साल 1999 का सुपर साइक्लोन जिसने ओडिशा में 9,885 लोगों की जान ली। इसी तरह अक्टूबर, 2013 का फैलिन साइक्लोन में 50 लोगों की मौत हो गई। 2014 का हुदुहुद तूफान में 124 मौंतें और फानी साइक्लोन में 72 मौंतें। आज बिपरजॉय तूफान की बात करें तो अब तक मात्र 2 मौंतें।
यह आँकड़ें इस बात की ओर इशारा करते हैं कि देश में आपदा प्रबंधन को लेकर हमारी सरकार और हमारे सुरक्षा बल अधिक सजगता और घटना का सटीक पूर्वानुमान और पूर्व तैयारी के परिणास्वरूप धीरे-धीरे जान-माल के नुकसान को कम करने में सफल हुए हैं। इस बार के बिपरजॉय चक्रवाती तूफान में यही देखने को मिला।
आपदा से पहले की तैयारी
6 जून, 2023 को पहली पुख्ता जानकारी मिली थी कि अरब सागर में यह तूफान विकसित हो रहा है और धीरे-धीरे भीषण बनता जा रहा है। इसके तुरन्त बाद लोकल लेवल से लेकर नेशनल लेवल तक तमाम बैठकें हुई। NAC, कैबिनेट सेक्रेटरी, गुजरात के सीएम, गृहमंत्री अमित शाह से लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तमाम मीटिंग्स का रिव्यू ले रहे थे।
सोचिए, 120 से 150 प्रति किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार के बावजूद जान-माल का नुकसान बेहद कम हुआ है। हालाँकि, इन्फ्रस्ट्रक्चर का जो नुकसान हुआ है उसे ठीक करने के लिए NDRF और SDRF समेत सभी सिक्योरिटी फोर्सेज दिन-रात लगी हुई हैं।
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सवाल यह उठता है कि क्या आपदा का पूर्वानुमान ही काफी होता है। इसके लिए जिस लेवल की रिसर्च, डेवलपमेंट और फंड की आवश्यकता होती है, वह मात्र 10 दिन में तो तैयार नहीं हो सकता है। उसके लिए सालों की मेहनत लगती है।
देश ने कांवड़ा का तूफान देखा, कच्छ का भूकंप देखा और उसके बाद आपदा प्रबंधन को लेकर गुजरात ही नहीं बल्कि देश की जो दिशा बदली है वह अभूतपूर्व रही है।
सोचिए देश में इतने भीषण चक्रवाती तूफान आए, इतनी भीषण आपदाएं आई लेकिन कभी भी आपदा से उबरने की क्षमता और जान-माल का नुकसान कम करने के लिए कोई सार्वभौमिक प्लान नहीं बनाया गया जो पूरे देश भर में लागू किया जा सके। साल 2016 में इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना की शुरूआत की।
NDRF-SDRF की माँगें
NDRF और SDRF की लम्बे समय से माँग थी कि आपदा आने से पहले राहत-बचाव कार्य के लिए जो फंड की जरूरत होती है वो मिलना चाहिए ताकि वे पहले से तैयारी कर सकें। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फरवरी, 2021 में नेशनल डिजास्टर मिटिगेशन फंड का गठन किया और NDMF के अंतर्गत 13,693 करोड़ रुपए आवंटित किए गए जबकि स्टेट डिजास्टर मिटिगेशन फंड के अंतर्गत 32,031 करोड़ रुपए आवंटित किए गए।
आपदा प्रबंधन बलों को फंड: NDA/UPA
इसके अलावा, NDRF और SDRF को मिलने वाले फंड में पहले की सरकारों के मुकाबले और वर्तमान सरकार में 3 गुना अन्तर देखने को मिलता है। आँकड़ों को देखें तो UPA 1 और 2 के कार्यकाल में NDRF को साल 2005-06 से लेकर साल 2013-14 तक मात्र 25,000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए जबकि NDA 1 और 2 के कार्यकाल में साल 2014-15 से लेकर 2022-23 तक, 77,000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए।
इसी तरह SDRF की बात करें तो 2005-06 से लेकर 2013-14 तक 35,858 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे वहीं, 2014-15 से 2022-23 तक, 1,04,704 करोड़ रुपए आवंटित किए गए।
इसी तरह डेवलपमेंट पर ध्यान दें तो 9 वर्षों में 22 डॉप्लर वेदर रडार लगाए गए हैं। वहीं ऑटोमैटिक वेदर सिस्टम की संख्या 808 पहुंची है। देश में 200 एग्रो AWS सिस्टम लगाए गए हैं।
बिपरजॉय तूफान से जो कोर्डिनेशन, स्टेट और सेन्टर के साथ देखने को मिला है वह एक तरह से आपदा प्रबंधन से निपटने का आदर्श उदाहरण बन सकता है। वहीं, देश में एक समय ऐसी सरकार भी थी, जब आपदा के बाद राहत सामग्री ले जाने वाले ट्रक सड़कों के किनारे इसलिए खड़े थे क्योंकि उन्हें दिल्ली से हरी झंडी नहीं मिली थी।
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