देश में हिंदी-पट्टी क्षेत्रों/राज्यों में सरकारी नौकरियों का एक अलग भी जुनून है और विशेषकर यूपी-बिहार-झारखण्ड जैसे राज्यों में यह किसी सोशल स्टिग्मा से कम नहीं है। सरकारी नौकरी का मुद्दा जितना आवश्यक है उतना ही ज्वलनशील भी। ऐसे में सरकारी भर्तियों में फैली अनियमितताएं भी आम बात हो गई हैं।
यदि देखा जाए तो, जब तक इन राज्यों में सरकारें रोज़गार के वैकल्पिक उपाय नहीं कर लेतीं, इन्हें बेरोज़गारी के लड़ने के लिए निरंतर सरकारी नियोजन का ही सहारा लेना पड़ेगा। ऐसे में सरकारी नियोजन के कार्यों में अनियमितता कतई बर्दाश्त नहीं की जा सकती है।
लगभग 10 दिनों से बीएसएससी संयुक्त स्नातक स्तर परीक्षा में हुए पेपर लीक मामले में अभ्यर्थी परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे थे। सरकार और आयोग द्वारा कोई ठोस कार्रवाई और आश्वासन न मिलने पर बुधवार 4 जनवरी, 2023 को पटना में समूचे बिहार से आए छात्र-छात्राओं ने विरोध प्रदर्शन किया। इस कड़कड़ाती ठण्ड में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस प्रसाशन द्वारा निर्ममता से लाठीचार्ज किया गया जिसमें दर्जनों अभ्यर्थी घायल हो गए। लाठीचार्ज और रोते-बिलखते छात्रों के वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है।
यह पहली घटना नहीं है जब बिहार के छात्रों को सरकार के कुव्यवस्था का शिकार होना पड़ा हो। प्रत्येक बार छात्रों के वास्तविक मांग पर भी सरकार द्वारा अनदेखी की जाती है और प्रत्युत्तर में जब छात्र इसके विरोध में उतरे तो उनपर लाठीचार्ज की जाती है।
इससे पहले अगस्त, 2021 में पुनः महागठबंधन में लौटे नीतीश कुमार की सरकार बनते ही वर्षों से लंबित शिक्षक नियुक्ति की मांग कर रहे छात्रों को बेरहमी से सड़कों पर पीटा गया। लाठीचार्ज के दौरान वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा तिरंगे का भी अपमान किया गया था। जिस पर देश भर में नीतीश कुमार की अगुवाई वाले महागठबंधन सरकार की किरकिरी हुई थी।
यह स्थिति सिर्फ बिहार तक ही नहीं सीमित है। पंजाब, राजस्थान, बिहार, बंगाल, झारखण्ड हर तरफ युवाओं को खोखले चुनावी वादों में सरकारी नियोजन के नाम पर ठगने का काम किया जाता रहा है। क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा सत्ता में आने की लिए लाखों की संख्या में सरकारी नियोजन की घोषणाएं की जाती है बिना सोच-विचार कि क्या यह व्यावहारिक रूप से संभव है? रोजगार के लिए हताश-निराश और त्रस्त छात्रों को इन लुभावने चुनावी वादों को सच मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है और जब सरकार से अपने किये वादों पर सवाल किये जाते हैं तो छात्रों पर लाठीचार्ज और हाथापाई की जाती है।
पेपरलीक: सरकारी तंत्र की विफलता
भारत में स्थिति यह है कि राजनीतिक दलों (क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों ही) का सरकारी नियोजन के चुनावी घोषणाओं से सरोकार सिर्फ सत्ता में आने तक का होता है। इसके बाद भी यदि कोई दल इसको लेकर गंभीर रही या दबाव में आकर परीक्षाओं का आयोजन किया भी तो इनमें अनियमितता और पेपर लीक जैसी घटनाएं सामने आ जाती हैं।
ऐसे में हज़ारों-लाखों रुपये खर्चने के बाद भी बार-बार परीक्षा के दौरान पेपर लीक जैसी घटनाओं से छात्रों पर मानसिक और आर्थिक दबाव पड़ता है। सरकार के पास तमाम संसाधन की उपलब्धता के बावजूद यदि ऐसी घटनाएं हो रही हैं तो निश्चित तौर पर यह सरकार की विफलता है अथवा मिली-भगत! छात्रों से करोड़ रुपये परीक्षा शुल्क के नाम पर वसूलने के बावजूद भी यदि सरकार और उसके तंत्र निष्पक्ष और बिना धांधली के परीक्षाएँ और नियुक्तियों को पूरा नहीं कर पति है तो इसकी जवाबदेही किसकी है?
लाठीचार्ज: छात्रों पर होती दमनकारी कार्रवाई
भारत में पुलिस प्रशासन और उसके कार्य-प्रणाली पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं। रोज़ाना बढ़ते आपराधिक घटनाओं पर इनका कोई नियंत्रण नहीं होता। पंजाब में पुलिस की मौजूदगी में हत्या हो जाती है।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के पुलिस निरीक्षक द्वारा बन्दूक चलाने की क्रिया-विधि पर उनकी जानकारी हम सबने देखी। अपने साथ-साथ सरकार द्वारा दिए गए प्रशिक्षण पर भी सवाल खड़े करवा दिए। बिहार में श्रद्धांजलि देते हुए पुलिस की बन्दूक धोखा दे देती है। पथरबाज़ी, आगजनी, दंगों को नियंत्रित करने में पुलिस बिलकुल ही निष्प्रभावी है। ऐसे न जाने और कितने ही सिविल डिसऑर्डर की घटनाओं पर पुलिस असहाय दिखती है, लेकिन यदि बात जब आये शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों पर, तब पुलिस खुलकर रौद्र रूप में देखी जाती है। वहीं लाठीचार्ज में इनका कोई सानी नहीं है। बावजूद कि पुलिस सरकार के आदेशों को लेकर कर्तव्यबद्ध है लेकिन इन्हें अपने प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है।