हर वर्ष 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के तौर पर मनायी जाती है। वे ईसाई मिशनरियों की धर्मांतरण की साजिशों से लड़े। अंग्रेजों से लोहा लिया। इस्लामी आक्रांताओं को धूल चटायी। बिरसा मुंडा भारतीय इतिहास के ऐसे महानायकों में शामिल हैं जिन्होंने क्रांतिकारी चिंतन से 19वीं शताब्दी में झारखंड में आदिवासियों की दशा और दिशा बदलने का काम किया था। यही कारण है कि बिरसा मुंडा को बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भगवान की तरह पूजा जाता है।
15 नवंबर 1875 को झारखंड के एक आदिवासी परिवार में जन्मे बिरसा मुंडा को अपनी पढ़ाई के दौरान मुंडा समुदाय को लेकर कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ता था। जिसने उन्हें अंदर तक झकझोर कर आदिवासी समाज के लिए लड़ाई लड़ने को तैयार किया, धीरे-धीरे उन्हें ये समझ आने लगा था कि आदिवासी समाज अंधविश्वास के कारण भटक रहा है। यही वजह है कि ईसाई मिशनरी आदिवासियों को सनातन से दूर ले जाकर, उन्हें भ्रमित कर ईसाई बना रहे हैं। अपने स्कूल के दिनों में बिरसा मुंडा ने जल्द ही ईसाई मिशनरियों को चुनौती देना शुरू कर दिया और मुंडा और उरांव समुदायों के साथ धर्मांतरण गतिविधियों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। बिरसा मुंडा के शिक्षक ने उन्हें ईसाई धर्म अपनाने की सलाह दी थी ताकि वे जर्मन मिशन स्कूल में शामिल हो सकें, उन्होंने ‘बिरसैत’ नाम की एक नई आस्था की शुरुआत की। आदिवासी नेता ने अन्य आदिवासी समुदायों से संप्रदाय में शामिल होने का आग्रह किया। भगवान बिरसा मुंडा ने मुंडाओं से गांवों को साफ करने, शराब का सेवन बंद करने और अंधविश्वास, जादू टोने पर विश्वास करना बंद करने का आग्रह किया।
बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के नेतृत्व की कमान संभाली और आदिवासियों में चेतना जगाने का काम किया। आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने लोहे के चने चबाने के जैसा संघर्ष किया। ये कहना गलत नहीं होगा कि बिरसा मुंडा ही सही मायने में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी, पराक्रम, सामाजिक जागरण को लेकर एकलव्य के समान थे।
देश में आदिवासियों के योगदान का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब 19वीं शताब्दी के अंत में, बंगाल प्रेसीडेंसी में सक्रियता की लौ बुझ गई, तो एक आदिवासी नेता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध किया, जिसे इतिहास की किताबों में हमेशा याद किया जाता है और वो व्यक्ति थे भगवान बिरसा मुंडा जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता सेनानीयों में राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ाया। जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का योगदान सराहनीय है क्योंकि उन्होंने ही हमारे इतिहास के गौरव रहे इन महापुरुषों के त्याग और बलिदान से देश को अवगत कराया। लंबे समय से ऐसे महावीर हमारी किताबों, वाद-विवाद, चर्चा और संगोष्ठीयों से गायब थे, अब इनके योगदान को सराहा जा रहा है उन्हें याद किया जा रहा है जो गर्व का विषय है।