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Home » बैस्टिल डे : फ्रांस की क्रांति की बरसी पर विश्वयुद्ध के भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देंगे पीएम मोदी
झरोखा

बैस्टिल डे : फ्रांस की क्रांति की बरसी पर विश्वयुद्ध के भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देंगे पीएम मोदी

बैस्टिल जेल और बैस्टिल दिवस 200 वर्ष से भी पहले हुई फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत का प्रतीक है। यह फ्रांस का स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
Ritika ChandolaBy Ritika ChandolaJuly 11, 2023No Comments6 Mins Read
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बैस्टिल डे
बैस्टिल डे पीएम मोदी दौरा
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आने वाले 14 जुलाई को फ्रांस में बैस्टिल डे (France Bastille Day) मनाया जाएगा। फ़्रांस के राष्ट्रीय वार्षिक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गेस्ट ऑफ़ ऑनर के तौर पर फ्रांस के राष्टपति इमैनुअल मैक्रों ने निमंत्रण दिया है, जिसमें प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे। 

वहीं, भारतीय सशस्त्र बल भी इस समारोह में आयोजित होने वाली परेड में हिस्सा लेंगे। इस वर्ष की परेड में भारतीय सशस्त्र बलों केतीनों अंगों की 269 सदस्यीय टुकड़ी फ्रांस की तीनों सेनाओं की टुकड़ी के साथ मार्च करते हुए दिखाई देगी। यह टुकड़ी फ्रांस के लिए रवाना हो गई है।

फ्रांस में बैस्टिल डे पर होने वाले फ्लाईपास्ट में भारतीय वायुसेना के चार राफेल लड़ाकू विमान और दो सी-17 ग्लोबमास्टर विमान भाग लेंगे। भारतीय वायु सेना (आईएएफ) का एक दल बीते शुक्रवार को फ्रांस पहुंचा। यह दल 14 जुलाई को यूरोपीय देश में आयोजित होने वाले बैस्टिल डे के लिए अभ्यास सत्र में व्यस्त है। वायुसेना ने इस पर ट्वीट कर कहा, ‘द वॉरियर्स इन ब्लू, एवेन्यू डेस चैंप्स एलिसी पर जलवा बिखेरने के लिए तैयार हैं। बैस्टिल डे स्विंगइट।’ 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वितीय विश्वयुद्ध और प्रथम विश्वयुद्ध में बलिदानी सैनिकों को श्रद्धांजलि देंगे जिन्होंने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। इन दिवंगत भारतीय सैनिकों को आज तक भी याद नहीं किया गया जो कि बेहद निराशाजनक भी है।  

भारत और फ्रांस की सेनाओं के बीच यह परस्‍पर संबंध प्रथम विश्व युद्ध से ही जारी है। इस युद्ध में 13 लाख से अधिक भारतीय सैनिकों ने भाग लिया था, इनमें से लगभग 74,000 सैनिक ऐसे थे, जिन्होंने कीचड़ भरी खाइयों में लड़ाई लड़ी और वे फिर कभी वापस भी नहीं लौटे। अन्य 67,000 सैनिक इसमें घायल हो गए थे।

भारत के सैनिक फ्रांस की धरती पर भी बहुत बहादुरी से लड़े थे। उनके साहस, वीरता और सर्वोच्च बलिदान से न केवल दुश्मन को विफल कर दिया था,बल्कि उन्‍होंने युद्ध जीतने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इसके बाद दूसरे विश्व युद्ध में 25 लाख से अधिक भारतीय सैनिकों ने एशिया से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक युद्ध के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उनके योगदान में फ्रांस के युद्धक्षेत्र भी शामिल रहे थे।

14 जुलाई सिर्फ भारतीय सैनिकों के लिए ही नहीं बल्कि यूरोप के भी बलिदानियों के लिए यह परेड समर्पित है और ये पूरे यूरोप महाद्वीप के लिए गौरव का क्षण भी है ।    

आपको बता दें की प्रधानमन्त्री 14 से 16 जुलाई तक फ्रांस के दौरे पर रहेंगे। इस बीच एक महत्वपूर्ण खबर यह भी है कि डिफेन्स फाॅर्स की तरफ से रक्षा मंत्रालय को फ्रांस से 26 राफेल लड़ाकू विमान और तीन स्कॉर्पियन पनडुब्बियां खरीदने का प्रस्ताव भेजा गया है। कहा ये भी जा रहा है कि यह समझौता दोनों ही देशों के लिए रक्षा और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण है। 

युद्धरत यूरोप, लोकतंत्र और भारत

#WATCH | Paris, France | Augustin de Romanet, Chairman/CEO at Aeroports de Paris says, "…It's a great honour for France to welcome PM Modi as the Guest of Honour for Bastille Day as the testimony of the strength of our commitment to this bilateral & long-standing partnership." pic.twitter.com/M4VJc0qyZh

— ANI (@ANI) July 11, 2023

बैस्टिल जेल से ही शुरू हुई थी फ्रांसीसी क्रान्ति 

बैस्टिल जेल और बैस्टिल दिवस 200 वर्ष से भी पहले हुई फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत का प्रतीक है। यह फ्रांस का स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। फ्रांसीसी इस राष्ट्रीय दिवस यानी 14 जुलाई, 1789 को बैस्टिल के ‘तूफान की सालगिरह’ भी बोलते हैं। 

वर्ष 1789 में फ्रांस के लोग राजा लुई 16वें के शासनकाल से नाखुश थे और फ्रांस में यह आर्थिक संकट का दौर था। श्रमिक और कुलीन वर्ग के बीच बड़े स्तर पर असंतोष पैदा हो रहे थे। 

5 मई,1789 को देश के स्टेट जनरल ने एक बैठक बुलाई, लेकिन इस बैठक मे थर्ड स्टेट के लोग यानी आम लोगों को शामिल नहीं किया गया। सरकार के इस फैसले से आम जनता काफी नाराज हो गई जिसके बाद फ्रांस की आम जनता ने राजा के खिलाफ विद्रोह कर दिया।

बैस्टिल एक किला था जो कि लुइ 16वें के समय में उच्च वर्ग के सदस्यों के लिए जेल के रूप में इस्तेमाल किया गया था और यहाँ राजनीतिक असंतुष्टों या राजनीतिक कैदियों को एक जेल में बंद किया जाता था।

इसी बैस्टिल के दुर्ग से फ़्रांस की क्रांति ने भी जन्म लिया। देखते ही देखते क्रांतिकारी विद्रोहियों ने इस जेल पर कब्ज़ा कर लिया, जिसे बैस्टिल जेल के नाम से जाना जाता है।

पेरिस की सड़कों पर हिंसा फैलने के बाद, 14 जुलाई की सुबह एक भीड़ ने बैस्टिल जेल को घेर लिया। किसी ने यह खबर फैला दी थी कि इस दुर्ग में राजा ने हथियार छिपा रखे हैं।  

क्रांतिकारियों ने इस जेल पर धावा बोल दिया। हमले के समय जेल में केवल सात कैदी थे, लेकिन क्रांतिकारियों ने इनकी रिहाई को राजशाही के खिलाफ विद्रोह का नाम दिया।  

आखिरकार राजशाही को उखाड़ फेंका गया और लुई सोलहवें और उनकी पत्नी क्वीन मैरी एंटोनेट को फाँसी दे दी गई।

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तानाशाही का प्रतीक था बैस्टिल जेल

17वीं शताब्दी में राजा के आदेश पर इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके बैस्टिल जेल में डाला गया था। इन कैदियों को ये अधिकार नहीं था कि वो खुद के लिए आवाज़ उठा पाएं। इन क्रांतिकारियों का कैद होना फ्रांसिसी क्रांति के दैरान तानाशाही का प्रतीक बन गया था।

फ्रांसीसी क्रांति के दौरान 14 जुलाई, 1789 को बढ़ी तादाद में फ्रांस की जनता बैस्टिल जेल के बाहर जमा हुई। जनता ने जेल पर हमला बोल दिया और जेल में मौजूद सात कैदियों को छुड़ा लिया गया। यह घटना फ्रांस की क्रांति में घटी एक काफी महत्वपूर्ण घटना थी। इस घटना को राजशाही शासन के अंत के तौर पर देखा जाता है।

बैस्टिल डे परेड 

फ्रांस की राजधानी पेरिस में साल 1880 से हर साल 14 जुलाई को इस समारोह का आयोजन किया जाता है। पेरिस बैस्टिल दिवस कार्यक्रम एक सैन्य समारोह के साथ शुरू किया जाता है, जिसके बाद एवेन्यू डेस चैंप्स एलिसीज़ और सैन्य विमानों द्वारा फ्लाईओवर पर एक विशाल सैन्य परेड होती है।

चैंप डे मार्स पर आईफ़िल टॉवर पर शानदार बैस्टिल डे आतिशबाजी शो रात 11 बजे शुरू होता है जो करीब आधे घंटे तक वहां के आसमान में दिखाया देती है। यह यूरोप की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी सैन्य परेड है ,जो 14 जुलाई को पैरिस के Champs-Élysées में PRESIDENT OF REPUBLIC, अन्य फ्रांसीसी अधिकारियों और विदेशी मेहमानों के सामने आयोजित की जाती है।

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आतिशबाज़ी पर इस साल लगाई रोक 

फ्रांस में इस वक्त सड़कों पर बड़े स्तर पर दंगे चल रहे हैं, इसीको देखते हुए इस साल आने वाले बैस्टिल डे के दौरान हिंसा की आशंका को देखते हुए फ्रांस ने पटाखों की बिक्री, अतिशबाजी, जुलूस और यातायात पर प्रतिबंध लगा दिया है। 

फ्रांस की सड़कों पर दंगाई तब उतर आए जब जून माह के अंत में एक पुलिस अधिकारी ने कथित तौर पर सत्रह वर्षीय नाहेल एम की नानटेरे में गोली मारकर हत्या कर दी थी। नाहेल अल्जीरियाई मूल का युवक था और उसकी मौत से आक्रोशित लोगों ने फ्रांस की सड़कों पर जमकर आगजनी और दंगों को अंजाम दिया। कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों को अतिशबाजी करते हुए भी देखा गया। 

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    Ritika Chandola

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