विचारधारा का सम्मान करना और उसके निर्देशों पर चलना आसान नहीं है। राजनीति में तो यह और अधिक कठिन हो जाता है। चुनावी रणनीतियों में जनसमर्थन के लिए कई बार राजनीतिक दल विचारधारा से समझौता करते हुए दिखाई देते हैं। स्वतंत्रता के बाद अबतक के चुनावी काल पर नजर डालें तो देश के राजनीतिक दलों ने समय-समय पर अपना वैचारिक दर्शन त्याग कर चुनावी लाभ को अपनाया है।
इन सबके बीच भारतीय जनता पार्टी ऐसा राजनीतिक संगठन लेकर सामने आई जिसने अपनी विरासत और विचारधारा को कभी नहीं छोड़ा। श्यामा प्रसाद मुखर्जी की बात करें या पंडित दीनदयाल उपाध्याय की, अटल बिहारी वाजपेयी की बात करें या नरेंद्र मोदी की, भाजपा की कार्यशैली और सरकार की योजनाएं पार्टी की मूल विचारधारा और अंत्योदय के दर्शन का ही प्रतिनिधित्व करती हैं।
आज भाजपा अपना 44वां स्थापना दिवस मना रही है। 6 अप्रैल, 1980 में गठित हुई पार्टी ने अंत्योदय की विचारधारा के साथ काम शुरू किया था। इन 44 वर्षों के काल में पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव देखे, बड़ी-बड़ी राजनीतिक हार का सामना भी किया पर अपनी उत्कृष्ट नीतियों और जूझने के दम पर ही आज यह दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। बीजेपी के अस्तित्व में आने के बाद हुए आम चुनाव में पार्टी को मात्र 2 सीटें मिलने की बात अक्सर की जाती है पर उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पार्टी ने सत्ता पाने के लिए ऐसे राजनीतिक समझौते नहीं किए जो देश या समाज के विरुद्ध हो। दशकों के संघर्ष के कारण ही पार्टी ने विपक्ष में रहना सीखा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए पार्टी और उसके नेताओं के मन में हमेशा सम्मान रहा।
2 सीटों से चलकर 300 सीटों का सफर भाजपा के लिए आसान नहीं रहा। 1980 में कॉन्ग्रेस जैसी विशाल अस्तित्व वाली पार्टी के सामने भाजपा ने जमीनी स्तर पर लोगों के मुद्दों को उठाकर काम करना शुरू किया था। 1980 और 2014 के चुनाव परिणामों तक बीजेपी की कार्यशैली और निर्णयों में कई बदलाव सामने आए पर विचारधारा का मूलतत्व नए बदलावों में आज भी विद्यमान है। वर्ष 2014 में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद विशेषज्ञों का कहना है कि बीजेपी ने चुनावी राजनीति के डीएनए में परिवर्तन ला दिया है। आज अन्य विपक्षी दल भाजपा का सामना करने के लिए विषयों का चयन नहीं कर पा रहे हैं तो इसलिए क्योंकि बीजेपी ने सबका साथ-सबका विकास के तहत जिस तरह योजनाओं का क्रियान्वयन किया है उसका जवाब विपक्षी दलों के पास नहीं रहा है।
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1980 के दशक में भी हार का सामने करने के बाद बीजेपी संगठन ने बोफोर्स घोटाले, भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान, अयोध्या एवं राम रथ यात्रा के जरिए अपने लिए एक अलग मतदाता वर्ग का निर्माण किया। दरअसल स्वतंत्रता के बाद बीजेपी ऐसी पार्टी बनकर उभरी जो जनमानस को विचारधारा और विकल्प की स्वतंत्रता उपलब्ध करवा रही थी। हालांकि इस काल तक भाजपा के निर्णय सॉफ्ट छवि की तरफ झुके हुए रहे।
वर्ष 2014 के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी देश का सबसे बड़ा दल बनकर उभरी और अपनी नई नीतियों से सभी का ध्यान आकर्षित किया। पार्टी ने जनता के बीच न सिर्फ अपनी छवि मजबूत की बल्कि ऐसे निर्णय लिए जिसने पार्टी ही नहीं देश के कद को बढ़ाने का काम किया। इस नई भाजपा की छवि ने विरोधियों को संशय में डाल दिया है। विरोधी दल पहले बीजेपी को हिंदूत्ववादी छवि के लिए लक्ष्य बनाते रहे हैं पर भाजपा ने स्वीकार किया कि देश में मुस्लिम, दलित और समाजवादी दल भी मौजूद हैं और हिंदूत्व को मानना संविधान के विरुद्ध नहीं है और न ही यह किसी औऱ धर्म के विरद्ध कार्य के लिए प्रेरित करता है। भाजपा की यह बेबाक छवि मात्र हिंदूत्व के लिए ही नई बल्कि सरकार के निर्णयों में भी परिलक्षित होती दिखाई दी है।
2014 के लोकसभा चुनावों से ही बीजेपी देश की नब्ज टटोलने में सफल रही। दल ने चुनाव प्रचार में सबसे अधिक युवाओं का ध्यान आकर्षित किया। अपनी डिजिटल कैंपेनिंग और जबरदस्त सोशल मीडिया पर उपस्थिति के जरिए पार्टी करोड़ों युवाओं को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही। अनुभवी राजनीतिज्ञों के साथ युवाओं के विजन को मिलाकर जो स्वप्न बीजेपी ने देश को दिखाया, जनता ने उसे स्वीकार करते हुए अपना जनादेश दिया।
भाजपा के घोषणा पत्र में हमेशा से ही आर्टिकल 370, राम मंदिर जैसे संवेदनशील मुद्दे शामिल होते रहते थे। 2014 के चुनाव पूर्व विपक्षी पार्टियां हो या बुद्धिजीवी वर्ग इनका मखौल बनाने से नहीं चूकते थे। जाहिर है पूर्ववर्ती सरकारें ऐसे निर्णयों से बचती रही है जिससे वोट बैंक को नुकसान पहुँचे। इसलिए यह मानना स्वभाविक था कि भाजपा सिर्फ चुनाव जीतने के लिए इन मुद्दों का उपयोग कर रही है। इसके विपरीत पार्टी ने सरकार बनाने के साथ ही अपने घोषणा पत्र पर काम किया और राम मंदिर, तीन तलाक एवं आर्टिकल 370 के उन्मूलन जैसे बड़े निर्णय लेकर दर्शाया कि भाजपा मात्र चुनावी रोटियां सेंकने के लिए सत्ता में नहीं आई है। भाजपा के कठिन और लचीले निर्णयों के मिश्रण ने उसे सत्ता, सरकार और राजनीति के बीच संतुलन बनाने में मदद की है।
दल ने अपने बेबाक निर्णयों के साथ ही अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान को भी बढ़ाने की दिशा में काम किया। विदेश में रह रहे भारतीय मूल के लोगों के बीच नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने बीजेपी के विस्तार को फायदा पहुँचाया है। पार्टी के अंदर मजबूत लोकतंत्र ने यह सुनिश्चित किया है कि दल के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को स्वतंत्र विचारों का प्रतिनिधित्व मिले। इसी का परिणाम है कि नरेंद्र मोदी जैसे करिश्माई नेतृत्व के साथ भी पार्टी में अपनी अलग पहचान रखने वाले नेता मौजूद हैं।
भारतीय जनता पार्टी की आज देश के 17 राज्यों में सरकार है। हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित रही पार्टी आज कश्मीर से लेकर दक्षिण भारत एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों में अपना विस्तार कर पाई है तो यह संगठनात्मक प्रयासों एवं जमीनी कार्यों का परिणाम है। पार्टी ने अपनी सत्ता को राजनीतिक दंभ का रूप नहीं लेने दिया है। पंचायती चुनावों से लेकर आम चुनावों तक पार्टी के शीर्ष नेता जमीनी स्तर पर कार्य करते दिखाई देते हैं। बीजेपी संगठन ने नेतृत्व को सुदृढ़ बनाकर कार्यकर्ता को पृष्ठभूमि में रखा है।
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44वें स्थापना समारोह में पीएम मोदी ने आह्वान किया कि 2024 में प्रबल जीत की संभावनाओं के बाद भी कार्यकर्ताओं को उसी जुझारूपन से लड़ना है जिससे वो 1980 से लड़ते आ रहे हैं। सत्ता को सिर पर न चढ़ने देने का यह निर्देश उन्हें जमीन से जुड़ा हुआ दर्शा रहा है।
अपने यात्रा की शुरूआत से भारतीय जनता पार्टी में कई बदलाव सामने आए हैं। यह स्वीकार करना होगा की कॉन्ग्रेस के विकल्प के रूप में उभरे इस राजनीतिक दल ने अपनी दमदार भागीदारी से आज राष्ट्रीय राजनीति में ऐसी जगह बनाई है जिससे लड़ना विपक्षी दलों के लिए मुश्किल हो रहा है। अंत्योदय के विकास, जनभागीदारी एवं सर्ववर्गों के सम्मान में बीजेपी सरकार के निर्णयों ने राजनीतिक लूपहोल्स की संभावनाओं को निःसंदेह समाप्त कर दिया है।