पश्चिमी घाट पर 6 अप्रैल, 1980 की उमस भरी शाम में अटल बिहारी वाजपयी ने कुछ शब्द कहे थे जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का भविष्य बन गया। यह शब्द थे ‘अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा’। यही वो दिन था जब अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष चुने गए।
राजनीति के कई अहम पड़ावों से गुजरने के साथ साथ कुछ असफल राजनीतिक प्रयोगों ने भारतीय जनता पार्टी को जनसंघ से जनता पार्टी और आख़िरकार भारतीय जनता पार्टी के रूप में तराशा। इन पड़ावों में शुरू से ले कर भाजपा के बनने तक कुछ सूत्र ऐसे थे जिनके साथ कभी भी समझौता नहीं किया गया, यह सूत्र थे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं हिंदुत्व।
जनसंघ ने समय के साथ कोई भी शक्ल क्यों ना ली हो, जिस ‘एक देश एक निशान एक विधान’ का स्वप्न स्वर्गीय श्याम प्रसाद मुखर्जी ने देखा था, आज इस दल ने उसे हासिल कर लिया है। जिस राजनीतिक दल को कभी एक मत से सत्ता से बेदख़ल कर उसका मजाक बनाया जाता था, आज उसी भारतीय जनता पार्टी की सरकार इस वक्त 16 राज्यों में सत्ता में है, इनमें 4 ऐसे राज्य भी शामिल हैं जहां भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ स्थापित है। इसमें सबसे ख़ास बात यह है कि देश की आबादी की क़रीब 49% जनसंख्या इन्हीं प्रदेशों में बसती है। साल 2018 में एक ऐसा समय भी आया जब भाजपा 21 राज्यों में शासन कर रही थी। यानी उस समय देश की क़रीब 71% आबादी भाजपा के साथ थी।
राहुल गाँधी की संसदीय अयोग्यता में लोकतंत्र के लिए निहितार्थ
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद जब इस दल ने पहला चुनाव लड़ा था तब इंदिरा गांधी की सहानुभूति के बूते कांग्रेस प्रचंड बहुमत से सत्ता में लौटी थी। उसी समय राजीव गांधी ने ‘हम दो, हमारे दो’ जैसे संबोधनों से उस राजनीतिक दल का उपहास किया था, जिसकी नींव ही ‘कांग्रेस के विकल्प’ के रूप में रखी गई थी। राजीव गांधी का यह बयान अटल बिहारी वाजपयी एवं लाल कृष्ण आडवाणी पर किया गया कटाक्ष था।
आज जब कांग्रेस के तमाम युवा नेता इस डूबते जहाज़ को छोड़ अन्य राजनीतिक दलों का हिस्सा बन रहे हैं, जब इनके ग़ुलाम नबी आज़ाद जैसे नेता, जो आजीवन कांग्रेस की आस्था से जुड़े रहे, इसी कांग्रेस को दिशाहीन कह रहे हैं, उस समय यही भारतीय जनता पार्टी अपने एक एक कार्यकर्ता के साथ 2024 के अभियान की तैयारियों में जुटी है। कांग्रेस परिवार के सबसे करीबी रहने वाले तमाम दिग्गज आज उनसे दूर रहने में ही अपनी विश्वसनीयता बना पा रहे हैं। इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया से शुरू हो कर, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, अनिल एंटनी जैसे नाम शामिल हैं, जबकि सचिन पायलट और मनीष तिवारी जैसे कुछ नाम ऐसे भी हैं जिन्होंने कांग्रेस को अगर छोड़ा नहीं है तो वे इनके साथ भी नहीं दिखते।
राजनीतिक स्टंट के लिए शोर मचाते राहुल गांधी
कांग्रेस में रहते हुए इंदिरा से राजीव और सोनिया से ले कर राहुल गांधी तक की राजनीति को क़रीब से देखने वाले कांग्रेस के कप्तान अमरिंदर सिंह जैसे ‘ओल्ड गार्ड्स’ भी आज या तो इस दल को छोड़ चुके हैं या फिर इस से किनारे हो चुके हैं।
उधर किसी समय अहमदाबाद की सड़कों पर स्कूटर पर बैठ पार्टी के पोस्टर चिपकाने वाले लोग आज भारतीय जनता पार्टी का सबसे महत्वपूर्ण चेहरा होने के साथ-साथ आज देश की राजनीति के केंद्र में हैं। यह बताने के लिए काफ़ी है कि दोनों राजनीतिक दलों की राजनीतिक संस्कृति में क्या भिन्नता है।

भारतीय जनता पार्टी ने कश्मीर में अनुच्छेद के 370 का समाधान कर दिखाया है। समय के साथ भाजपा ने बिना किसी राजनीतिक दबाव या पॉलिटिकल करेक्ट की चिंता किए कठिन फ़ैसले लेने सीखे हैं। यही फ़ैसले भाजपा की नींव और अधिक मज़बूत कर रहे हैं।