पूरी दुनिया में मजहबी या रिलिजस पैगंबरों, किताबों की निन्दा को ईशनिन्दा नाम दिया जाता है। ईशनिन्दा के नाम पर हत्याओं का लम्बा इतिहास रहा है, पर जहाँ-जहाँ अरबी पन्थ का प्रसार रहा है वहाँ पर ईशनिन्दा का वीभत्स रूप देखने को मिलता है।
जब कबीलाई मानसिकता अपने अहं पर चोट पहुंचती देखती है तो बौद्धिकता के अभाव में जंगली पशुओं की तरह हिंसा को ही एकमात्र रास्ता समझती है। यहीं से जन्म लेता है ईशनिन्दा से जुड़ा हिंसक अपराध, जो असहमति और विचार विमर्श के मौलिक मानवीय अधिकार को कुचलकर रख देता है।
ईशनिन्दा के नाम पर हत्या करने वाली बर्बर मानसिकता फ़िलहाल अपने पूरे शबाब पर है जो प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमले से पता चल जाता है! यूं तो सारा यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, मध्य-एशिया ईशनिन्दा के आरोप में बेलगाम हत्याओं के चश्मदीद रहे हैं, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप तो इस अपराध का भयानक विक्टिम रहा है। इसलिए पहले आपको भारत की ही कहानी बताते हैं ताकि इस संगठित अपराध की वैश्विक शक्ति की हकीक़त पता चल सके।
बीमार स्वामी श्रद्धानन्द को अब्दुल रशीद ने गोलियों से भूना
23 दिसंबर 1926 की दोपहर को निमोनिया से पीड़ित स्वामी श्रद्धानंद अपने बिस्तर पर थे, तब अब्दुल रशीद नाम का एक युवक उनके हालचाल जानने आया। अचानक रशीद ने अपनी छिपाई हुई पिस्तोल से उनपर गोलियां दाग दीं और उनकी हत्या करदी। उस समय स्वामी श्रद्धानंद बहुत बड़े नेता माने जाते थे, गांधी उन्हें अपना बड़ा भाई कहते थे। पर हत्या के बाद गांधी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई बता दिया था।
स्वामी श्रद्धानंद
स्वामी श्रद्धानंद ने अज्ञान, स्वार्थ व प्रलोभन के कारण धर्मांतरित हुए हिन्दुओं को स्वेच्छा से हिन्दू धर्म में वापिस लाने के लिए शुद्धि सभाओं का गठन किया था जिस कारण लाखों लोग घरवापसी कर रहे थे। इससे बहुत से कट्टरपंथी नाराज़ हो गए थे और इसी बीच एक धर्मांध मुस्लिम युवक अब्दुल रशीद ने धोखे से उनकी गोलियों से भूनकर हत्या कर दी।
किताब छापने पर कोर्ट से बरी हो चुके महाशय राजपाल की हत्या की
1920 के दशक में अविभाजित भारत सांप्रदायिक दंगों की आग में पहले से जल रहा था, तब आग में घी डालते हुए मुस्लिम समुदाय ने हिन्दू धर्म के विरुद्ध दो अश्लील और अपमानजनक पुस्तकें प्रकाशित कीं, यह थीं – “कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी” और “उन्नीसवीं सदी का महर्षि”। इस साहित्यिक आतंकवाद का जवाब देते हुए आर्यसमाज के पण्डित चमूपति ने हदीसों के उचित शोध के बाद इस्लामिक पैगंबर की एक छोटी घरेलू जीवनी “रंगीला रसूल” शीर्षक से लिखी जिसे महाशय राजपाल ने ‘राजपाल एंड संस’ से प्रकाशित किया।
खिलाफतवादियों और अहमदियों ने पुस्तक का भारी विरोध किया और मुकदमा किया। जून 1924 में मोहनदास गाँधी ने अपने साप्ताहिक ‘यंग इण्डिया’ में इस पुस्तक के खिलाफ एकतरफा लेख लिखा जिसने आग में घी डालने का काम किया और लाहौर के मुसलमानों में आक्रोश फैल गया। ब्रिटिश सरकार ने दूसरे संस्करण के छपने से पहले जून 1924 में इसपर बैन लगा दिया था।
करीब तीन साल तक चली कानूनी कार्यवाही में मई 1927 में महाशय राजपाल को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। न्यायाधीश ने तर्क दिया कि धारा 153A विभिन्न धर्मों के ‘महापुरुषों’ के ऐतिहासिक विश्लेषण को प्रतिबंधित नहीं करती है और यदि इसे लागू किया गया, तो गंभीर इतिहासकारों के कार्य भी इसके अधीन बाधित हो सकते हैं।
फैसले के खिलाफ मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया और जगह जगह आगजनी और दंगे भड़क उठे। मुस्लिम समूहों द्वारा राजपाल की हत्या का आह्वान किया गया, और कहा गया कि पैगंबर का अपमान करने की सजा मौत है और शरीयत का यही कानून है। लाहौर में मोची गेट पर अताउल्लाह शाह बुखारी ने राजपाल के खिलाफ़ भड़काऊ भाषण दिया।
अंत में, 6 अप्रैल, 1929 को राजपाल की दुकान के पुराने ग्राहक इल्म-उद-दीन नाम के एक 19 वर्षीय बढ़ई ने महाशय राजपाल के सीने में आठ बार धारदार हथियार से वार किया, जिसमें उनकी जान चली गई। । यही बात 1929 के बाद से आज 2022 तक उसी रूप में दोहराई जा रही है कि, “गुस्ताख़ ए नब़ी की एक ही सज़ा, सर तन से जुदा-सर तन से जुदा” और आजतक आतंकियों द्वारा दहशत फैलाई जा रही है।
हत्याकाण्ड के बाद इल्मुद्दीन को ‘ग़ाज़ी’ की उपाधि देकर हीरो बनाया गया पर ब्रिटिश अदालत ने इल्मुद्दीन को फांसी की सजा सुनाई। फांसी के बाद लाहौर में इल्मुद्दीन की अंतिम यात्रा में 4 लाख से ज्यादा मुसलमान उमड़े, जिसने लाहौर के हिन्दू मुसलमानों की खाई को सदा के लिए बढ़ा दिया, क्योंकि इससे यह सिद्ध हो चुका था कि अधिकांश मुस्लिम उस जघन्य हत्याकाण्ड का समर्थन करते हैं।
ईशनिन्दा के आरोप में कमलेश तिवारी की चाकुओं से हत्या कर सिर में मारी गोली
18 अक्टूबर 2019 का दिन था, जब अज्ञात हमलावरों ने हिन्दू महासभा के पूर्व नेता कमलेश तिवारी की उनके कार्यालय में घुसकर बेरहमी से चाकूओं और गोलियों से मारकर हत्या करदी। इस जघन्य क़त्ल को ‘ईशनिंदा’ का हवाला देते हुए हवा दी गई थी। 2015 में पैगंबर पर अपनी कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणियों की सजा के रूप में वे पहले ही कानून के अनुसार 9 महीने जेल में बिता चुके थे।
पोस्टमार्टम से पता चला कि कमलेश तिवारी को 15 बार चाकू से मारा गया था, और उसके बाद आतंकियों ने उनके चेहरे पर एक गोली भी मारी थी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी मौत हो गयी है। इस मामले में एसआईटी चार्जशीट में दिल्ली के एक वकील मोहम्मद नावेद सिद्दीकी और बरेली के मौलवी सैय्यद कैफ़ी अली समेत 13 आरोपियों को हत्या, आपराधिक साजिश और आर्म्स एक्ट के उल्लंघन के आरोप में नामजद किया गया।
गलती से सोशल मीडिया पोस्ट शेयर करने पर गरीब दर्जी कन्हैया की गला काटके की हत्या
28 जून 2022, राजस्थान के शान्त जिले उदयपुर का एक शान्त दिन। एक राष्ट्रीय पार्टी की प्रवक्ता नुपुर शर्मा ने इससे कुछ दिन पूर्व टीवी बहस में एक बयान दिया था जिसे ईशनिन्दा ठहराकर देशभर में विवाद किया गया और नुपुर को हत्या और बलात्कार की धमकियां दी गयीं थीं।
कन्हैयालाल नाम के एक गरीब दर्जी के नाबालिग बेटे ने कुछ दिन पहले नूपुर शर्मा के समर्थन की पोस्ट गलती से सोशल-मीडिया पर साझा कर दिया था, जिसे ईशनिन्दा ठहराकर पड़ोस के कुछ मुस्लिमों ने उसे धमकियां दीं, जिसके डर से कई दिन उसने दूकान बंद रखी और पुलिस स्टेशन में माफ़ी भी मांगी।
पर इसके कुछ दिन बाद कपड़े सिलवाने के बहाने मोहम्मद रियाज अख्तर और मोहम्मद गौस नाम के दो इस्लामी आतंकियों ने कन्हैया की दूकान में घुसकर धारदार हथियारों से बेरहमी से कन्हैया का गला काटकर क़त्ल कर दिया।
आतंकियों ने इस पूरी घटना को कैमरे पर भी रिकोर्ड किया और वीडियो साझा करते हुए यह दावा भी किया कि जैसे उन्होंने कन्हैया लाल की हत्या की, इसी तरह से पीएम नरेन्द्र मोदी को मारेंगे।
ये चार घटनाएँ भारत में ईशनिन्दा के नाम पर कत्लों के स्याह पन्ने का एक कोना भर भी नहीं हैं। जरा पड़ोसी मुल्क की शर्मनाक घटनाएं भी जान लें :-
पाक. पंजाब के पूर्व राज्यपाल सलमान तासीर को मानवता के समर्थन के कारण गोलियों से भूना
पाकिस्तान में एक गरीब ईसाई महिला आसिया बीबी को कथित ईशनिंदा के लिए फाँसी की सज़ा मुकर्रर की गयी थी। पर पाकिस्तान के कुछ मानवतावादी लोग इस सज़ा का विरोध कर रहे थे जिनमें से एक थे पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के पूर्व राज्यपाल सलमान तासीर। सलमान तासीर ने सार्वजनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से महिला की सजा को माफ करने की अपील करते हुए कहा था कि, “इस तरह के कानूनों की आधुनिक दुनिया में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।”
तासीर ने कहा कि, “आसिया बीबी एक गरीब ईसाई महिला है और उसके खिलाफ सजा इंसानियत के खिलाफ गुनाह है।” पर जल्द ही तासीर को इसकी क़ीमत चुकानी पड़ी। पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून की स्पष्ट रूप से निंदा करने के कारण, 2011 में सलमान तासीर के बॉडीगार्ड मुमताज कादरी ने खुलेआम 27 गोलियाँ मारकर बेरहमी से उनका क़त्ल कर दिया। ‘ईशनिंदा’ के लिए इस हत्या पर पाकिस्तान में ना सिर्फ जश्न मनाया गया बल्कि हत्यारे कादरी को ‘जिहाद का योद्धा’ घोषित किया गया और उसके नाम पर दरगाह बनाई गयी।
किसी ने सपने में देखा सफूरा बीबी ने की ईशनिन्दा, हो गयी हत्या
2022 की मार्च में पाकिस्तान का एक गाँव। एक मदरसे में पढ़ाने वाली शिक्षिका सफूरा बीबी को स्कूल के मेन गेट पर तीन औरतें अचानक घेर लेती हैं, जिसमें एक उनकी साथी शिक्षिका और दो उनकी छात्राएं हैं, विवाद होता है और कुछ ही देर में सफूरा की खून से सनी लाश जमीन पर होती है, तीनों महिलाओं ने मिलकर सफूरा का गला काटकर क़त्ल कर दिया है।
घटना है पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के डेरा-इस्माइल-खान की, जहाँ एक मदरसे में पढ़ाने वाली मामूली शिक्षिका सफूरा बीबी की ईशनिंदा के आरोप में बड़े ही चौंकाने वाला हवाला देकर संगीन क़त्ल कर दिया गया। क़ातिलों में से एक उमरा अमन, सफूरा की साथी शिक्षिका थी और उसकी दो भतीजियाँ भी उसी मदरसे में पढ़ती थीं।
मामला बेहद चौंकाने वाला था। तीनों क़ातिल महिलाओं ने खुलासा किया कि उनकी तेरह वर्षीय रिश्तेदार ने सपने में देखा था कि पैगंबर ने उसे बताया कि सफूरा बीबी ने उनके खिलाफ ईशनिंदा की थी। उस लड़की ने यह भी बताया कि पैगंबर ने सपने में उसे पीड़िता का वध करने का भी आदेश दिया था। बस फिर आरोपी महिलाओं ने “चौथी के सपने को साकार कर दिया”।
यह घटना पढ़कर हमें ताज्जुब तो हो सकता है पर यह एक सच्चाई है कि कैसे घोषित रूप से इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान में इस्लाम के किसी तत्व के ख़िलाफ़ एक छोटे से बयान का अपुष्ट अन्देशा भी न सिर्फ बहुत बड़े विरोध प्रदर्शनों को हवा दे देता है बल्कि उसके नाम पर तुरन्त हत्याकाण्ड भी हो जाते हैं।
अब इस घटना को पाकिस्तान की मान का चैन की सांस न लें क्योंकि भारत या विश्व के किसी भी देश जहाँ इस्लामिक कट्टरपंथ की उपस्थिति है वहाँ स्थिति इससे अलग नहीं है। हर वर्ष विश्व में ईशनिन्दा के नाम पर भयंकर हिंसा, रक्तपात और हत्याकाण्ड हो रहे हैं पर सरकार, प्रशासन और समाज तीनों की आँख मूंदकर अपनी प्रतीक्षा कर रहे हैं। देखिए विश्व के कुछ चर्चित हत्याकाण्ड
चार्ली हेब्दो हत्याकाण्ड से दहला फ्रांस
फ्रांसीसी व्यंग्य अखबार चार्ली हेब्दो ने इस्लाम मत के पैगम्बर के चित्र वाले कार्टून प्रकाशित किए थे। शार्ली हेब्दो की इस हरकत को ईशनिन्दा करार दिया गया। इसका बदला लेने के लिए जनवरी 2015 में योजनाबद्ध रूप से इस्लामिक आतंकवादियों ने चार्ली हेब्दो कार्यालय और उसके आसपास के 12 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी।
इसके बाद भी आतंकी रुके नहीं और कुछ दिनों बाद एक पुलिसकर्मी और चार यहूदियों की हत्या कर दी गई। चार्ली हेब्दो ने हमले से न डरते हुए ऐसी सामग्री प्रकाशित करना जारी रखा जो इस्लाम सहित विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को ठेस पहुंचा सकती है। चार्ली हेब्दो ने 2020 में, उस कार्टून को फिर से प्रकाशित किया जिसके कारण यह आतंकवादी वारदात हुई।
शार्ली हेब्दो के सैमुएल पैटी की अल्लाहु अकबर कहते हुए गला काटकर हत्या की
सैमुएल पैटी इतिहास-भूगोल के एक प्रोफेसर थे। एक बार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर क्लास में चर्चा के दौरान उन्होंने अपने छात्रों को शार्ली एब्दो मैगज़ीन से इस्लाम के पैगंबर के कुछ कार्टून दिखाए। इस पर कुछ अभिभावकों ने शिक्षक के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी। उसके बाद 16 अक्तूबर 2020 को जो हुआ उसने फ़्रांस को दहशत से भर दिया। एक इस्लामिक आतंकवादी ने पेरिस में स्कूल के पास अल्लाह हु अकबर का नारा लगाते हुए शिक्षक का सिर कलम कर दिया। यह हमला पेरिस के कॉन्फ्लैन्स-सेंट-होनोरिन के उपनगर में हुआ था।
हत्याकाण्ड के बाद मृतक को श्रद्धांजलि देते हुए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस घटना को स्पष्ट रूप से ‘इस्लामी आतंकी हमला’ करार दिया। इस आतंकी हमले के बाद फ्रांसीसी सरकार से कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था और स्वयं राष्ट्रपति मैक्रों मृतक के अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे।
डेबोरा सैमुअल ने व्हाट्सएप पर धार्मिक मैसेज भेजने से किया मना, हो गयी हत्या
मई 2022 में नाइजीरिया में एक दहशत फैलाने वाली घटना हुई, एक ईसाई छात्रा, डेबोरा सैमुअल को उसके ही कॉलेज में, उसके ही साथियों ने ईशनिंदा के आरोप में बेरहमी से पीट-पीट कर मार डाला। यह घटना नाइजीरिया के मुस्लिम बहुल सोकोतो के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हुई।
डेबोरा एक कॉलेज छात्रा थी। जब उसके कॉलेज के व्हाट्सएप ग्रुप में किसी ने इस्लामिक पोस्ट साझा की तो डेबोरा ने ग्रुप में धार्मिक मैसेज भेजने पर आपत्ति जताई, इसके बाद उसके मित्र उससे गुस्सा हो गये और इसे ईशनिन्दा घोषित कर दिया। इसके बाद उन साथी मुस्लिम छात्रों भीड़ बनाकर डेबोरा पर क्रूर हमला किया, उसे बेरहमी से पीटा, कबीलाई समाज की तरह पत्थर मार मारकर मार डाला, और फिर उसके शरीर को जला दिया। इस कत्ल को अंजाम देते हुए एक वीडियो शूट किया गया जिसमें डेबोरा के क़ातिल माचिस की डिब्बी दिखातेहुए ‘अल्लाहु अकबर’ का नारा लगा रहे थे और कत्ल करके खुशी मना रहे थे।