भारत में पितृसत्ता और ख़ासकर ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता’ अक्सर चर्चा में रहती है। ‘सिविलाइजेशन स्टोरीज़’ #CivilizationStories के इस दूसरे एपिसोड में हम आज पितृसत्ता और इसके मूल को जानने का प्रयास करेंगे।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः
इसका तत्पर्य है कि ‘जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नहीं होती है, उनका सम्मान नहीं होता है, वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।’
ये पंक्तियाँ आप अक्सर यहाँ-वहाँ पढ़ते और लिखते रहते होंगे। ये पंक्तियाँ उसी मनुस्मृति (Manusmriti) से ली गई हैं, जिसे कभी जलाया जाता है, तो कभी इसके विरोध में नारे लगाए जाते हैं। हालाँकि, सवाल तो ये होना चाहिये कि जब मनुस्मृति महिलाओं के बारे में ऐसे विचार रखती है तो फिर ‘पैट्रीआर्की’ या पितृसत्ता वाले ‘वोक’ एवं प्रगतिशील इसे क्यों कोसते दिखते हैं? या फिर मनुस्मृति महिला-विरोधी कैसे हो गई? पैट्रीआर्की भारत में आई कहाँ से और इसका मूल क्या है?
इस सवाल का जवाब हमें मिलता है गूगल सर्च में ‘First patriarch’ यानी पितृसत्ता को चलन में लाने वाला पहला पुरुष, टाइप करने पर। गूगल में जब हम ‘फर्स्ट पैट्रीआर्की’ शब्द टाइप करते हैं तो हमें जवाब मिलता है ‘अब्राहम’। ‘फर्स्ट पैट्रीआर्की’ अर्थात पहला पुरुष गार्जन या पुरुष मुखिया; समाज का, या देश का या घर का या किसी भी जगह का प्रमुख।
पुरुषों की सत्ता, पितृसत्ता या Patriarchy क्या चीज है?
सबसे पहले ये जान लेते हैं कि आख़िर ये पैट्रीआर्की (Patriarchy) है क्या चीज – जिस समाज में महिलाओं को फ़ैसले लेने की आज़ादी नहीं दी जाती या फिर उनके अधिकारों का हनन होता है, उस पर जुर्म किए जाते हैं और फिर उस समाज में पुरुषों का वर्चस्व स्थापित हो जाता है ऐसी संस्था, ऐसे समाज को कहते हैं पैट्रीआर्कीअल सोसायटी, यानी पितृसत्तात्मक समाज।
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पश्चिमी देशों में पितृसत्ता
असल में पितृसत्ता तो पश्चिमी देशों की देन रही है और कोसने वाले इसे भारत पर थोपते भी इसलिए हैं, ताकि वो अपनी हीनभावना को छिपा सकें। गूगल सर्च में क्या जवाब मिलता है वो भी आपने देख लिया है। महिलाओं पर अत्याचार की सबसे ख़तरनाक कहानियाँ भी पश्चिमी देशों की ही हैं। जैसे-जैसे सभ्यताएँ बढ़ती गईं, पैट्रीआर्की का सिद्धांत भी फलने फूलने लगा।
अब आप अमेरिकी समाचार पत्र द गार्जियन का ये कॉलम पढ़िए– इसमें अमेरिका की एक नामी टीवी एंकर ऑपरा विन्फ़्रे बहुत कठोर शब्दों में ‘पैट्रीआर्की’ को कोस रही हैं। वो कह रही हैं कि बहुत ज़्यादा ताकतवर लोगों ने सभ्यता में सबसे बड़े घाव पैदा किए। विन्फ़्रे का कहना है कि ये वो लोग थे जिन्होंने महिलाओं पर ज़्यादतियाँ कीं, ये सिर्फ़ कलाकारों तक ही सीमित नहीं था बल्कि फ़ैक्ट्री में काम करने वाले पुरुष, किसान, एथिलीट, सैनिक, और अकादमिक स्तर पर मौजूद लोगों ने महिलाओं पर अत्याचार किए।
“Brutally powerful men” had “broken” something in the culture. These men had caused women to suffer: not only actors, but domestic workers, factory workers, agricultural workers, athletes, soldiers and academics. The fight against this broken culture, she said, transcended “geography, race, religion, politics and workplace”
लेकिन अब अगर हम इजिप्ट यानी मिस्र के समाज की बात करें और 2700 ईसा पूर्व में जाएँ तो वहाँ तो पैट्रीआर्की या फिर पितृसत्ता का कोई ज़िक्र नहीं मिलता। वहाँ तो पुरुष और महिलाएँ मिल जुलकर समाज चला रहे होते थे। फिर ये अचानक पैट्रीआर्की पितृसत्ता में कब तब्दील हुआ?
अब्राह्मिक धर्मों के साथ पितृसत्ता का उदय
असल में अमेरिका की ये नामी आवाज़ ऑपरा विन्फ़्रे उस समाज की बात कर रही है, जिसमें ये कुंठा बैठी है – क्योंकि पश्चिम के हिसाब से एक दौर आया जिसे ‘एज ऑफ़ एनलाइटमेंट’ (The Age of Enlightenment) कहा गया, इसमें पश्चिम के विद्वानों ने कहा कि जो हमारी पहले की व्यवस्था थी वो बेकार है और जो हमारा समाज है उसमें पैट्रीआर्की होनी ज़रूरी है, क्योंकि उस से पहले मिस्र में तो ऐसी कोई समस्या थी ही नहीं ।

इजिप्ट में 2700 ईसा पूर्व के दौर में सब सामान्य था, तो मतलब पश्चिमी देशों में अब्राह्मिक धर्मों का उदय तो पितृसत्ता की वजह नहीं बना? प्रमाण तो कुछ ऐसे ही मिलते हैं कि इजिप्ट यानी मिस्र जैसे देशों में पैट्रीआर्की का कॉन्सेप्ट ही अब्राहम से आया है और शायद यही वजह भी है कि पश्चिम के धर्मों को अब्राह्मिक माना जाता है – अब्राहम या इब्राहिम। क्या इन्हीं अब्राह्मिक धर्मों का उदय ही तो पितृसत्ता की वजह तो नहीं बना? प्रमाण तो ऐसे ही मिल रहे हैं ।
जैसे जैसे साम्राज्य विस्तार अपनी जगह बनाने लगा राजनीति हावी होने लगी, जैसे जैसे राजनीति बढ़ती गई, पितृसत्ता की बहस भी ज़ोर पकड़ने लगी। तो ये पैट्रीआर्की पितृसत्ता में कब तब्दील हुआ? महिलाओं के दमन की पश्चिम में ऐसी हिंसक और वीभत्स कहानियाँ हैं जिन्हें सुनकर रूह काँप जाती हैं। हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि उस दौर में महिलाओं के लिए किस क़िस्म की मुश्किलें रही होंगी।
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रोम-यूरोप में ‘व्हिच-हंटिंग’
इसका सबसे दर्दनाक पहलू तो विच् हंटिंग था, औरतों को ऐसे जलाया गया – ताकि जो थोड़ा बहुत भी पढ़े-लिखे लोग होते उन्हें भी निपटा दिया जाए, उनका वजूद ही ना रहे।
1400 से 1700 के बीच यूरोप महाद्वीप और ख़ासकर रोम के इतिहास में महिलाओं पर अत्याचार की कहानियाँ सुनिए। इस टाइम पीरियड में 40,000 से 60,000 महिलाओं को इसलिए जला दिया गया क्योंकि यूरोप के लोगों को शक था कि ये औरतें चुड़ैल हैं या फिर जादू टोना करती हैं। कुछ स्रोत तो ये भी बताते हैं कि इस समयावधि में 1 लाख महिलाओं से इस वजह से ज़्यादतियाँ की गईं उन पर अत्याचार किए गए। ये वही दौर है जब यूरोप के पुरुषों को ज्ञान मिला, यानी ‘एज ऑफ ऐन्लाइटमेंट’, तो जब उन्हें ज्ञान हुआ तो उन्होंने महिलाओं को जला दिया कि ये तो पढ़-लिख कर के जादू टोना कर रही हैं ।

पश्चिमी देशों में तो महिलाओं को वोट देने तक का अधिकार नहीं था। प्राचीन ग्रीस और रोम गणराज्य में भी महिलाओं को मत देने का अधिकार नहीं रहा, एथेंस यानी ग्रीस को तो कहा जाता है कि दुनिया में सबसे पहले अगर कहीं लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था थी तो वो ग्रीस में थी, लेकिन वहां महिलाओं को मतदान करने का अधिकार पहली बार वर्ष 1952 में मिला। भारत तो 1947 तक ग़ुलाम था लेकिन पहली सरकार जो बनी उसमें भी महिलाओं का योगदान था, उन्हें अहम पदों पर भी रखा गया। जबकि विकसित देशों में 19वीं सदी में पहुँचकर कई यूरोपीय देशों ने पहली बार इस बारे में सोचा कि महिलाओं को भी मतदान का अधिकार होना चाहिए। अमेरिका में महिलाओं को मतदान का अधिकार 1920 में मिला। यूरोप के कई देशों में वर्ल्ड वॉर 2 के बाद महिलाओं के लिए मतदान के अधिकार के बारे में सोचा गया ।
महिलाओं की ये दबी कुचली आवाज़ पश्चिमी देशों में थी। ये आवाज़ फ़ेमीनिज्म की शक्ल लेने लगी और पितृसत्ता के विरोध में पश्चिम की कुंठित, शोषित महिलाओं के अंदर की आवाज़ विरोध का स्वर लेने लगी।
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भारत में ब्राह्मणवादी पितृसत्ता
अब ये अवसर था उनके लिए जो हिंदू धर्म से नफ़रत करते थे। वो पश्चिमी देशों की ये बुराई भारत ले कर आए और इसे नाम दे दिया ब्राह्मणीकल पैट्रीआर्की – इस तस्वीर में आप ट्विटर के पूर्व CEO जैक डोर्सी को देख रहे हैं और उनके साथ खड़ी हैं बरखा दत्त।

आज ये दोनों किस हालत में हैं ये सभी जानते हैं, इसी ट्विटर के ज़रिए जिन लोगों ने भारत की धरती पर ब्राह्मणवादी पितृसत्ता (Brahminical Patriarchy) की बात की, वो सभी पर्दे से ग़ायब होते चले गए। इसे आप चाहें तो ‘पोएटिक जस्टिस’ भी कह सकते हैं। ये देवी का न्याय है, उस देवी का न्याय जिसे भारत में शिव-शक्ति के रूप में पूजा जाता है।
जब पश्चिम में महिलाओं के मतदान के अधिकार की बात हो रही थी, उस से कई समय पहले से ही भारत में स्त्री को अर्धांगिनी माना जाता था, देवी को ईश्वर का आधा स्वरूप मानकर पूजा जाता था। ये ‘वोकिज़्म’ के नाम पर भारत में पैट्रीआर्की जैसी टर्म्स ले कर आए और इनके प्रयोग विफल हुए।

हिंदू सभ्यता से नफ़रत करने वाले पश्चिमी देशों ने भारत में पैट्रीआर्की शब्द थोपने के प्रयास किए, और जब इसके आगे ‘ब्राह्मणवाद’ जोड़ दिया जाता है तो उसका सीधा संबंध जोड़ दिया जाता है भारतीय समाज से और उसके जातिगत वर्गीकरण से। यानी ब्राह्मणों द्वारा तय की गई पितृसत्ता। #SmashBrahmanicalPatriarchy जैसे शब्द गढ़ने वाले चाहते हैं कि इन लोगों को कोसा जाए क्योंकि पैट्रीआर्की की स्थापना के पीछे वजह तो यही लोग थे। पुरुषों की सत्ता स्थापित करने वाले कौन थे हम आपको बता चुके हैं।
और जैसा कि मैंने आपको पहले बताया कि भारत में तो स्त्री को देवी का दर्जा दिया गया है, यहाँ तक कि हमारे ईश्वर भी स्त्री के बिना अधूरे बताए गए हैं – जैसे अर्धनारिश्वर, जैसे शिव शक्ति, जैसे राधा-कृष्ण, जैसे माँ सीता और राम, तो जिस समाज के ईश्वर भी स्त्री के बिना अधूरे होते हों क्या वो समाज कभी पितृसत्तात्मक हो सकता है?
यहाँ तो देवी के समक्ष ब्रह्म, विष्णु और महेश, यानी पूरी सृष्टि का निर्माण करने वाले भी बच्चे बन जाते हैं। फिर पितृसत्ता भारतीय समाज का हिस्सा कैसे हो सकता है? जिस मनुस्मृति में कहा गया हो कि जहां स्त्री की पूजा नहीं होती वहाँ देवता भी नहीं रहते, आख़िर वो मनुस्मृति ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्ता’ का मूल कैसे हो सकती है? संसार की तो जननी ही भारतभूमि है, यदि किसी को संदेह है तो वो इस वीडियो को एकबार फिर देखे और पितृसत्ता के मूल तक पहुँचने का प्रयास अवश्य करे और अन्य लोगों को भी बताए कि वो पितृसत्ता के इतिहास से कितना कम परिचित थे।