वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लंदन में संत बसवेश्वर की प्रतिमा का अनावरण किया गया था। प्रतिमा का अनावरण करके प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि यह प्रतिमा लोकतांत्रित आदर्शों एवं मानवता में विश्वास रखने वालों के लिए प्रेरणास्रोत है। खेद की बात है इसी स्थान पर जाकर राहुल गांधी ने अपनी लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर भारत में लोकतंत्र की समाप्ति की घोषणा कर दी।
देश में लोकतंत्र के खतरे में होने या उसकी समाप्ति के अहसास की बात लगभग सभी विपक्षी दल ने की पर उसके बचाने के लिए विदेशी सहायता की अपील माननीय राहुल गांधी द्वारा ही की गई। राहुल गांधी के साथ समस्या यह है कि वो ऐसी पार्टी से संबंधित है जिसका जन्म भारत में अंग्रेज़ी औपनिवेश का सरलीकरण करने के लिए हुआ था। ऐसे में लोकतांत्रिक मूल्यों और उनके उद्भव के बारे में उनकी अज्ञानता स्वभाविक है। उन्हें यह मानने की स्वतंत्रता है कि भारत वर्ष 1947 में लोकतांत्रिक देश बना जब उनके दल और परिवार ने देश को कथित तौर पर आजादी दिलाई थी। पर एक राष्ट्रीय नेता और देश के नागरिक होने के नाते उनके इतिहास बोध पर प्रश्नचिह्न लगना चाहिए।
लंदन में भारतीय लोकतंत्र पर प्रश्नचिह्न लगाकर राहुल गांधी ने देश का और संत बसवेश्वर दोनों का अपमान किया है। मैग्नाकार्टा को लोकतंत्र का जनक मानने वाले, संत बसवेश्वर की दूरदर्शिता को भूल चुके हैं जिन्होंने 12वीं सदी में ही दुनिया की पहली संसद की स्थापना कर दी थी।
संत बसवेश्वर भारतीय समाज सुधारक, दार्शनिक और स्वतंत्र विचारों वाले रहे। 12वीं शताब्दी में उन्होंने सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक क्रांति ला दी थी। उनके द्वारा स्थापित ‘अनुभव मंडप’ दार्शनिक और विषय विशेषज्ञों से परिपूर्ण रहा। इसमें सभी वर्णों, आयु वर्ग और महिलाओं का भी प्रतिनिधित्व था। लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर निर्मित इस सभा को विश्व की पहली संसद माना जाता है।
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इस पहली संसद में सभाजन एकसाथ बैठकर लोकतांत्रिक ढांचे में समाजवादी सिद्धांतों पर चर्चा करते थे। इस सिद्धांतवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था का अध्ययन विश्वभर में होता है। इसी आधार पर भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र ही नहीं बल्कि लोकतंत्र की जननी भी है।
हाँ, यह भी समझने की आवश्यकता है कि संत बसवेश्वर ने लोकतंत्र एवं शासन के इस सुव्यवस्थित रूप को विदेश से ग्रहण नहीं किया था। उनके जो सिद्धांत और कार्य थे वे भारतीय दर्शन पर आधारित थे। भारतीय दर्शन को अपनाने वालों को ज्ञात है कि हमारे धर्मग्रंथ से लेकर इतिहास तक लोकतंत्र के बीज विद्यमान हैं।
कूटनीति और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए हमारे धर्मग्रंथों ने कई बेहतरीन शिक्षाएं उपलब्ध करवाईं हैं। रावण को हराकर जब श्रीराम अयोध्या लौटते हैं तो प्रबुद्धजनों को सुग्रीव एवं विभीषण से परिचय करवाकर कहते हैं कि यह हमारे आपत्ति के साथी हैं। भूराजनीति और भूमंडलीकरण को जानने वाले समझ सकते हैं कि राम सुग्रीव एवं विभीषण को साथी बताकर कूटनीतिक मित्र बना रहे थे। साथ ही भाई भरत की प्रशंसा कर राज्य के शासन, दरबार एवं विभागों की जानकारी लेकर पारदर्शी लोकतंत्र का परिचय दे रहे थे।
रामायण से महाभारत में कूटनीति और लोकतंत्र का परिचय मिलता है, यह बात और है कि राहुल गांधी के लिए इसे समझना मुश्किल काम है। वे अपने निजी विचारों से संचालित रहते हैं और व्यक्तव्य देने के बाद नियति के भरोसे रहते हैं कि यह सही निकल जाए।
देश स्वतंत्र है, लोकतांत्रिक है और सुदृढ़ न्यायिक व्यवस्था के साथ आगे बढ़ रहा है। ऐसे में राहुल गाँधी बाहरी सहायता का आह्वान किस लिए कर रहे हैं? जनता द्वारा चुनी गई सरकार को वे मात्र इसलिए लोकतंत्र के विरुद्ध बता देंगे क्योंकि जनता ने उन्हें नहीं चुना? लोकतंत्र और इसके सिद्धांतों पर विदेश में बात करने के बजाए राहुल गांधी को अपने दल में इसके सिद्धांतों को सुनिश्चित करना चाहिए।
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ऐसा संभव हो पाता कि किसी तरह कॉन्ग्रेस के ‘तपस्वी’ संत बसवेश्वर की शिक्षाओं को समझ पाते तो उन्हें पता चलता कि सभा, संसद और दल में न सिर्फ वो समान प्रतिनिधित्व रखते थे बल्कि सभी को अपने विचार दर्शन प्रस्तुत करने का अधिकार भी था। उनकी शिक्षा थी कि स्वंय का काम करें, तर्कसंगत सोचें और ‘दसोहा’ के माध्यम से समाज में वापस योगदान दें। अनुभव मंडप के जरिए उन्होंने आक्रांताओं के दौर में लोकतंत्र को जीवित रखा। दूसरी ओर राहुल गाँधी तो स्वतंत्र राष्ट्र में वंशवाद का सबसे बड़ा उदाहरण बन गए हैं। ऐसे में उनसे लोकतंत्र की सही व्याख्या की आशा नहीं की जा सकती है।
संत बसवेश्वर को याद करते हुए प्रधानमंत्री मोदी समय-समय पर भारत को लोकतंत्र की जननी कहकर संबोधित करते हैं। वहीं जहाँ अनुभव मंडप जैसी संस्था की स्थापना हुई, उस देश के लिए राहुल गांधी के विचार उनकी राजनीतिक हताशा को दर्शा रहे हैं। उनको भान है कि अब देश की जनता वर्षों से चलित वंशवाद को नकार चुकी है और लोकतांत्रिक मूल्यों को अपना रही है। ऐसे में राहुल गांधी सहित विपक्षी दलों को वंशवाद से बाहर निकलने के बजाए लोकतंत्र पर कीचड़ उछालने के कार्य में लग गए हैं।