है या फिर अलग अलग तरह से ब्राह्मणों को लज्जित करने की कोशिश की जाती हैं। ब्राह्मणों से इस क़िस्म की नफ़रत और हीनभावना असल में ज्ञान की कमी का परिणाम है। जानकारी का अभाव और उस अभाव से पैदा होने वाली नफ़रत है या जानबूझकर हमारी सभ्यता के ख़िलाफ़ साज़िश है। जिस प्रकार पश्चिम में सारी पुरानी सभ्यताएँ समाप्त हो गईं उसी तरह से ये हमारी सभ्यता को मिटाने वाले साज़िशकर्ताओं के टूल्स ही तो नहीं हैं?
विमर्श: क्या मनुस्मृति से आई ब्राह्मणवादी पितृसत्ता?
हमने सिविलाइजेशन स्टोरीज़ के एक एपिसोड में पैट्रीआर्की के बारे में भी बताया था कि जब सारा वेस्टर्न गिरोह भारत पर ब्राह्मणीकल पैट्रीआर्की के आरोप लगाता है तब वो सारी दुनिया से ये क्यों छिपाता रहा कि पैट्रीआर्की का तो मूल ही अब्राहम से हुआ है। आज के एपिसोड में हम बात करेंगे ब्राह्मणों पर, ये कहाँ से आये और ये कौन लोग हैं।
ब्राह्मण कौन थे
ब्राह्मण असल में कोई एक इंसान नहीं था। ये इंसान की विजडम से जुड़ी हुई शब्दावली थी। जिसके पास ज्ञान, वो ब्राह्मण। जिसे ब्रह्म की जानकारी होती वह ब्राह्मण कहलाता। गुप्त काल तक की अगर बात करें तो गुरुकुलों में हमारे वेद, शास्त्र, उपनिषद, मौखिक रूप से कई सदियों तक परंपरागत रूप से आगे बढ़ते रहे। ये कार्य करने वाले ब्राह्मण कहलाते और ये वो ज्ञान था जो समाज के उन्नति के लिए बेहद आवश्यक था।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो विश्वामित्र हैं, जो क्षत्रिय होने के बाद भी ऋषि माने गए। जब उन्होंने क्रोध त्यागा और ज्ञान अर्जित किया तब उन्हें ब्रह्मऋषि कहा गया।
ब्रह्म हत्या क्यों था अक्षम्य
यही वजह भी थी कि उस दौर में ब्रह्म हत्या को अक्षम्य माना गया, इतना अधिक अक्षम्य कि रावण की मृत्यु के बाद भगवान राम भी ब्रह्म हत्या के पश्चाताप में रहे। ब्राह्मण की हत्या का अर्थ था कि आप उस ज्ञान और परंपरा की एक कड़ी को तोड़ रहे हैं जो कई सदियों से चली आ रही थी। आप इसकी तुलना उस डेटा कार्ड से कर के देखिए जिसके भीतर कई GB और TB में इन्फ़ॉर्मेशन सुरक्षित होती है लेकिन आज तो हमारे पास डेटा स्टोर करने के लिए क्लाउड हैं, माइक्रोचिप्स हैं, और डेटा रिकवरी तक के भी साधन हैं, उस दौर में सिर्फ़ ब्राह्मण ही इस सूचना और ज्ञान या जानकारी को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित करते थे और उसके वाहक होते थे। यही वजह थी कि वैदिक साहित्य को ही ब्राह्मण कहा गया।
अब आते हैं असल विषय पर। यानी ब्राह्मण। यह तो एक कार्य था। जो ज्ञानार्जन के कार्य में होता, उसे ब्राह्मण की उपाधि दी जाती। इस तरह से एक ब्राह्मण एक विशाल लाइब्रेरी यानी पुस्तकालय के समान था और इसीलिए वह बेशक़ीमती माना जाता था। उस ब्राह्मण के ज्ञान के कारण ही क्षत्रिय ब्राह्मण की रक्षा को अपना धर्म मानते थे। ये असल में उस ज्ञान की रक्षा करने की प्रतिबद्धता है, जो सदियों से उस लाइब्रेरी के रूप में चली आ रही थी। अब आप एक लाइब्रेरी यानी पुस्तकालय की इम्पोर्टेंस देखिए। जब भी कोई पुस्तकालय नष्ट किया जाता है, उस पुस्तकालय के साथ एक पूरी सभ्यता नष्ट हो जाती है। यही वजह थी कि पश्चिम से जब भी लोग यहाँ पर आए, उन्होंने सबसे पहले ज्ञान को ख़त्म करने की परंपरा अपनाई। यहाँ की धरती पर जो कुछ भी मौलिक चिंतन था, उसे ही तबाह कर दिया जाए।
अलेक्जेंड्रिया का पुस्तकालय और हिपेशिया
पुस्तकालय से मुझे एक और पुस्तकालय याद आता है। अलेक्ज़ेंड्रिया। अलेक्ज़ेंड्रिया कभी सबसे बड़ा पुस्तकालय हुआ करता था। लेकिन कुछ रेडिकल क्रिश्चियंस ने उसे समाप्त कर दिया। ये वो लोग थे जो कुछ भी समझते नहीं थे और ना ही समझने के लिए तैयार होते थे।
ये उसी पतनशील रोम साम्राज्य की बात है जहां पर हिपेशिया भी रहती थी। हिपेशिया दार्शनिक, गणितज्ञ और खगोलविद थी। उसके भीतर तर्क शक्ति थी और आत्मविश्वास भी। ये वो स्त्री थी जो रोमन साम्राज्य में मौजूद दक़ियानूसी विचारों के ख़िलाफ़ बग़ावत कर बैठी थी। वो सौर मण्डल के बारे में जो कुछ कहती वो क्रिश्चियंस को पसंद नहीं आती थी क्योंकि उसकी बातें एक हिसाब से ईसाइयों की बाइबल के खिलाफ थीं। इसलिए ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों ने उस पर पाबन्दी लगा दी। उन्हें हिपेशिया से इतनी नफ़रत थी कि ख़ुद उसके क्रिश्चियन स्टूडेंट्स ने टूटे हुए मिट्टी के बर्तनों से उसके शरीर को काटा। कैथोलिक चर्च के कहने पर उसकी मॉब लिंचिंग कर दी गई। और वहाँ का पुस्तकालय भी ख़त्म कर दिया गया।
यही सब भारत के प्राचीन पुस्तकालयों के साथ किया गया। नालंदा के विशाल पुस्तकालय को जला दिया गया। कट्टरपंथियों ने जहां ज्ञान देखा, उसे निशाना बनाया, और सिर्फ़ उसे ही ख़त्म नहीं किया बल्कि अपना ज्ञान भी उस भौगलिक क्षेत्र में थोपा।
मलाला पर हमला
कट्टरपंथियों ने जहां भी ज्ञान देखा, उन्होंने उसे नष्ट करने की ही योजना बनाई। इसका एक उदाहरण मलाला भी है। मलाला उस वक्त शिक्षा की वकालत कर रही थी जब तालिबान शिक्षा लेने वालों को बेशर्म बता रहा था और उन्हें मज़हब के ख़िलाफ़ बता रहा था। उस मलाला पर भी हमला किया गया। वो तो भला हो उस बीबीसी का जिसने उसे बचा लिया, उसके अब्बा भी टीचर थे और उनकी पश्चिमी देशों में थोड़ी बहुत जान पहचान भी थी, जबकि भारत में बीबीसी ऐसा नहीं करता है, नालंदा जैसे विषयों की पैरवी बीबीसी ने नहीं की। भारत में ब्राह्मणों के बचाव में बीबीसी कभी नहीं आता। यही वजह भी है कि दुनिया भर के और ख़ुद भारत के लेफ़्टिस्ट या वामपंथी भी ब्राह्मणों से नफ़रत करते हैं। वो स्मैश ब्राह्मणीकल पैट्रीआर्की के नारे देते हैं। वो मनु को भी निशाना बनाते हैं जबकि मनु तो क्षत्रिय राजा थे। सोचिए कि ऐसा क्यों? यही वजह थी कि भारत में नालंदा और तक्षशिला को नष्ट कर दिया गया। वो ऐसा कर के सिर्फ़ किताबों को नहीं ख़त्म कर रहे थे, असल में वो पूरी सभ्यता को ही नष्ट करना चाहते थे। उस डेटाबैंक को, जो भारत की नींव था।
यानी एक बात तो तय है कि बात चाहे मिस्र की करें या भारत की, ये हर जगह अब्राहमिक रिलिजन ही थे जो ज्ञान को ख़त्म करना चाहते थे। शायद यही वजह भी है कि टीवी चैनल पर ब्राह्मण शब्द सुनते ही सलीम यादव का दुख फूट पड़ा।
अलेक्ज़ेंड्रिया से नालंदा और तक्षशिला तक
जब मुग़ल, तुर्क आक्रांता भारत आए तो उन्होंने सबसे पहले यहाँ के पुस्तकालयों को जलाया, नालंदा को तबाह किया, मंदिर में रहने वाले ब्राह्मणों को चुन चुनकर निशाना बनाया गया, यही वजह आज भी दिखती है जब पश्चिमी देश कहते हैं कि स्मैश ब्राह्मणीकल पैट्रीआर्की। आज भी उनका मक़सद उस एक परम्परा को पूरी तरह से नष्ट करना है जिस से वो ख़ुद को सबसे अधिक असुरक्षित महसूस करते हैं। वो है, उस सूत्र को ही तोड़ देना, यानी ब्राह्मण। लेकिन क्या मैं एक जाति की बात कर रहा हूँ? नहीं, क्योंकि हमलावरों के लिए हर वो व्यक्ति ब्राह्मण है जो जानकारी का केंद्र होता है, चाहे वो किसी भी राष्ट्र में क्यों ना हो, पाकिस्तान में उसके लिए मलाला ही ब्राह्मण थी, इस्लामिस्टों ने जब मलाला को निशाना बनाना था तो वो किस चीज पर हमला कर रहे थे?
फ्रांस में हो रहे ताज़ा दंगों में भी अब मार्सिले शहर की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में दंगाइयों ने तोड़फोड़ की और आग लगा दी। हालाँकि यहाँ संदर्भ फ्रांस में अफ्रीकी मूल के एक 17 वर्षीय किशोर को पुलिसकर्मी द्वारा गोली मारकर हत्या किया जाना है लेकिन इसके विरोध में सड़क पर उतरे लोग अपना निशाना पुस्तकालय को ही बना रहे हैं।
यही वजह है कि योगेन्द्र यादव जैसे लोग इस बात से आहत हो जाते हैं कि किसी समय देश में १३ ब्राह्मण मुख्यमंत्री थे। उन्होंने नालंदा को तोड़ा और अब ब्राह्मणवादी समाज को नष्ट करने के नारे लगाते हैं, लेकिन हुआ क्या? आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी – They tried to burry us, they didn’t know we are seeds। यानी, उन्होंने हमें दबाना चाहा लेकिन वो ये नहीं जानते थे कि हम बीज हैं।
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