मीडिया के बदलते स्वरूप और बदलती अवधारणा ने ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ शब्द की पुर्नव्याख्या करने पर विवश कर दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि ‘मीडिया व्यवसाय’ से जुड़ी कम्पनियों पर जब घपलेबाजी को लेकर जांच होती है तो ‘संपादकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों द्वारा ‘प्रेस फ्रीडम’ की आड़ में इनकी ढाल बनना न तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप है।
हालिया उदाहरण ब्रिटिश ब्राडकॉस्टिंग कॉरपोरेशन (BBC) का है। BBC ने जब यह स्वीकारा कि उसने 40 करोड़ रुपए की टैक्स चोरी की है, तब ‘प्रेस फ्रीडम’ को लेकर इकोसिस्टम ने समय समय पर जो परिभाषा गढ़ रखी है, उस पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
प्रश्न इसलिए उठ रहा है कि जब BBC के दिल्ली और मुम्बई कार्यालयों पर इनकम टैक्स की गड़बड़ी को लेकर आयकर विभाग ने सर्वे किया तब भारतीय मीडिया के एक वर्ग ने इसे ‘छापा’ बताकर ‘लोकतंत्र में प्रेस की हत्या’ बताने का प्रयास किया। आज जब BBC ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है तब उसी प्रेस की कारस्तानी पर मानो मीडिया के उस वर्ग के पेन की स्याही सूख गई है, कीबोर्ड के बटन पर जंग लग गया है और माइक कहीं दुबक कर बैठ गया है।
EGI ने क्या कहा था?
प्रेस और पत्रकारों के लिए सेलेक्टिव तौर पर चिन्तित रहने वाला गिरोह, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया ने तो यहाँ तक कह दिया था कि यह कार्रवाई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बनी BBC की एक डॉक्यूमेंट्री के प्रतिशोध का परिणाम है।
जबकि इस डॉक्यूमेंट्री पर दिल्ली हाईकोर्ट BBC को यह कहकर मानहानि के मुकदमे में समन जारी कर चुका है कि डॉक्यूमेंट्री देश और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और प्रधानमंत्री के खिलाफ मानहानिपूर्ण आरोप और जातिगत कलंक लगाता है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का यह बयान गैरजिम्मेदाराना इसलिए भी है क्योंकि टैक्स चोरी के मामले BBC पर केवल भारत में ही सर्वे नहीं हुआ है बल्कि यूनाइटेड किंगडम में साल 2012 की सार्वजनिक लेखा समिति अपनी एक रिपोर्ट में बता चुकी है कि BBC समेत उसके हजारों कर्मचारी टैक्स का भुगतान नहीं कर रहे थे। साल 2016 में एचएमआरसी ने टैक्स चोरी के मामले में 100 से अधिक BBC प्रसारकों पर जांच भी शुरू कर दी थी।
जब अनियमितताओं के चलते भारत में BBC जैसे ‘मीडिया व्यवसाय’ पर प्रशासनिक कार्रवाई होती है तो फिर भेड़िया आया, भेड़िया आया की तर्ज पर ‘प्रेस फ्रीडम’ का राग अलापा जाता है। तकरीबन 6-7 वर्षों से यही पैटर्न अपनाया जा रहा है और हर बार प्रशासनिक कार्रवाई सही साबित होती है। इसके कुछ उदाहरण देख लेते हैं।
NDTV
9 जून, 2017 को दिल्ली के प्रेस क्लब में कई नामी पत्रकार और एक्टिविस्ट NDTV प्रमोटर राधिका और प्रणय रॉय पर CBI और ED के छापे के विरोध में जमावड़ा लगाए बैठे थे। इस बैठक में अरूण शौरी, प्रेम शंकर झा, कुलदीप नैयर, एस निहाल सिंह जैसे लोग शामिल थे। तब अरूण शौरी ने केन्द्र सरकार की ओर संकेत करते हुए कहा था कि “राम गयो, रावण गयो, ताको बहु परिवार… ये भी जाएंगे।” प्रशासनिक कार्रवाई के विरोध में ये लोग सड़क पर उतर आए थे।
हालाँकि, प्रेस फ्रीडम के यही पैरोकार तब चुप रहे जब आयकर अपीलीय अधिकरण (ITAT) ने NDTV पर 450 करोड़ टैक्स की मांग को बरकरार रखा और जुर्माना समेत 900 करोड़ रुपए से अधिक बकाया चुकाने का आदेश दिया।
एनडीटीवी के प्रमोटर राधिका और प्रणय रॉय पर प्रवर्तन निदेशालय मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज कर चुका है। वहीं भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने पेनाल्टी भी लगाई और साल 2020 में रॉय दंपत्ति को सेबी ने दो साल के लिए प्रतिभूति बाजारों से प्रतिबंधित भी कर दिया था। यह कार्रवाई बताती है कि एनडीटीवी किस तरह करोड़ों रुपए की हेरा-फेरी में शामिल रहा है।
टैक्स चोरी और विदेशी फंड में हेरा-फेरी को लेकर कई मीडिया घरानों पर कार्रवाई हुई है और चल भी रही है। यह कार्रवाई भ्रष्टाचार के खिलाफ है, मीडिया के नहीं, यह बात समझने की आवश्यकता है।
न्यूजक्लिक
भ्रष्टाचार की जांच की जद में न्यूजक्लिक भी आया जब न्यूजक्लिक की मूल कंपनी को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के माध्यम से अवैध पैसा आया था। उस समय भी मीडिया के एक वर्ग ने इसे ‘प्रक्रिया ही बन गई है सजा’ शीर्षक चलाकर ‘प्रेस फ्रीडम’ को लेकर खूब प्रलाप किया। ऐसे अनेकों मीडिया हाउस और पत्रकार हैं जिन्हें पैसों की हेरा-फेरी के कारण जांच का सामना करना पड़ा है। मसलन, क्विंट, भारत समाचार, भास्कर समूह, राणा अय्यूब, साकेत गोखले।
विदेशी मीडिया ने तब क्या कहा?
BBC के कार्यालयों के सर्वे के दौरान भी यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की गई कि यह कार्रवाई डॉक्यूमेंट्री के विरोध में है। भारतीय मीडिया के एक वर्ग समेत अन्तरराष्ट्रीय मीडिया ने भी यही छापा। विदेशी मीडिया के शीर्षक आप नीचे फोटो में देख सकते हैं।
BBC का बचाव करता विपक्ष
विदेशी मीडिया के इस प्रोपेगेंडा में भारत के विपक्ष ने अहम भूमिका निभाई। कॉन्ग्रेस ने तो इसे “अघोषित आपातकाल” घोषित कर दिया। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अगर इस तरह से संस्थानों, विपक्ष और मीडिया पर हमला किया जाता रहेगा तो कोई भी लोकतंत्र जीवित नहीं बचेगा। हालाँकि यह वही कॉन्ग्रेस है जिनकी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने एक डॉक्यूमेंट्री पर विवाद को लेकर BBC पर ही बैन लगा दिया था।
कई विपक्षी दल जैसे आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, पीडीपी सीपीआईएम, तृणमूल कॉन्ग्रेस, एनसीपी, राजद-जदयू उसी अन्तरराष्ट्रीय मीडिया के उसी ढर्रे पर चले। आज जब BBC ने माना कि उसने टैक्स में हेरा-फेरी की है तो इसी विपक्ष ने मौन धारण कर लिया है।
यहाँ एक दिलचस्प बात यह है कि BBC पर प्रशासनिक कार्रवाई के बाद सीबीडीटी ने कोई नोटिस नहीं दिया बल्कि BBC ने एक आधिकारिक ई-मेल कर बताया है कि हाँ, उसने टैक्स की चोरी की है।
मीडिया का बदलता स्वरूप
मीडिया के जिस बदलते स्वरूप की बात शुरू में की गई है यदि उसे संक्षेप में समझना चाहें तो वो यह है कि मीडिया घरानों का स्वामित्व अब बदल चुका है। मीडिया केवल खबर परोसने और समाज का आईना बनने तक सीमित नहीं रह गया है। अधिकांश मीडिया कंपनियाँ अब स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध हैं इसीलिए वे एक साधारण बिजनेस कम्पनी की तरह ही आचार-व्यवहार करेंगे।
चूँकि मीडिया घराने भी बिजनेस कम्पनी की तरह व्यवहार कर रहे हैं ऐसे में पैसों की हेराफेरी को लेकर नियामक संस्थाएं कार्रवाई ही करेगी। मज़े की बात यह है कि उद्योग समूहों पर जब टैक्स विभाग की कार्रवाई होती है तब मीडिया उसके बारे में उसी तरह विलाप नहीं करता जैसे निज पर होने वाली कार्रवाई को लेकर करता है।
‘प्रेस की स्वतंत्रता’ यहाँ मुद्दा नहीं बनता है। प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला उस समय होता है जब सरकार किसी पत्रकार या संपादक को बिना कारण बताए सीधे गिरफ्तार कर लेती है। ऐसे में आईटी सर्वे या ईडी का नोटिस प्रेस की आजादी पर हमला कैसे हो सकता है?
बहरहाल, अब प्रश्न यह भी है कि BBC द्वारा वित्तीय अपराध कबूल करने के बाद मीडिया का वह वर्ग, भारत का विपक्ष और पूरा इकोसिस्टम क्या करेगा? अब क्या वे माफी माँगेंगे या फिर बेशर्मी के साथ फिर किसी दिन ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ पर हमले का रोना रोएंगे।