पटना में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन में पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किए जाने से प्रदेश भाजपा के जहानाबाद जिला के महामंत्री विजय कुमार सिंह की मौत हो गई। खबर के अनुसार पुलिस ने विजय कुमार के सिर पर लाठी से वार किया था। लाठी खाने के बाद वे सड़क पर गिर गए। खबर के अनुसार गिरने के बाद भी पुलिस उनपर लाठियां बरसाती रही। गंभीर रूप से घायल अवस्था में उन्हें तारा नर्सिंग होम भेजा गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
भाजपा विधानसभा तक मार्च निकाल रही थी। यह मार्च अभ्यर्थियों के समर्थन में एवं तेजस्वी यादव के खिलाफ चार्जशीट फाइल के बाद उनका इस्तीफा मांगने के संबंध में था। लेकिन इस मांग की कीमत एक भाजपा नेता को अपनी जान से चुकानी पड़ी। वहीं इस दौरान भाजपा सांसद भी घायल हो गए हैं। वह सांसद जिनको Y श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है।
पश्चिम बंगाल हिंसा मॉडल अपना रहे नीतीश?
प्रश्न यह उठता है कि क्या पुलिस विभाग ने स्वविवेक से यह कार्रवाई की है? या फिर इसके लिए नीतीश सरकार ने निर्देश जारी किए हैं? जाहिर है राज्य का प्रशासन राज्य सरकार की नीतियों के अनुसार कार्य करता है। तो फिर नीतीश कुमार ने यह कौन सी नई रणनीति अपनाई है? ऐसी रणनीति जिसमें हर विरोध को दमन से कुचला जाएगा या हिंसा से चुप कराया जाएगा।
देखकर लगता है जैसे यह मॉडल नीतीश कुमार सरकार ने पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से उधार लिया है, जहाँ हिंसा की संस्कृति स्थापित हो चुकी है। अभी तक पश्चिम बंगाल का नाम सुनते ही राजनीतिक और प्रशासनिक हिंसा की तस्वीर उबर कर आ जाती थी परन्तु अब बिहार में भी यही हो रहा है। या देखा जाए तो दरअसल यह होता आ रहा है लेकिन लोगों को अब नज़र आ रहा है।
लाठीचार्ज में बिहार आगे
पिछले 1 वर्ष में बिहार सरकार ने लाठीचार्ज के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। ऐसा लग रहा है मानो हर समस्या का समाधान बिहार सरकार के पास लाठीचार्ज है। कभी किसानों पर लाठीचार्ज किया जाता है तो कभी धीरेन्द्र शास्त्री से मिलने वाले श्रद्धालुओं पर। परीक्षार्थियों एवं पास हो चुके कैंडिडेट्स पर लाठीचार्ज की तो संख्या ही नहीं।
पिछले वर्ष अगस्त में पहले बीपीएससी अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज किया जाता है। फिर सीटीईटी में नियुक्ति के लिए इंतजार कर रहे अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज होता है। एक तस्वीर ऐसी आई थी जहाँ ADM ही स्वयं लाठीचार्ज का मोर्चा संभाल रहे थे और एक युवा अभ्यर्थी के सर पर लाठी से वार कर रहे थे।
इस वर्ष जनवरी में पेपर लीक के विरोध में प्रदर्शन कर रहे परीक्षार्थियों पर भयानक लाठीचार्ज किया गया। पूरे बिहार में बवाल हुआ। जब नीतीश कुमार से सवाल पूछा तो वह कहते हैं कि कौन पिटा, किसने पीटा उन्हें जानकारी नहीं। इसके अगले महीने बीटीएससी अभ्यर्थी अपने 4 साल से पेंडिंग रिजल्ट की मांग कर रहे थे, उन पर भी लाठीचार्ज किया गया।
प्रश्न यह है कि क्या नीतीश कुमार ने प्रशासनिक हिंसा को अपनी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बना दिया है? वे क्या इसमें ही अपनी जीत का मन्त्र ढूंढ रहे हैं? क्योंकि पश्चिम बंगाल में भी तो ऐसा ही होता है। हिंसा चाहे कितनी भी हो, जीत ममता बनर्जी की होती है।
नीतीश-ममता हैं राजनीति के पुराने साथी
नीतीश और ममता का एक ही सियासी पिच पर बैटिंग करना यह कोई पहली बार का वाकया नहीं है। ममता और नीतीश की राजनीति एक जैसी ही है। पहले दोनों वाजपेयी सरकार में मंत्री थे। दरअसल राजनीति में दोनों की राजनीतिक साख और पहचान वाजपेयी सरकार में मंत्री रहते हुए ही बनी थी। एनडीए से निकलने के बाद दोनों नरेंद्र मोदी के विरोधी बन गए और उनके खिलाफ राजनीति आगे की। दोनों ने प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पेश की और इसके चलते ही नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से उन पर निजी टिप्पणियां भी करते रहे हैं। आज भी दोनों राजनीति के एक ही ध्रुव के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं।
अपने-अपने राज्य में दोनों मुख्यमंत्री के नज़दीकी लोग भ्रष्टाचार के बड़े आरोपों में घिरे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों पर दोनों ख़ुद को ईमानदार घोषित कर लेते हैं और आराम से कह देते हैं कि इनके सरकार के भ्रष्टाचार के बारे में इन्हें कुछ नहीं पता। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के करीबी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए तो बिहार में नीतीश कुमार के डेप्युटी। सवाल करने वाले को ममता बनर्जी कैसे जवाब देती हैं यह आपने हाल में हुए पंचायत चुनाव की हिंसा में देखा ही। अब नीतीश कुमार ने भी जवाब ढूंढ लिया है। आज बिहार में भाजपा के एक नेता की मृत्यु मात्र एक शुरुआत दिखती है। आने वाले समय में इस सिलसिले को नीतीश कुमार किस हद तक ले जाएंगे यह देखना बाकी है।
दोनों के राज्य में क़ानून व्यवस्था की हालत पूरे देश के सामने है। बिहार में जंगल राज एक बार फिर से पाँव पसार रहा है और पश्चिम बंगाल में क़ानून व्यवस्था की स्थिति पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम के आने से लेकर अब पंचायत चुनाव तक सबके सामने है। दोनों राजनीतिक विरोध को कुचलने में ही राजनीति का आधार बना बैठे हैं। दोनों इस समय विपक्षी एकता की केवल धुरी बनने की नहीं बल्कि प्रधानमंत्री पद की दावेदारी भी करते रहे हैं।
प्रश्न यह है कि दोनों अपनी इन दावेदारियों को अगली सीढ़ी पर ले जाने से पहले अपने अपने राज्य के लोगों को भी कोई जवाब देंगे?
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