हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिकी शहर लॉस एंजिलिस (Los Angeles) के पूर्व मेयर एरिक गार्सेट्टी (Eric Garcetti) को भारत के लिए राजदूत के रूप में फिर से नामित किया है, परन्तु अमेरिकी संसद (कॉन्ग्रेस) की मंजूरी न मिलने के कारण उनकी नियुक्ति लटकी हुई है। अमेरिका के विदेश विभाग ने यह जानकारी सामने रखी है।
भारत और अमेरिका के समबन्धों में पिछले कई वर्षों से प्रगाढ़ता दिखाई दे रही है। विशेष कर जबसे भारत में प्रधानमन्त्री मोदी सत्ता में आए हैं, तभी से इनमें खासा बदलाव आया है। इसके बीच एक हैरान करने वाली बात यह है कि पिछले दो वर्षों से भारत में अमेरिका का राजदूत नहीं है। इससे पहले जनवरी 2020 तक केनेथ जस्टर भारत में अमेरिका के राजदूत थे।
ध्यान देने वाली बात है कि भारत नाटो (NATO) देशों के बाहर अमेरिका का अहम सहयोगी है और दोनों देश एक दूसरे से काफी पुराने कूटनीतिक सम्बन्ध रखते आए हैं। अमेरिका लगातार भारत की आजादी के साथ ही अपने राजदूत भेजता आया है। ऐसे में भारत में अमेरिका का राजदूत ना होना एक हैरान करने वाली बात है।
क्या है अमेरिका में राजदूत बनाने की प्रक्रिया?
दुनिया के अधिकाँश देशों में अमेरिका की राजनयिक उपस्थिति है। एक आँकड़े के अनुसार अमेरिका वर्तमान में 166 देशों में अपनी राजनयिक उपस्थिति रखता है। जहाँ एक ओर भारत में राजदूतों की नियुक्ति भारतीय विशेष सेवा के अधिकारियों में से होती है, वहीं अमेरिका में इस सम्बन्ध में प्रक्रिया कुछ भिन्न है।
अमेरिका में राजदूत को नियुक्त करने की शक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति के पास है। हालांकि इसमें कई पेंच हैं। राष्ट्रपति, अपने किसी विश्वसनीय या विदेश सेवा के किसी अधिकारी को राजदूत नियुक्त करते हैं। इन नियुक्तियों में कई व्यक्ति विदेश सेवा से इतर राजनीतिक प्रभाव वाले भी हो सकते हैं। भारत के लिए नामित किए जाने वाले मेयर गार्सेट्टी भी एक नेता हैं।
राष्ट्रपति द्वारा नामित होने के पश्चात इसे अमेरिकी संसद (कॉन्ग्रेस) के द्वारा भी मंजूरी मिलनी चाहिए। कॉन्ग्रेस के दो सदन होते हैं। हाउस ऑफ रिप्रेज़ेन्टिवस (निचला सदन) और सीनेट, अर्थात उच्च सदन। इन दोनों सदनों की मंजूरी मिलने के बाद किसी भी व्यक्ति की राजदूत के रूप में नियुक्ति होती है।
कॉन्ग्रेस की ही सहमति नहीं मिलने के कारण भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका के करीबी सहयोगी सऊदी अरब में भी लगभग 1 साल से अमेरिका का कोई राजदूत नहीं है।
कौन हैं एरिक गार्सेट्टी?
भारत के लिए राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा भारत के राजदूत के रूप में नामित किए जाने वाले एरिक गार्सेट्टी पेशे से एक राजनेता हैं। वे वर्ष 2013 से वर्ष 2022 तक अमेरिका के प्रमुख शहर लॉस एंजेल्स के मेयर रहे हैं। वह राष्ट्रपति बाइडेन के राजनीतिक दल डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य हैं। वे राष्ट्रपति बाइडेन के करीबी हैं।
राजनीति में आने से पहले गार्सेट्टी एक शिक्षक भी रह चुके हैं। वह कूटनीति पढ़ाते थे। बाइडेन प्रशासन लगातार कहता आया है कि वह उन्हें भारत के लिए एक उपयुक्त प्रतिनिधि मानता है और ऐसे में वह प्रयास करेगा कि उनके नाम की मंजूरी मिल जाए।
क्यों आ रही है एरिक गार्सेट्टी की नियुक्ति में समस्या?
राष्ट्रपति बाइडेन ने इससे पूर्व जुलाई 2021 में एरिक गार्सेट्टी को भारत के राजदूत के रूप में नामित किया था। उनके नाम की मंजूरी कॉन्ग्रेस से मांगी गई थी, परन्तु कॉन्ग्रेस के उच्च सदन सीनेट के सदस्य चक ग्रेस्ले ने उनके एक सहकर्मी द्वारा यौन शोषण का आरोप लगते हुए उनके नाम पर रोक लगा दी थी।
ग्रेस्ले का कहना था कि गार्सेट्टी यह जानते थे फिर भी उन्होंने उस विषय में कोई कदम नहीं उठाए। ग्रेस्ले ने यह भी आरोप लगाए कि गार्सेट्टी का सहकर्मी नस्लीय टिप्पणियां करने में भी शामिल था।
क्या है अमेरिका का पक्ष?
अमेरिकी विदेश विभाग लगातार गार्सेट्टी की नियुक्ति का प्रयास कर रहा है। व्हाईट हाउस की प्रवक्ता जीन पियरे ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन का पक्ष रखते हुए बताया कि वह पहले ही कह चुके हैं कि भारत, अमेरिका के लिए अहम् सहयोगी और एरिक को नामित करना एक महत्वपूर्ण कदम है।
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पियरे ने यह भी कहा कि हम एरिक के नाम पर कॉन्ग्रेस की सहमति लेने के लगातार प्रयास कर रहे हैं। उनके नाम पर आवश्यक समिति के साथ एकमत से सहमति बनी थी। हम यह आशा करते हैं कि सीनेट के सदस्य उनके नाम पर सहमति जता देंगें।
राजदूत ना होने से पड़ता है प्रभाव
पिछले कुछ समय से भारत और अमेरिका कई मंचों पर साथ आए हैं। ऐसे में दोनों के बीच राजनयिक गतिविधियां भी बढ़ीं हैं। भारत और अमेरिका, क्वाड (चार देशों का समूह), G-20 एवं अन्य कई समूहों में साथ ही हैं। ऐसे में दिल्ली में अमेरिका का राजदूत ना होने से दोनों देशों के बीच संवाद की समस्याएं आती हैं।
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भारत इस साल G20 की मेजबानी भी कर रहा है, ऐसे में राजनयिक गतिविधियां और भी बढ़ीं हैं। अमेरिका का प्रतिनिधित्व दिल्ली में ना होने के कारण इस कार्यक्रम में जहाँ पर अमेरिका के सहयोग की आवश्यकता है, वहां संचार की एवं कूटनीतिक स्तर पर भी बाधा आती हैं।
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान में भी अमेरिका के स्थायी राजदूत की नियुक्ति है। ऐसे में भारत में नियुक्ति ना होने पर बाइडेन प्रशासन कई बार कूटनीतिक विशेषज्ञों के सवालों के घेरे में आ चुका है। वह यह सवाल उठाते रहे हैं कि क्या बाइडेन प्रशासन भारत के प्रति गंभीर नहीं है?