राजनीति के चाणक्य बनने चले नीतीश कुमार राजनीति के ही भंवर में फंस गए हैं। परिस्थिति कुछ ऐसी है कि जिस गठबंधन के साथ हैं, उसमें उचित स्थान नहीं रहा और उसे छोड़ दें तो रण में अकेले खड़े होने की बिसात नहीं बची है। I.N.D.I अलायंस बनाने के लिए जिस आशा के साथ नीतीश कुमार ने शुरूआत की थी वो, अब बची नहीं है। अपने दबदबे को बनाए रखने के लिए नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू ऐसे निर्णय लेने में लगी है जो उन्हें प्रासंगिक बनाए रखे।
अब जदयू ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले अपनी नई राष्ट्रीय टीम का ऐलान कर दिया है और इसमें हरिवंश नारायण सिंह का नाम शामिल नहीं है। गठबंधन का हिस्सा बनने और जदयू की कार्यप्रणाली को देखते हुए यह बात तय लग भी रही थी कि हरिवंश को कार्यकारिणी में पद न मिले पर इससे नीतीश कुमार को भी कुछ अधिक फायदा मिलने वाला नहीं है।
नीतीश कुमार के साथ समस्या यह है कि वो गठबंधन में महत्वपूर्ण पद चाहते थे। इसीलिए विपक्षी दलों में एका लाने की शुरूआत भी उन्होंने की। अब जब गठबंधन बन के सामने है तो कांग्रेस इसमें नेतृत्वकर्ता के रूप में सामने आ गई है। जिस तरह राहुल गांधी का री-लॉन्चिंग कार्यक्रम चल रहा है, नीतीश को अपने पाँव के नीचे से ज़मीन खिसकती नजर आ रही है। या यह समझिए कि खिसक ही चुकी है।
जमानत पर जेल से छूटे लालू प्रसाद यादव गठबंधन में महत्वूर्ण भूमिका में है और हाल ही में विपक्षी गठबंधन में कई कन्वेनर होने की बात करके उन्होंने नीतीश कुमार के राष्ट्रीय भूमिका में आने की लालसा पर तेज़ाब फेंक दिया है। कांग्रेस को गठबंधन की एकता के लिए नीतीश कुमार से अधिक लालू प्रसाद यादव पर भरोसा है, नीतीश इसको समझते हैं। यही कारण है कि एनडीए और जदयू के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी रहे हरिवंश को कार्यकारिणी का हिस्सा नहीं बनाया गया है।
लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के प्रबल समर्थक हैं और राज्य में अपने सुपुत्र को गद्दी देने के लिए नीतीश को दरकिनार करने के लिए तैयार हैं। यह भी ध्यान रहे कि नीतीश के पास लालू का विरोध करने के लिए कोई तर्क नहीं बचा है। भ्रष्टाचार के आरोपों की बात कर आरजेडी से दूरी बनाने वाले नीतीश आज उन्हीं के साथ गठबंधन सरकार में है। इसलिए जांच की कार्रवाई पर केंद्र सरकार पर भार डाल कर कहना पड़ रहा है कि भ्रष्टाचार की जांच से केंद्र सबको परेशान कर रही है।
बात बिहार की राजनीति की हो या राष्ट्रीय राजनीति की, नीतिश कुमार ने अपने आपको राजनीतिक समीकरणों में उलझा लिया है। गठबंधन में उनकी पहुँच उनके मुख्यमंत्री पद पर बने रहने तक ही है। जमानत पर बाहर लालू प्रसाद यादव तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे करने में जुट गए हैं। कांग्रेस किसी परिस्थिति में उन्हें राहुल गांधी के आगे नहीं आने देगी।
जदयू के बीजेपी के साथ पूर्व संबंधों के कारण गठबंधन में मिल रही उपेक्षा ने नीतीश कुमार के लिए चुनावी वर्ष को और मुश्किल बना दिया है। राष्ट्रीय भूमिका की बात से पहले नीतीश कुमार को अपनी स्थानीय पहुँच को मजबूत करने की चिंता सताने लगी है।
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