पिछले सवा सौ दिनों में ‘बेहतर राहुल’ (आप चाहें तो माने अथवा मर्ज़ी आपकी) को ‘बेहतरीन राहुल’ बताने और दिखाने की जुगत में एक से बढ़कर एक बलिदान देखे गए हैं। वो कहते हैं न ‘लार्जर देन लाइफ’ वाली छवि, संभवतः उसी की तैयारी है।
कितने ऐसे लोग-बाग़ जो वर्षों से तटस्थ होने का स्वांग करते आ रहे थे, उन्हें भी आखिरकार अपनी नैतिक-प्रायोगिक जिम्मेदारी मानते हुए कॉन्ग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई। इनमें बुद्धिजीवी वर्गों से बड़े-बड़े नामों को मीडिया जगत के बड़े सामंतों ने अपने मकान-दुकान-जर-जमीन तक बेच दिए।
ऐसे में, सालों से चार दीवारी में कुएँ के मेंढक की भाँति दुनियाभर का ज्ञान और पात्रता बांटने वाले रवीश कुमार को भी हाज़िर होने का निर्देश मिला। या यूट्यूब चैनल के सब्सक्राइबर्स बढ़वाने की इच्छा वहाँ तक ले गई, इस बात पर संशय बना हुआ है। अन्तोगत्वा समय आ ही गया है कि सभी संसाधनों का समुचित दोहन किया जाए। अब तक एक कृतज्ञ दास का आत्मीय उन्माद जो धीरे-धीरे रिस रहा था, आज वह बंदिश तोड़ निकला है।
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गोदी मीडिया की बांग देने वाले पत्रकार महोदय जनता के विचारों को झकझोरते हुए उलाहने दे रहे हैं कि यदि वे भारत जोड़ो यात्रा से निकले नए राहुल गाँधी को नहीं पहचान पा रहे हैं तो यह उनका दुर्भाग्य है। सत्य है। रवीश कुमार जैसा खांटी पत्रकार अगर सीना ठोककर किसी की गारन्टी ले तो जरूर कोई न कोई बात होगी ही उसमें। तानसेन अपने स्वर से पत्थर पिघलाया करते थे, रवीश भी अपने शब्दों के पैनेपन से आपके दिमाग में जमे विचारों के बर्फ को पिघला ही सकते हैं।
राहुल गाँधी जो पहले से ज्यादा परिपक्व दिख रहे हैं (हुए हैं या नहीं यह विवाद का विषय है)। दाढ़ी में सफेदी आने दी जा रही है। शायद संजीदा दिखने के लिए बेतरतीब दाढ़ी का होना आधारभूत शर्त है। ऐसा किसी ने कह दिया होगा, उनको। रणदीप सुरजेवाला का पत्ता काट जयराम रमेश को उनका मौजूदा मेंटर बनाया गया है। वह भी राहुल जी की बातों को सुनकर मंद-मंद गर्वीले मुस्कान से सराबोर देखे जा रहे हैं। डैमेज कण्ट्रोल करते हुए पत्रकारों को हड़काते भी हैं। बाकी आने-पौने हैं ही जय-जयकार करने वाले।
राहुल गाँधी ने भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से भीड़ तो जुटाई है। इसको लेकर कोई दो मत नहीं है। साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव में नंबर दो का स्थान तो पक्का कर लिया है और अब कुछेक क्षेत्रीय दलों को छोड़ सभी अपने हथियार डाल ही देंगे कॉन्ग्रेस के आगे।
गौर कीजिए हमारा राहुल जी को ‘बेहतर राहुल’ कहने में निहित अर्थ भी स्पष्ट करना जरुरी है। यह हमारा व्यक्तिगत विचार है कि राहुल गाँधी जी को पहले मिस्टर इंडिया जैसे टाइटल्स जीतने चाहिए। माशाल्लाह क्या बॉडी है। ऊपर से बढ़िया तैराक भी हैं। दंड भी पेलने में अच्छे-अच्छों को मात दे देते हैं। मौसमी प्रकोप का भी कोई प्रभाव नहीं है।
दुनिया-समाज को भी ठेंगे पर रखते हैं। खुश-मिजाज़ी हैं (माफ़ कीजिएगा रंगीन-मिजाजी होने का मेरे पास कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है तो मैं यह कहने से परहेज़ करूँगा)। मने इन शॉर्ट जिंदादिल इंसान। ऊपर से अब विज्ञान से लेकर, धर्म-अर्थ-नीति से होते हुए दर्शन तक का ज्ञान बाँट रहे हैं। तो बताइए क्यों न कोई कायल हो जाए?
जिस तापमान में मोदीजी बंधगला सूट पहने दिख रहे हैं वहीं राहुल गाँधी एक अदद पतलून और टी-शर्ट में दक्षिण से उत्तर भारत को नाप रहे हैं। जिसे देखकर अक्सर ही एक विचार मन-मस्तिष्क में कौंध जाता है कि कहीं राहुल गाँधी, गाँधी जी से प्रभावित तो नहीं? ठहरिए इस पर हमारे विचार जान लीजिए।
गाँधी जी ठहरे पेशे से बैरिस्टर। ऐसे में सूट-बूट पहनना उनका शगल भी रहा होगा और शौक भी, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपने परिधानों का त्याग कर एक धोती में ही बाकी जीवन व्यतीत करने का निर्णय लिया था। क्या इन दोनों घटनाओं में आपको कोई समानता नहीं दिखती?
हमारे व्यक्तिगत विचार तो यही कहते हैं कि क्या पता राहुल गाँधी भी गाँधीजी के इन्हीं विचारों के ज़द में आ गए हों, तभी तो अदद एक जोड़े पतलून-कमीज में ही चल निकले हैं भारत जोड़ने। इससे भी बड़ी बात यह है कि इनके आलोचक (हम जैसे ही) जो खिड़की-दरवाज़े बन्द किए तीन परत वाले रजाई में घुसकर आर्टिकल लिख रहे हैं, वह भी मारे ईर्ष्या के धुआँ-धुआँ हुए जा रहे हैं। हम राहुल जी के विचारों से प्रभावित हों ना हों, जीवन-शैली के तो कतई फैन हो गए हैं, वो भी बड़े वाले।
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