भारत का पडोसी राज्य श्रीलंका इन दिनों एक वित्तीय संकट से जूझ रहा है। साल 2022 में जब देश-विदेश के बड़े अखबारों में श्रीलंका पर हैडलाइन चल रही थी, उस समय कई तथाकथित अर्थशास्त्रियों ने नागरिकों और सरकार को चेताते हुए, भारत में भी वित्तीय संकट के आगमन की घोषणा कर थी। राष्ट्र की अर्थव्यवस्था तो फिलहाल ठीक है लेकिन पंजाब में वित्तीय संकट के काले बादल छा रहे हैं।
पंजाब पर बढ़ता कर्ज
हरित क्रांति का सबसे अधिक फायदा लेने वाला राज्य — जो लगभग 2 दशकों तक प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत का सबसे अमीर राज्य रहा, आज कर्ज के बोझ के तले दबा जा रहा है।
पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा के अनुसार, “राज्य की अर्थव्यवस्था कर्ज के जाल में फंस रही हैं। राज्य का बकाया कर्ज वित्त वर्ष 2022-23 में ₹2.83 से बढ़कर ₹3.05 लाख करोड़ होने का अनुमान है।”
दुर्दशा का आलम यह है कि सिर्फ पुराने कर्ज पर ब्याज चुकाने के लिए सरकार ने 2 महीने में ₹8,000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है
कभी देश में अग्रणी रहने वाले पंजाब की तुलना सभी राज्यों से करें तो 53.3% के कर्ज-से-जीडीपी अनुपात के साथ पंजाब की हालत पूरे देश में सबसे खराब है।
रेवड़ियों की बांट से बढ़ती आफत
दुनियाभर के अर्थशास्त्री और वित्तीय विद्वान इस बात से सहमत हैं कि श्रीलंका में वित्तीय संकट की सबसे बड़ी वजह मुफ्तखोरी की राजनीति थी। पंजाब की भगवंत मान सरकार भी यही गलती कर रही है।
अर्थव्यवस्था की भीषण दुर्गति के बावजूद राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार रेवड़ियां बांटने में लगी है। चालू वित्त वर्ष में कुल बिजली सब्सिडी ₹24,886 करोड़ रुपये है, जिसमें से ₹15,845 करोड़ रुपये केवल मुफ्त 300 यूनिट बिजली की वजह से है। कुछ ही दिन पहले पंजाब सरकार ने एक हफ्ते इंतजार के बाद राज्य के सरकारी कर्मचारियों की वेतन दी थी जिस पर भाजपा नेताओं ने राज्य सरकार पर कटाक्ष भी कसा था।
पंजाब की अर्थव्यवस्था मृत अवस्था से बस दो कदम दूर है लेकिन ‘अरविन्द केजरीवाल की रेवड़ियों वाली राजनीति’ से प्रेरित भगवंत मान केवल वोटबैंक के लिए मुफ्त बिजली और अन्य उपहार बांटने से नहीं बाज आएंगे, जो राज्य अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होगा।