हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बराक ओबामा ने सीएनएन को एक इंटरव्यू दिया। अमेरिकी नेटवर्क सीएनएन के क्रिस्टियन अमनपोर ने बराक ओबामा से पूछा कि “बायडेन इस वक्त अमेरिका में पीएम मोदी का स्वागत कर रहे हैं जिन्हें ऑटोक्रेटिक या फिर निरंकुश माना जाता है। किसी राष्ट्रपति को ऐसे नेताओं के साथ किस तरह से पेश आना चाहिए?”
क्रिस्टियन को जवाब देते हुए ओबामा ने कहा कि “हिंदू बहुसंख्यक भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का ज़िक्र ज़रूरी है। अगर मेरी मोदी से बात होती तो मेरा तर्क होता कि अगर आप (नस्लीय) अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा नहीं करते हैं तो मुमकिन है कि भविष्य में भारत में विभाजन बढ़े। ये भारत के हितों के विपरीत होगा”
जिसे ओबामा जवाब बता रहे हैं वो असल में एक क़िस्म की धमकी है। सवाल तो ये है कि अमेरिका को यह तय करने का अधिकार कौन देता है कि लोकतंत्र क्या है और क्या नहीं। सबसे पहले तो उन्हें यही बात ध्यान रखनी चाहिये कि वो ऐसा बयान दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के बारे में दे रहे हैं और उस नेता के बारे में दे रहे हैं जिन्हें इस लोकतंत्र ने दो बार लगातार बहुमत से अपना नेता चुना है।
दूसरी ज़रूरी बात ये है कि भारत में मुस्लिम उत्पीड़न का नैरेटिव बनाने वाले वो लोग हैं जो एयरलाइंस के बिजनेस क्लास में सफ़र करते हैं। ऐसे गिनी-चुने दो चार लोगों के रोज़ाना की दलीलों से यह साबित नहीं होता कि इस देश का हर व्यक्ति यही राय रखता है। भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ आगे बढ़ रहा है और उसे पश्चिम से कुछ सीखने की आवश्यकता भी नहीं है।
तीसरी बात जो बराक हुसैन ओबामा को ध्यान में रखनी चाहिये वो ये कि कम से कम ओबामा को तो मुस्लिम समुदाय के हितों के बारे में प्रॉपगैंडा नहीं फैलाना चाहिए।
अमेरिकी राष्ट्रपति रहते हुए ओबामा ने आधा दर्जन मुस्लिम देशों पर बमबारी की थी। ये वही ओबामा हैं, जिनकी लीडरशिप में संयुक्त राज्य अमेरिका ने कम से कम सात अलग-अलग देशों में हवाई हमले का आदेश दिया। अगर उन्हें उनका ही एक बयान याद दिलाएँ तो 2009 में नोबेल शांति पुरस्कार स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा था कि कभी-कभी युद्ध नैतिक रूप से सही होते हैं।
भारत के मुस्लिमों के लिए चिंता जताने वाले ओबामा ने जिन सात देशों पर बमबारी करवाई थी, वे सभी मुस्लिम बहुल देश थे।
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अफगानिस्तान, पाकिस्तान, लीबिया, यमन, सोमालिया, इराक और सीरिया ऐसे देश हैं जिन पर अमेरिका ने ये कहते हुए हमले किए थे कि ये ‘आतंकवाद के खिलाफ जंग’ है। क्या तब ओबामा को याद नहीं रहा कि ये शान्तिप्रिय धर्म को तंग करने वाले आदेश हैं?
दुनियाभर में अमेरिका द्वारा किए गए हमलों पर 2017 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि साल 2016 में अमेरिका ने हर दिन औसतन 72 बम गिराए और प्रति घंटे में औसतन तीन बम।
न्यूयॉर्क के एक थिंकटैंक के अनुसार, दुनिया भर में अमेरिका द्वारा इराक, सीरिया, अफगानिस्तान, लीबिया, यमन, सोमालिया और पाकिस्तान पर हमलों में 26,171 बम गिराए गए।
ओबामा के नेतृत्व में उनके कार्यकाल के पहले वर्ष में अकेले पाकिस्तान में 54 ड्रोन हमले हुए। हार्वर्ड पॉलिटिकल रिव्यू का कहना है कि राष्ट्रपति ओबामा के तहत पहले सीआईए ड्रोन हमलों में से एक अंतिम संस्कार के मौक़े पर हुआ था जिसमें 41 पाकिस्तानी नागरिक मारे गए थे। इसके बाद के वर्ष में ओबामा के नेतृत्व में पाकिस्तान में 128 सीआईए ड्रोन हमले हुए जिनमें कम से कम 89 नागरिक मारे गए।
इसमें आगे कहा गया है कि यमन में ओबामा के पहले हवाई हमले में 21 बच्चों सहित 55 लोग मारे गए, जिनमें से 10 पांच साल से कम उम्र के थे। मरने वालों में 12 महिलाएं भी थीं जो गर्भवती थीं। ओबामा के रहते अमेरिका ने 2016 में अफगानिस्तान पर 1,337 हथियार गिराए। 2007 से 2016 के बीच, अमेरिका ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एक साल में औसतन 582 नागरिकों को मार डाला।
अपने संस्मरण ‘ए प्रॉमिस्ड लैंड’ में ओबामा लिखते हैं, “मैं चाहता था कि किसी तरह उन्हें बचाया जाए… और फिर भी वे जिस दुनिया का हिस्सा थे, और जिस मशीनरी की मैंने कमान संभाली थी, उसने अक्सर मुझे उन्हें मारने के लिए मजबूर किया।”
ओबामा ऐसे लोगों को बचाने की कोशिश का नाटक कर रहे हैं जिन्होंने उनसे कभी मदद माँगी ही नहीं। अमेरिका ने ख़ुद ही फैसला लिया कि किसी देश को ‘आजाद’ करने की जरूरत है और ‘लोकतंत्र’ स्थापित करने की जरूरत है, इसलिए उसने अलोकतांत्रिक तरीके से उस पर बमबारी की और ऐसा करते हुए वहाँ के नागरिकों का ध्यान तक नहीं रखा।
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ओबामा भारत के एक और विभाजन का संकेत दे रहे हैं?
पीएम मोदी की यात्रा के बीच जारी किए गए ओबामा के इस साक्षात्कार में ओबामा ने जोर देकर कहा कि यदि मुस्लिम अल्पसंख्यकों का ध्यान नहीं रखा गया तो भारत में एक और विभाजन हो सकता है। 1947 में अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान बनाया गया जो एक अलग राष्ट्र चाहते थे। जिन्ना और उस समय के अन्य प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने कहा था कि हिंदू और मुस्लिम एक साथ शांति से नहीं रह सकते हैं और इसलिए दो-राष्ट्र सिद्धांत के कारण भारत का विभाजन हुआ।
उस समय भी जिन्ना का मानना था कि कांग्रेस एक ‘हिंदू पार्टी’ थी और इसलिए उन्होंने मुस्लिम लीग का हिस्सा बनना चुना। जिन्ना ने जो आरोप कांग्रेस पर 1947 में लगाए थे, कुछ वैसे ही आरोप कांग्रेस अब बीजेपी पर 75 साल बाद लगा रही है।
वर्षों से यहाँ हिंदुओं को ही विभाजन के लिए दोषी ठहराया गया और गिल्ट ट्रिप में डालने की कोशिश की गईं। हिंदुओं को इतना सावधान रहना होता है कि कहीं उनकी छींक लेने से भी किसी मुस्लिम अल्पसंख्यक की भावना आहत ना हो जाए। इनका ध्यान रखने के लिए हमारे स्कूल की इतिहास की किताबों तक को साफ़ कर दिया गया। मुगल आक्रांताओं के रोमांटिक कहानियों में बदल दिये। हिंदुओं के मंदिर तोड़ने वाले, उनके जनेऊ काटने वाले यहाँ मूर्तियों को तोड़ रहे थे और हमें बताया जाता है कि “देखो, मुगलों ने हमें ताज महल और बिरयानी दी’
हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि 1947 में भारत का विभाजन इस्लामी मानसिकता वाले मुस्लिम नेताओं के टू नेशन थ्योरी की वजह से हुआ था। इसलिए, ओबामा की ये डींगें की धार्मिक आधार पर भारत का एक और विभाजन हो सकता है, बहटू ज़्यादा गंभीरता से नहीं ली जा सकती हैं। जो भारत को लोकतंत्र का ज्ञान परसों रहे हैं उन्हें पहले उस मानसिकता का ज़िक्र करना होगा जो 1947 में भारत के विभाजन की ज़िम्मेदार थी।