अरब सागर के रास्ते भारत के पश्चिमी तट से टकराने वाले चक्रवात बिपरजॉय को लेकर लगातार सावधानियां बरती जा रही हैं। बिपरजॉय (Biparjoy) के गुजरात के तटीय इलाकों से 15 जून को टकराने का अनुमान है। इस चक्रवात को लेकर भारत समेत पाकिस्तान में भी लगातार चेतावनियाँ दी जा रही हैं।
इन सब तैयारियों और चेतावनियों के बीच बिपरजॉय के नाम को लेकर चर्चा चालू हो गई है। प्रश्न पूछे जा रहे हैं कि गुजरात से टकराने वाले चक्रवात का नाम बंगाली में क्यों रखा गया है। यह जिज्ञासा लोगों में इस चक्रवात की भौगौलिक स्थिति के संबंध में भी है। इसके अतिरिक्त, इससे पहले भारत के तटों पर आने वाले चक्रवातों के नामों को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है।
बिपरजॉय का नाम कहाँ से आया?
बिपरजॉय का नामकरण बांग्लादेश ने किया है। बंगाली में बिपरजॉय का मतलब विपत्ति या आफत होता है। इस चक्रवात के भारत के तट से टकराने के समय तक और खतरनाक होने की आशा है। ऐसे में इसकी प्रकृति के अनुसार ही इसे बिपरजॉय का नाम दिया गया है।
कैसे होता है नामकरण?
दक्षिण एशिया के देशों में आने वाले का नामकरण 21वीं शताब्दी के शुरू होने के बाद से नई व्यवस्था के आधार पर किया जाता है। इसमें देशों को उनके नाम के पहले अक्षर के आधार पर क्रमानुसार रखा जाता है। इन अक्षरों के समक्ष चक्रवातों को दिए जाने वाले नामों की एक सूची होती है। एक सूची के खत्म होने के बाद दूसरी सूची के नामों का उपयोग किया जाता है। बिपॉरजॉय अपनी सूची का पहला नाम है।
इन नामों को यह देश पहले से ही निर्धारित रखते हैं। हिन्द महासागर क्षेत्र में इस सूची को निर्धारित करने वाले 13 राष्ट्र हैं। इनमें दक्षिण एशियाई देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका और मालदीव हैं जबकि अरब देश यमन, सऊदी अरब, यूएई, ईरान, क़तर समेत ओमान भी इसमें शामिल हैं। इस सूची में थाईलैंड और म्यांमार भी शामिल हैं। इन देशों को को इनके नाम के पहले अक्षर के हिसाब से कर्म में रखा जाता है।
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भारत ने अपनी तरफ से इस सूची में तेज, मुरासु, आग, व्योम और नीर जैसे नाम दे रखे हैं। चक्रवातों के नाम तय करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व मौसम संगठन (WMO) ने भी कुछ नियम तय किए हुए हैं।
क्यों किया जाता है नामकरण?
WMO की वेबसाइट के अनुसार, चक्रवातों का नामकरण इनकी आसानी से पहचान करके तुरंत चेतावनी प्रसारित करने के लिए किया जाता रहा है। चक्रवातों को यदि तकनीकी शब्दों या नम्बरों में लिखा जाएगा तो सूए याद करने में दिक्कत होगी। ऐसे में सभी देश अपने यहाँ से सामान्य नाम इन चक्रवातों के लिए देते हैं।
अटलांटिक महासागर में आने वाले चक्रवातों का नामकरण 1953 से होता आया है, इसमें 1979 पुरुष नामों को जोड़ा गया था। इससे पहले इसमें मात्र स्त्री नाम ही होते थे। यह भी धारणा है कि महिला नाम वाले चक्रवात ज्यादा तबाही मचाते हैं।
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