कुछ ही समय में भव्य राम मंदिर हमारी आँखों के सामने होगा, पर इसके पीछे हजारों लोगों का अलग-अलग रूप में योगदान रहा है। श्रीरामजन्मभूमि पर राम मंदिर आन्दोलन के शुरुआती दौर में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान देने वाले ब्रजवासी लाल को कम ही लोग जानते हैं। 10 सितंबर को उनका निधन हो गया। आइए, जानते हैं भव्य राममंदिर की नींव के पत्थर ब्रजवासी लाल के बारे में जिन्हें बीबी लाल भी कहा जाता है।
प्रख्यात पुरातत्वविद् ब्रजवासी लाल पूरे 101 साल जीकर साकेत गमन कर गए हैं। उन्हें भारतीय पुरातत्व का ‘पितामह’ भी कहा जा सकता है। सात दशकों से अधिक के उनके लंबे करियर में भारत की प्राचीन पुरातात्विक विरासत की पुनर्खोज पर उनके शानदार कार्यों के लिए उन्हें जाना जाता है। उनके निधन ने राममंदिर आन्दोलन में ही नहीं भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में भी एक नीरवता छोड़ दी है।
बृजवासी लाल का जन्म ब्रिटिश भारत के झांसी जिले में हुआ था। बहुत कम उम्र से ही उनका इतिहास के प्रति गहरा रुझान था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की, लेकिन बाद में 1934 में प्रसिद्ध पुरातत्वविद् मोर्टिमर व्हीलर के मार्गदर्शन में पुरातत्व की ओर रुख कर लिया। उन्होंने 1968 से 1972 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक के रूप में काम किया।
भारतीय प्राचीनता को उद्घाटित करने का जुनून
बीबी लाल उन प्रमुख व्यक्तियों में थे जिन्होंने सबसे पहले हिंदू इतिहास के प्रमुख ग्रन्थ रामायण और महाभारत के ऐतिहासिक साक्ष्यों का तथ्यात्मक अनुमान लगाया। अयोध्या में लंबे समय से श्रीरामजन्मभूमि का विवाद चल रहा था, विवादित स्थल की सच्चाई जानने के लिए उन्होंने युवा पुरातत्वविदों के एक समूह का कुशल नेतृत्व किया।
रामजन्मभूमि के लिए मिली गैलीलियो वाली सजा
अयोध्या के पुरावशेषों का पता लगाने के लिए उन्होंने 1975-76 के बीच ‘रामायण के पुरातत्व’ समूह का गठन किया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में विवादित स्थल के नीचे एक प्राचीन भव्य मंदिर होने के पुख्ता सबूत पेश किये। हालाँकि, तत्कालीन हिन्दूफोबिक राजनीति के दौर में और केंद्र सरकार की झिझक के कारण, उनकी रिपोर्ट को रोक दिया गया, और उन्हें निलंबित कर दिया गया। सत्य को बताने की यह सजा कुछ वैसी ही है जैसे चर्च ने गैलिलिओ को दी थी, बस भारत का चर्च सेकुलरिज्म और तुष्टीकरण वाला सिस्टम था।
उनके शोध के 12 साल के अंतराल के बाद भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) ने 1989 में इस प्रारंभिक रिपोर्ट को प्रकाशित किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि सच्चाई किसके पक्ष में है।
प्रोफेसर ब्रजवासी लाल का काम सबूतों के विशाल संग्रह की आधारशिला बन गया, और इसने एतिहासिक शोध की क्रांति ला दी। कालान्तर में इसी प्रारंभिक रिपोर्ट के पुख्ता सबूतों के आधार पर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सत्य को माना और, राममंदिर का निर्माण प्रशस्त हुआ।
हाल ही में उनके 100वें जन्मवर्ष में 2021 में, भारत सरकार ने उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। इससे पहले अटलबिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान वर्ष 2000 में उन्हें पद्म भूषण दिया गया था।
प्रोफेसर ब्रजवासी लाल ने इतिहास और पुरातत्व के क्षेत्र में स्वतंत्र भारत की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने कई प्राचीन स्थलों पर शोध किया और काम किया। उनके नेतृत्व में अनेक स्थलों पर सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक और उत्तर-वैदिक स्थलों और हिंदू महाकाव्यों से संबंधित स्थलों के साक्ष्य खोजे गए। उनके अंतर्गत प्रशिक्षित अधिकांश शिष्य और साथी, बाद में भारतीय पुरातत्व के दिग्गज के रूप में उभरे।
भारत ही नहीं बल्कि वे विश्व के वरिष्ठतम पुरातत्वविद थे। उन्होंने मिस्र में नील नदी के पास न्युबियन घाटी सभ्यता की खुदाई की थी जिसने उन्हें पुरातत्व के मामले में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ की लीग में डाल दिया।
महाभारत, रामायण और आर्य सिद्धांत पर निरंतर कार्य
उन्हें पश्चिम यूपी और हरियाणा में महाभारत स्थलों की ऐतिहासिकता स्थापित करने के लिए भी जाना जाता है। भारत पर आर्य आक्रमण सिद्धांत को नकारने वाले अनेक प्रमाण उन्हें उत्खननों में मिले और इसने आर्य वंश के स्वदेशी होने के तथ्य को मजबूती से स्थापित किया।
उनके बाद के जीवन ने राजनीतिक अर्थ भी प्राप्त कर लिए थे। उन्होंने महाभारतकालीन और रामायणकालीन स्थलों और वैदिक स्थलों के बीच के अंतर्संबंधों पर कई विद्वानों के शोधपत्र प्रकाशित किए ताकि वास्तविक निष्कर्ष स्थापित हो सके कि आर्य आक्रमण सिद्धांत का कोई ठोस सबूत नहीं है।
वैदिक काल से ऐतिहासिक काल के बीच स्वदेशी आर्यवाद की निरंतरता उनका दावा था जो बाद में उनके प्रतिष्ठित कार्य, “The Rigvedic People: Invaders? Immigrants? or Indigenous?” में प्रकाशित हुआ। उनका एक और महत्वपूर्ण कार्य है, “The Earliest Civilisation of South Asia“।
भारत पुरातत्व की औपनिवेशिकता से आजादी
ब्रजवासी लाल ने भारतीय पुरातत्व को उपनिवेशवाद से आजादी दिलाई। उन्होंने भारत के बारे में सारे औपनिवेशिक इतिहास को पुख्ता सबूतों के आधार पर कठघरे में खड़ा किया। इससे स्वदेशी पुरातत्व अध्ययन की एक जागरूक परंपरा का जन्म हुआ जिसने भारतीय शोध और इतिहासलेखन को सही दिशा दिखाई।
भारतीय इतिहासलेखन और पुरातत्व बृजवासी लाल की भव्य विरासत का ऋणी है जिसका युग अब समाप्त हो गया है। ब्रेकिंग इण्डिया फोर्सेज, विदेशी हस्तक्षेप, पूर्वाग्रह ग्रसित सेकुलर सरकारों के कारण उनके कामों में अनेक बाधा आईं पर उनके शिष्यों और साथियों की श्रृंखला बहुत बड़ी है जो भारत का सत्य सामने लाने और स्थापित करने की प्रक्रिया में जुटी है।