भारत में आज भी आर्थिकी को समझने के लिए अक्सर विदेशी लेखकों की किताबों, उनके विचारों को उद्धृत किया जाता है। भारतीय दर्शन में भी अर्थ को समझा जा सकता है या यूं कहें कि आर्थिकी का भारतीय दर्शन के सम्बन्ध में कम ही सुनने, देखने और पढ़ने को मिलता है।
इस खाई को पाटने का काम डॉ प्रहलाद सबनानी की नई ई-पुस्तक ‘भारतीय आर्थिक दर्शन एवं पश्चिमी आर्थिक दर्शन में भिन्नता: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय आर्थिक दर्शन की बढ़ती महत्ता’ कर रही है।
डॉ प्रहलाद सबनानी कई वर्षों तक बैंकिंग सेक्टर से जुड़े रहे हैं। डॉ सबनानी की समकालीन आर्थिक समस्याओं और भारतीय आर्थिक दर्शन को लेकर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल पर सरल शब्दों में लगातार लिखते रहते हैं।
11 विस्तृत अध्यायों वाली डॉ सबनानी की यह पुस्तक इन्हीं लेखों का एक संकलन है जिसमें समकालीन समस्याओं का भारतीय दर्शन और पद्धति से किस तरह निपटारा किया जा सकता है, के बारें विस्तृत रूप में बताया गया है।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि अर्थ की आवश्कता और भारतीय आर्थिक दर्शन से शुरू होकर विभिन्न आर्थिक मॉडल्स की समीक्षा कर वर्तमान अमृतकाल तक की यात्रा का सरल और क्रमिक प्रस्तुतिकरण है।
आम पाठकों को ध्यान में रखते हुए पुस्तक के विभिन्न पड़ावों पर प्रसिद्ध विद्वानों,अर्थशास्त्रियों के उद्धरण, लोकप्रिय दोहे, छोटी छोटी प्रासंगिक कहानियाँ पुस्तक को मनोरंजक बनाती हैं।
यह लेखक की योग्यता ही है कि विस्तृत अनुभव, गहन अध्ययन एवं विषय की गहरी समझ के कारण एक कठिन विषय को इतने सरल, सुलभ और रोचक रूप से सामने रखा है।
हिन्दी भाषा में लिखित इस ई-पुस्तक की कीमत 499 रुपए है। इस पुस्तक की हार्ड कॉपी भी जल्द बाजार में उपलब्ध होगी लेकिन फिलहाल इसे किंडल ऐप पर ई-बुक के रूप में खरीदा जा सकता है।
यह पुस्तक यकीनन एक शोध ग्रंथ के रूप में, अमूल्य जानकारी एवं सांख्यिकी से परिपूर्ण हर वर्ग के पाठकों के लिए एक संग्रहणीय दस्तावेज सिद्ध होगा।
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