‘क्रांतिदूत’ हमारे क्रांतिकारियों की अमर गाथा का एक चित्रण है। इस रचना का नाम झांसी फाइल्स होने के पीछे का एक कारण रचनाकार का झांसी का होना है। इससे भी बड़ा कारण इस कहानी में आए उन सभी क्रांतिकारियों के जीवन का कभी न कभी एक पड़ाव झांसी में होना है।
झांसी का नाम जब भी हमारे मस्तिष्क में आता है, तब स्वत: ही रानी लक्ष्मीबाई का नाम स्मरण हो आता है। रानी लक्ष्मीबाई की इस भूमि ने बाद में भी कई क्रांतिकारी दिए हैं और उनके गुप्त प्रवास में उनकी सहायता भी की है। यह रचना चंद्रशेखर आज़ाद को केंद्र में रख कर लिखी गई है। लेखक ने इसे 23 छोटे अध्यायों में बाँट कर लिखा है जो ‘अचानक’ से शुरू होकर ‘विशेष अंक – निगेटिव’ तक जाती है।
झाँसी फाइल्स की शुरुआत चंद्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाक़ उल्लाह खान, रामप्रसाद बिस्मिल और राजगुरु के संवाद से शुरू होती है। यह चारों अपने संगठन के लिए धन और हथियार जुटाने के लिए चिंतित होते है। और यही चिंता जन्म देती है एक योजना को जिसे इतिहास के पन्नों में ‘काकोरी काण्ड’ के नाम से जाना गया।
‘क्रांतिदूत’ की इस शृंखला में काकोरी ट्रेन डकैती के पश्चात् आज़ाद के झाँसी में गुप्त प्रवास से लेकर अपने संगठन की शक्ति बढ़ाने से लेकर क्रांति की योजनाओं पर प्रकाश डाला गया है। इस रचना में लेखक ने कुल 27 पात्रों से परिचय करवाया है (मैंने स्वयं इन पात्रों की गिनती नहीं की है, इन पात्रों की गिनती के लिए में नवीन शर्मा जी को धन्यवाद देता हूँ)।
इन्ही 27 में से एक मास्टर रुद्रनारायण जी हैं जो इन सभी क्रांतिकारियों के बीच की कड़ी हैं। इन 27 पात्रों में से कई नाम ऐसे हैं जिन्हें मैं पहली बार पढ़ रहा था, ये वो गुमनाम शख्स है जिन्हें इतिहास की पुस्तकों में पर्याप्त स्थान नहीं मिला है। लेखक ने ऐसे ही गुमनाम नामों से परिचित करवाया है ‘क्रांतिदूत’ में।
इसे पढ़ते हुए प्रतीत होता है कि आप के सामने वो सभी घटनाएं एक फिल्म के रूप में चल रही है। क्रांतिदूत के पात्रों का संवाद जब-जब बुंदेलखंडी में होता है तब वह आपको और अधिक प्रासंगिक लगने लगता है।
विशेष – हमारे देश के कुछ क्रांतिवीरों की हमें ज्यादा तस्वीरें देखने को नहीं मिलती, उन्हीं में से एक हैं आजाद जिनकी बहुत ही कम तस्वीरें उपलब्ध हैं। आजाद की एक ऐसे ही तस्वीर का जिक्र इस पुस्तक में लेखक ने बड़े ही सुंदर ढंग से किया है।
हमारी युवा पीढ़ी उन क्रांतिकारियों से अनभिज्ञ है, जिन्होंने अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने में अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे में यह शृंखला इस युवा पीढ़ी को इतिहास के उन महान क्रांतिकारियों को पुनः जानने में निश्चित ही सहायक सिद्ध होगी। आशा है इस शृंखला की अन्य पुस्तकें भी इसी तरह ज्ञानवर्धक होंगी।
यह पुस्तक समीक्षा विवेक सिन्हा द्वारा लिखी गई है